बीएचयू के लिए निजाम ने दान में दी थी जूती, फिर महामना ने यूं सिखाया सबक

देश को काशी हिंदू विश्वविद्यालय जैसा अनोखा शिक्षा संस्थान देने वाले महामना पंडित मदन मोहन मालवीय का आज जन्मदिन है। इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में 1861 में आज ही के दिन महामना का जन्म हुआ था।

Update:2020-12-25 09:36 IST
बीएचयू के लिए निजाम ने दान में दी थी जूती, फिर महामना ने यूं सिखाया सबक

लखनऊ: देश को काशी हिंदू विश्वविद्यालय जैसा अनोखा शिक्षा संस्थान देने वाले महामना पंडित मदन मोहन मालवीय का आज जन्मदिन है। इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में 1861 में आज ही के दिन महामना का जन्म हुआ था। महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और युग प्रवर्तक महामना मालवीय दूरदर्शी शिक्षाविद्, सफल अधिवक्ता, कुशल राजनीतिज्ञ, निष्पक्ष पत्रकार, समाज सुधारक और सबसे बढ़कर असाधारण देश भक्त थे। काशी हिंदू विश्वविद्यालय जैसे संस्थान को मूर्त रूप देने के लिए उन्होंने देश भर में घूम-घूम कर भीख मांगी थी। इस दौरान उनका हैदराबाद के निजाम से जुड़ा एक किस्सा काफी मशहूर है।

पहले मदद से इनकार, फिर दान में दी जूती

महामना मालवीय ने 4 फरवरी 1916 को काशी हिंदू विश्वविद्यालय की नींव तो रख दी थी मगर इसे विकसित करने के लिए काफी पैसे की जरूरत थी। विश्वविद्यालय के लिए चंदा जुटाने की खातिर पंडित मालवीय पूरे देश का दौरा कर रहे थे। इसी सिलसिले में वे हैदराबाद भी पहुंचे और निजाम से मुलाकात कर मदद मांगी मगर निजाम ने उन्हें मदद देने से इनकार कर दिया। निजाम के इनकार करने पर भी मालवीय जी ने हार नहीं मानी और अपनी जिद पर अड़े रहे। उनकी जिद पर खीझकर निजाम ने कहा कि मेरे पास दान देने के लिए सिर्फ अपनी जूती ही है। निजाम के ऐसा करने पर मालवीय जी नाराज नहीं हुए। निजाम से जूती ले ली। इसके बाद वे चारमीनार के पास पहुंचे और जूती को नीलामी के लिए रख दिया।

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शर्मिंदा होकर दान पर मजबूर हुआ निजाम

उसी दौरान निजाम की मां चारमीनार के पास से बंद बग्घी में गुजर रही थीं। वहां पर लोगों की भीड़ देखकर जब निजाम की मां ने पूछा तो किसी ने बताया कि निजाम की जूती नीलाम हो रही है। इस पर निजाम की मां को लगा कि उनके बेटे की जूती नहीं बल्कि इज्जत बाजार में नीलाम हो रही है। उन्होंने फौरन निजाम को सूचना भिजवाई। यह जानकारी पाकर निजाम काफी शर्मिंदा हुआ और उसने मालवीय जी को बुलाकर काफी बड़ा दान दिया।

एक और किस्सा भी है मशहूर

एक किस्सा यह भी बताया जाता है कि निजाम के इनकार करने के बाद जब मालवीय जी महल से बाहर निकले तो वहां से एक शव यात्रा गुजर रही थी। जिस व्यक्ति का निधन हुआ था, वह हैदराबाद का काफी बड़ा सेठ था। शवयात्रा के दौरान गरीबों को पैसा भी बांटा जा रहा था। मालवीय जी ने भी पैसे के लिए हाथ आगे बढ़ा दिया। इस पर एक व्यक्ति ने कहा कि आपको देखकर नहीं लगता कि आपको पैसे की जरूरत है। इस पर महामना ने जवाब दिया कि भाई क्या करूं।



जब तुम्हारे निजाम के पास मुझे देने के लिए कुछ भी नहीं है तो खाली हाथ काशी लौटूंगा तो लोग क्या कहेंगे। इस बात की जानकारी मिलने पर निजाम ने उन्हें फिर महल में बुलवाया और बीएचयू के लिए मदद की। जानकारों का कहना है कि महामना ने उस दौर में बीएचयू के लिए पेशावर से लेकर कन्याकुमारी तक दौरा किया था और करीब एक करोड़ 64 लाख का चंदा जुटाया था।

क्रांतिकारियों को फांसी की सजा से बचाया

मालवीय जी के पिता संस्कृत भाषा के प्रकांड विद्वान थे और श्रीमद्भागवत की कथा सुनाकर आजीविका चलाते थे। मदन मोहन मालवीय ने पांच साल की उम्र में ही संस्कृत की पढ़ाई शुरू कर दी थी और उन्होंने धर्म ज्ञानोपदेश पाठशाला से प्राथमिक शिक्षा की पढ़ाई पूरी की थी। 1879 में उन्होंने दसवीं की परीक्षा पास की और फिर कोलकाता यूनिवर्सिटी से बीए किया। बीए पास करने के बाद उन्होंने एलएलबी की परीक्षा उत्तीर्ण की और इलाहाबाद हाईकोर्ट में अधिवक्ता बन गए। वे उच्च कोटि के अधिवक्ता थे और चौरीचौरा कांड में जब 170 भारतीयों को फांसी की सजा सुनाई गई तो उन्होंने वह मुकदमा अपने हाथों में लेते हुए 151 क्रांतिकारियों को फांसी की सजा से मुक्ति दिलाई।

गुरुदेव टैगोर ने दी थी महामना की उपाधि

मालवीय जी देश में छुआछूत की भावना के घोर विरोधी थे और देश को जातिगत बेड़ियों से मुक्ति दिलाना चाहते थे। महात्मा गांधी भी मालवीय जी से काफी प्रभावित थे। एक बार उन्होंने कहा था कि मालवीय जी से मुलाकात करने पर वे मुझे गंगा की धारा जैसे निर्मल और पवित्र लगे। महात्मा गांधी ने उन्हें अपना बड़ा भाई और भारत निर्माता बताया था। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने मालवीय जी को महामना की उपाधि दी थी। सत्यमेव जयते के नारे को जन-जन में लोकप्रिय बनाने में महामना का महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है।

पत्रकारिता से था गहरा जुड़ाव

पत्रकारिता से भी मालवीय जी का गहन जुड़ाव था और उन्होंने 1887 में हिंदी दैनिक हिंदोस्थान के संपादक के रूप में पत्रकारिता की शुरुआत की थी। 1909 में उन्होंने इलाहाबाद से प्रकाशित अंग्रेजी समाचार पत्र द लीडर की स्थापना की जहां वे 1909-11 तक संपादक थे। इसके अलावा उन्होंने अभ्युदय और मर्यादा पत्रिका का भी संपादन-प्रकाशन किया। उन्होंने 1924 से 1946 तक हिंदुस्तान टाइम्स के संचालन का पदभार भी संभाला। उनके प्रयासों के फलस्वरूप ही हिंदुस्तान दैनिक का प्रकाशन 1936 में शुरू हुआ था।

स्वाधीनता आंदोलन में बड़ी भूमिका

स्वाधीनता के आंदोलन में भी मालवीय जी ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। आजादी की लड़ाई के दौरान वे उदारवादी और राष्ट्रवादियों के बीच सेतु माने जाते थे। महात्मा गांधी के 1920 के असहयोग आंदोलन में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे 1919 में लाहौर, 1918 और 1930 में दिल्ली तथा 1932 में कोलकाता में कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष रहे। उन्होंने लाला लाजपत राय के साथ साइमन कमीशन का जबर्दस्त विरोध किया था। इसके साथ ही उन्होंने 1930 के नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी हिस्सा लिया था और जेल की सजा काटी थी।

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सामाजिक सुधार के क्षेत्र में भी किया कार्य

1931 के गोलमेज सम्मेलन में मालवीय जी ने देश का प्रतिनिधित्व किया और इसके बाद फिर 1937 में राजनीति से संन्यास लेकर वह समाजसेवा में जुट गए। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और विधवा विवाह का समर्थन करने के साथ ही बाल विवाह का विरोध किया। उनका निधन 12 नवंबर 1946 को हुआ था।

महामना को देश का सर्वोच्च सम्मान

देश के प्रति उनकी उल्लेखनीय सेवाओं को याद करते हुए 24 दिसंबर 2014 को उनकी 153वीं जयंती से एक दिन पहले उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया गया। शिक्षा के क्षेत्र में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना करके उन्होंने पूरी दुनिया के सामने मिसाल पेश की। महामना की इस बगिया से निकले छात्र-छात्राओं ने पूरी दुनिया में देश की प्रतिष्ठा बढ़ाई है।

अंशुमान तिवारी

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