प्रधानमंत्री हुई बर्खास्तः जब गूंगी गुड़िया हुआ ये एक्शन, टूट गई थी कांग्रेस
पंडित नेहरू के देहावसान के बाद कांग्रेस के दिग्गिज नेताओं ने पार्टी पर कब्जा जमा लिया। इसमें के कामराज, एसके पाटिल, निजलिंगप्पा और मोरार जी देसाई सरीखे नेताओं की भूमिका अहम थी।
लखनऊ: आजादी के बाद देश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में शुमार पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद कांग्रेस में जब इंदिरा गांधी को लाया गया तो उनके कट्टर आलोचक मोरार जी भाई देसाई उन्हें गूंगी गुडिया कहा करते थे। वह कांग्रेस में इंदिरा गांधी को अहम मौके दिए जाने के विरोधी थे लेकिन उनके सबसे बड़े विरोधी तमिलनाडु के नेता के कामराज हुआ करते थे। मोरार जी भाई देसाई से निपटने के लिए कामराज ने इंदिरा गांधी को कांग्रेस में आगे बढ़ाया लेकिन जब 1969 के राष्ट्रपति चुनाव में इंदिरा गांधी ने कामराज सरीखे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के सामने आंतरिक चुनौती पेश की तो उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता देखना पड़ा। कांग्रेस ने अपनी युवा नेत्री और नेहरू की स्वाभाविक उत्तराधिकारी को ही पार्टी से बर्खासत कर दिया।
ये भी पढ़ें:कोरोना ने तोड़ा रिकार्ड, कांग्रेस नेता माकन बोले- CM शहर को तुरंत करें लॉकडाउन
पंडित नेहरू के देहावसान के बाद कांग्रेस के दिग्गिज नेताओं ने पार्टी पर कब्जा जमा लिया। इसमें के कामराज, एसके पाटिल, निजलिंगप्पा और मोरार जी देसाई सरीखे नेताओं की भूमिका अहम थी। तब कांग्रेस में एक शब्दा सिंडीकेट खूब चर्चा में रहा। कांग्रेसी आपस की बातचीत में कहते थे कि जो सिंडीकेट चाहेगा वही कांग्रेस में होगा।
मोरार जी भाई देसाई के नाम पर मुहर लगनी तय मानी जा रही थी
बताते हैं कि नेहरू के निधन के पश्चांत जब उनके उत्तराधिकारी को चुनने का सवाल आया तो पार्टी के राष्ट्रीतय अध्यक्ष के कामराज की अध्यनक्षता में हो रही बैठक को इंदिरा गांधी ने अपने एक छोटे से संदेश से मुल्तलवी करा दिया। इंदिरा ने कामराज को एक पर्ची पर लिखकर भेजा कि जब तक राष्ट्री य शोक है तब तक नए नेता का चुनाव स्थागित कर दिया जाए। कामराज ने ऐसा ही किया। बताते हैं कि तब मोरार जी भाई देसाई के नाम पर मुहर लगनी तय मानी जा रही थी लेकिन बाद में इंदिरा गांधी और कामराज ने मिलकर लाल बहादुर शास्त्री का नाम आगेू बढ़ाया और मोरार जी भाई देखते रह गए।
कामराज के सिंडीकेट का साथ लेकर इंदिरा ने कांग्रेस में अपनी हैसियत बढ़ाई और शास्त्रीी के बाद खुद प्रधानमंत्री बन गईं। लंबे समय तक वह प्रधानमंत्री रहने के बावजूद वही करती रहीं जो कामराज चाहते थे। इसलिए उन्हें मोरार जी भाई देसाई खुलकर गूंगी गुडिया कहने लगे। अगस्त 1969 में राष्ट्रपति चुनाव के मौके पर गूंगी गुडिया ने मौन रहकर भी कामराज की सत्ताी को खुली चुनौती दे डाली। हुआ कुछ यूं कि कामराज चाहते थे कि नीलम संजीव रेड़डी को भारत का राष्ट्रपति चुना जाए। '
यह एक तरह से इंदिरा गांधी की हार थी
कांग्रेस की इस सिलसिले में हुई बैठक में इंदिरा गांधी ने महात्माव गांधी की जन्म शताब्दी का उल्लेीख करते हुए कहा कि बाबू जगजीवन राम को राष्ट्रठपति पद का उम्मीदवार बना कर गांधी जी के अछूतोद्धार को आगे बढ़ाया जाना चाहिए लेकिन कांग्रेस संसदीय बोर्ड की बैठक में उनकी नहीं चली। निजलिंगप्पा, एसके पाटिल, के कामराज और मोरारजी देसाई सभी ने मिलकर नीलम संजीव रेड्डी राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार बनवा दिया। यह एक तरह से इंदिरा गांधी की हार थी। संसदीय बोर्ड के फैसले के बाद इंदिरा गांधी भी नीलम संजीव रेड्डी की उम्मीदवारी की एक प्रस्तावक थीं लेकिन उन्हें रेड्डी का राष्ट्रपति बनना गंवारा नहीं था। इसी बीच तत्कालीन उपराष्ट्रपति वराहगिरी व्यंकट गिरि (वीवी गिरि) ने अपने पद से इस्तीफा देकर खुद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया।
इंदिरा गांधी की चाल थी जिसे उन्होंने आखिरी क्षण तक उजागर नहीं होने दिया
कहा जाता है कि यह इंदिरा गांधी की चाल थी जिसे उन्होंने आखिरी क्षण तक उजागर नहीं होने दिया। जब चुनाव की बारी आई तो कामराज ने भारतीय जनसंघ को इस बात के लिए तैयार कर लिया कि वह अपने उम्मीजदवार को प्रथम वरीयता के मत देने के बाद दूसरी वरीयता रेड्डी को देंगे। चुनाव के मौके पर कामराज ने हि्वप भी जारी किया लेकिन संसदीय दल की नेता इंदिरा ने हि्वप जारी करने के बजाय कांग्रेस के सदस्यों से कहा कि वे अपनी अंतरात्मा के आधार पर वोट करें। इस दौरान बतौर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने कई फैसलों से कम्युनिस्ट दलों को प्रभावित करने में भी कामयाब हो चुकी थीं।
ये भी पढ़ें:12 बजे बड़ा ऐलान: मोदी सरकार देगी दिवाली गिफ्ट, मिलेगा एक और महा पैकेज
लिहाजा उनके इशारे पर स्वतंत्र पार्टी, समाजवादियों, कम्युनिस्टों, जनसंघ आदि सभी विपक्षी दलों ने वीवी गिरि को समर्थन देने का एलान कर दिया। इंदिरा गांधी के इस पैंतरे से कांग्रेस में हड़कंप मच गया। वीवी गिरि जीत गए और कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार संजीव रेड्डी को दिग्गज कांग्रेसी नेताओं का समर्थन हासिल होने के बावजूद पराजय का मुंह देखना पड़ा। वीवी गिरि की जीत को इंदिरा गांधी की जीत माना गया। इससे नाराज होकर कामराज ने इंदिरा गांधी को पार्टी से बाहर का रास्तार दिखाते हुए बर्खास्तीगी का आदेश जारी कर दिया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। गूंगी गुड़ीया अब बोलने लगी थी और इंदिरा गांधी ने अपनी अलग कांग्रेस (रिक्विजिशन) यानी कांग्रेस - आर का गठन कर लिया।
रिपोर्ट- अखिलेश तिवारी
दोस्तों देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।