गुरु गोविन्द सिंह: 'वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह'

गुरु गोविन्द सिंह एक कवी और आध्यात्मिक नेता भी थे। उन्हें संस्कृत और अरबी सहित कई भाषाओं का ज्ञान था। उन्होंने अपने जीवन में जाप साहिब, अकाल उस्तत, बचित्र नाटक, चण्डी चरित्र, शास्त्र नाम माला, अथ पख्याँ चरित्र लिख्यते, ज़फ़रनामा और खालसा महिमा की रचना की।

Update:2020-10-07 14:28 IST
गुरु गोविन्द सिंह: 'वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह'

शाश्वत मिश्रा

आज सिखों के दसवें और अंतिम गुरु, हमेशा लोगों को सच्चाई के मार्ग पर चलने की सलाह देने वाले, शांति, प्रेम, करुणा, एकता, समानता की सीख देने वाले, खालसा पंथ की स्थापना करने वाले और अन्याय, अधर्म, अत्याचार व दमन के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले 'गुरु गोविन्द सिंह' का शहीदी दिवस है। आज ही के दिन साल 1708 में वो मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए शहीद हो गए थे। इनके पिता गुरु तेग बहादुर भी इस पंथ के गुरु थे। सिख पंथ की स्थापना 15वीं सदी में गुरु नानक जी ने की थी।

''चिड़ियन ते मैं बाज तुड़ाऊं... ''

गुरु गोविन्द सिंह बहादुर और अन्याय के खिलाफ लड़ने वाले शख़्स थे। उन्होंने मुगलों से 14 बार युद्ध लड़ा। उनकी वीरता का अंदाजा इन वाक्यों से लगाया जा सकता है।

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'वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह'

'सवा लाख से एक लड़ाऊं, चिड़ियन ते मैं बाज तुड़ाऊं, तबै गुरु गोबिंद सिंह नाम कहाऊं'

जीवन के सत्य से रूबरू कराते हैं ये विचार

-हमे सबसे महान सुख और स्थायी शांति तभी प्राप्त हो सकती है जब हम अपने भीतर से स्वार्थ को समाप्त कर देते है।

-ईश्वर ने हमें जन्म दिया है ताकि हम संसार में अच्छे काम करें और बुराई को दूर करें।

-निर्बल पर कभी अपनी तलवार चलाने के लिए उतावले मत होईये, वरना विधाता आप का ही खून बहायेगा।

-अगर आप केवल भविष्य के बारे में सोचते रहेंगे तो वर्तमान भी खो देंगे।

-मेरी बात सुनो जो लोग दुसरे से प्रेम करते है वही लोग प्रभु को महसूस कर सकते है।

-मैं उन लोगों को पसंद करता हूँ जो सच्चाई के मार्ग पर चलते हैं।

-भगवान स्वय उनके मार्ग बनाते है जो लोग अच्छाई का कर्म करते है।

-अच्छे कर्मों से ही आप ईश्वर को पा सकते हैं अच्छे कर्म करने वालों की ही ईश्वर मदद करता है।

-भगवान के नाम के अलावा कोई मित्र नहीं है, भगवान के विनम्र सेवक इसी का चिंतन करते और इसी को देखते हैं।

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'गुरु ग्रन्थ साहिब' को किया पूरा

गुरु गोविन्द सिंह एक कवी और आध्यात्मिक नेता भी थे। उन्हें संस्कृत और अरबी सहित कई भाषाओं का ज्ञान था। उन्होंने अपने जीवन में जाप साहिब, अकाल उस्तत, बचित्र नाटक, चण्डी चरित्र, शास्त्र नाम माला, अथ पख्याँ चरित्र लिख्यते, ज़फ़रनामा और खालसा महिमा की रचना की। इसके अलावा उन्होंने सिखों की पवित्र ग्रन्थ 'गुरु ग्रंथ साहिब' को पूरा किया व उन्हें गुरु रूप में सुशोभित किया।

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