कहां हो शिवराज मामा: मजदूरों का छलका दर्द, दूध के लिए बिलखते मासूम
इस फैक्ट्री मे 6 माह पहले एक ठेकेदार मध्यप्रदेश के छतरपुर से करीब 70 ऐसे लोगों को लाया था। जिनमे महिलाएं पुरूष और बच्चे भी शामिल हैं। ये सभी बेहद गरीब हैं
शाहजहांपुर: लॉकडाउन के बाद केंद्र और राज्य सरकारों ने प्रवासी मजदूरों को उनके घर भेजने के लिए तमाम कोशिशें तो शुरू की है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आ रही है। यूपी के शाहजहांपुर में करीब 70 लोग ऐसे हैं। जो 6 माह पहले मध्यप्रदेश से मेनहत मजदूरी करने के लिए आये थे। लेकिन लॉक डाउन के बाद वह यहां फंस कर रहे हैं। आलम ये है कि मजदूरों को भर पेट भर भोजन भी नही मिल पा रहा है। ठेकेदार इन मजदूरों को छोड़कर फरार हो गया है। फैक्ट्री मालिक इन मजदूरों को खाने के लिए नही दे रहा है।
दो वक्त का खान भी नहीं हो रहा नसीब, दूध के लिए बिलख रहे मासूम
ये मजदूर कभी खेत से कुछ बीनकर बनाकर खा लिया और बच्चों का पेट भर दिया। या फिर ये प्रवासी मजदूर सरकार की तरफ से दिये खाने का इंतजार ही करते है। लेकिन सब्र का बांध टूटा तो महिलाओं की आंखे ही छलक आई और उनका आंखो से दर्द बहने लगा। इतना ही नहीं कुछ मजदूरों का तो कहना था कि वह हाथ जोड़कर शिवराज मामा से गुहार लगा रहे हैं कि वह अपने शहर मे बुला लें। दरअसल यूपी के शाहजहांपुर में नैशनल हाईवे 24 पर बरतारा गांव के पास एक फैक्ट्री है।
इस फैक्ट्री मे 6 माह पहले एक ठेकेदार मध्यप्रदेश के छतरपुर से करीब 70 ऐसे लोगों को लाया था। जिनमे महिलाएं पुरूष और बच्चे भी शामिल हैं। ये सभी बेहद गरीब हैं और दो जून की रोटी कमाने के लिए शाहजहांपुर आए थे। लेकिन उसके बाद कुदरत की ऐसी मार पड़ी कि कोरोना महामारी फैल गई। सरकार ने पूरे देश मे लॉक डाउन लगा दिया। जिसके चलते देश में फैक्ट्री से लेकर सभी व्यवसाय बंद कर दिये गए। कुछ दिन तक इन मजदूरों के पास कुछ पैसा था। उन पैसे से कुछ दिन का राशन इन मजदूरों ने लाकर भर लिया।
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लेकिन लॉक डाउन बढ़ गया। राशन भी खत्म हो गया। फिर इनके पास राशन भरने के लिए पैसे भी नहीं बचे थे। उसके बाद इन मजदूरों को भर पेट खाना नहीं मिला। आलम ये है कि महिलाओं और पुरूषों को छोड़ दीजिए इनके मासूमों तक को भर पेट खाना नहीं मिल पा रहा है। कुछ बच्चे बेहद छोटे हैं जिनको दूध तक नही मिल पा रहा है। अब महिलाओं का सब्र का बांध टूटा तो उनकी आंखो से दर्द छलकने लगा।
'मामा हमें बुला लो'
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महिलाओं का कहना है कि उनके छोटे छोटे बच्चों को खाना नही मिल पा रहा है। बच्चो को दूध नही मिल पा रहा है। फैक्ट्री बंद होने के चलते उनके पास पैसे भी नहीं हैं जो वो राशन ला कर अपने बच्चों का पेट भर पाएं। आप बीती सुनाते सुनाते महिलाएं रोने तक लगीं और रो रोकर सरकार से गुहार लगाने लगी कि वह अपने घर जाना चाहती हैं। गलती से भी अब वह यहां नही आएंगी। वहीं प्रवासी मजदूर कमलेश का कहना है कि वह 6 महीने पहले ठेकेदार के सहारे इस फैक्ट्री में काम के लिए आया था। लेकिन लॉक डाउन के बाद कुछ दिन तो ठीक कट गए।
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लेकिन जब पैसा खत्म हुआ तो ठेकेदार से संपर्क करने की कोशिश की तो ठेकेदार रामपुर चला गया। फैक्ट्री मालिक से गुहार लगाई तो मालिक ने भी आंख फेर ली और खाने के लिए कुछ भी नहीं दिया। एक वक्त ऐसा आया कि हम लोगों ने खेतों से बीनकर पकाकर बच्चों का पेट भरा है। लेकिन अब खाने के लिए मोहताज हो गए हैं। वह कई बार जिलाधिकारी आफिस मे रजिस्ट्रेशन कराने के लिए पहुचा था। लेकिन अब अधिकारी कहते है कि उनका रजिस्ट्रेशन रद्द हो गया है। मजदूर कमलेश ने हाथ जोड़कर गुहार लगाई है कि शिवराज मामा से बहुत उम्मीद है वह अपने हमारे घर बुला लें।
आसिफ अली