नहीं सुधरेगा पाकिस्तान: कश्मीर ही नहीं भारत के इन इलाकों पर भी करता है दावा

पाकिस्तान केवल कश्मीर ही नहीं बल्कि गुजरात के भी दो बड़े इलाकों पर अपना दावा जताता रहा है। यहां तक इन इलाकों को वो अपने आधिकारिक नक्शे में भी दिखाता रहा है।

Update:2020-08-05 16:46 IST
Pakistan always show Junagadh in his map

नई दिल्ली: पाकिस्तान हमेशा से कश्मीर पर अपना हक जताता रहा है। 72 सालों से वो कोई भी मौका नहीं छोड़ता कश्मीर के मामलों में हस्तक्षेप करने का। लेकिन पाकिस्तान केवल कश्मीर ही नहीं बल्कि गुजरात के भी दो बड़े इलाकों पर अपना दावा जताता रहा है। यहां तक इन इलाकों को वो अपने आधिकारिक नक्शे में भी दिखाता रहा है। हालांकि इस मामले पर उसे हमेशा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मुंह की खानी पड़ि है। लेकिन तभी पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज आने का नाम नहीं ले रहा।

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इन इलाकों को करता है अपने नक्शे में शामिल

इस बार भी उसने अपने नए नक्शे में जूनागढ़, लद्दाख और जम्मू-कश्मीर को दिखाकर सारी हदें पार कर दी है। बता दें कि पाकिस्तान जो अपना राजनीतिक नक्शा पेश करता है, उसमें पाक के सर्वे विभाग के साथ-साथ सरकार की भी सीधी भागीदारी होती है। इसके बाद भी वो बंटवारे के बाद लगातार ऐसी हरकत करता आ रहा है। जिससे उसकी खीझ साफ जाहिर होती है।

पाकिस्तान ने दोनों इलाकों के भारत में विलय को स्वीकार नहीं किया

जूनागढ़ और माणावदर दोनों गुजरात के इलाके हैं। लेकिन पाकिस्तान इन पर अपना दावा करता आया है। वो इन दोनों इलाकों के भारत में विलय को अब तक स्वीकार नहीं पाया है। हालांकि वो इस बात से अच्छी तरह से वाकिफ है कि ये इलाके भारत के अविभाज्य अंग हैं। सच्चाई ये है कि उसकी लाख प्रयासों के बाद भी जूनागढ़ ऐसी रियासत रही, जहां पर पाकिस्तान को ऐसी धोबी पछाड़ पड़ी है कि उसका दर्द उसे हमेशा सालता है।

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पाकिस्तान जूनागढ़ को लेकर कई हरकतें करते आया है

जूनागढ़ पर अपना दावा पेश करने और उसे अपने नक्शे में शामिल करने के अलावा पाकिस्तान जूनागढ़ को लेकर कई हरकतें करते आया है। वो साल में कुछ वाहनों के लाइसेंस भी जूनागढ़ की प्लेट के नाम पर जारी करता है। वो खुन्नस के मारे जूनागढ़ से सटे दमन और दीव को भी भारत का अंग नहीं मानता। वो इन्हें अपने आधिकारिक नक्शे में पुर्तगाल का हिस्सा मानता है। जबकि भारत ने साल 1961 में ये इलाका पुर्तगाल से लिया था।

जूनागढ़ मामले में पाकिस्तान को लगी है गहरी चोट

बता दें कि जूनागढ़ के मामले में पाकिस्तान को एक ऐसी चोट लगी है, जिससे वो बिलबिला तो सकता है लेकिन कुछ कर नहीं सकता। पैट्रिक फ्रैंच की किताब "लिबर्टी एंड डेथ" भी ये कहती है कि पाकिस्तान को भी मालूम है कि जूनागढ़ भारत का अविभाज्य हिस्सा है। लेकिन इसके बाद भी इस इलाके के वो अपने नक्शे में शामिल करता रहता है।

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क्या है पूरा मामला?

दरअसल, काठियावाड़ राज्यों के समूह के हिस्से जूनागढ़ के नवाब ने 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। यहां पर शासक मुस्लिम था और बहुसंख्य जनता हिंदू। जूनागढ़ में नवाब मुहम्मद महाबत खान और दीवान शाहनवाज भुट्टो का पहले से ही पाकिस्तान की तरफ झुकाव था। इसके बाद वीपी मेनन ने 21 अगस्त को पाकिस्तान के उच्चायुक्त को एक पत्र लिख कहा कि जूनागढ़ भौगोलिक तौर पर पाकिस्तान से जुड़ा हुआ नहीं है, वहां पर हिंदू जनता की जनसंख्या अधिक है लिहाजा वहां जनमत संग्रह कराया जाए।

गुस्से की आग से उबल उठी जूनागढ़ की जनता

वहीं पाकिस्तान की तरफ से जब कोई जवाब नहीं आया तो प्रधानमंत्री नेहरू ने माउंटबेटन के चीफ ऑफ स्टाफ लॉर्ड इस्मे के जरिए 12 सितंबर को सूचना भिजवाई कि भारत जनमत संग्रह के किसी भी फैसले को मानने के लिए तैयार है। इसके बाद अगले ही दिन पाकिस्तान ने सूचना दी कि जूनागढ़ का उसके साथ विलय हो चुका है। ये खबर आने के बाद जूनागढ़ की जनता गुस्से की आग से उबल उठी। वहां पर जनांदोलन शुरू हो गया।

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सेनाओं को जूनागढ़ की सीमाओं पर तैनात किया गया

वहीं आसपास के राज्य भी इन आंदोलनों के समर्थन में आगे आए। जिसके बाद भारत पर कार्रवाई के लिए दबाव बढ़ गया। वहीं नेहरू और पटेल इस बात से वाकिफ थे कि अगर इस वक्त युद्ध होता है तो अतंरराष्ट्रीय समुदाय इसका जिम्मेदार भारत को मानेगी। लिहाजा भारत ने दूसरा रास्ता अपनाया और आसपास के राज्यों की सेनाओं को जूनागढ़ की सीमाओं पर तैनात कर दिया गया।

जनमत संग्रह कराने पर मनाने की कोशिश

वीपी मेनन को जूनागढ़ भेजकर नवाब को जनमत संग्रह कराने पर मनाने की कोशिश की गई। लेकिन नवाब ने बीमारी का बहाना बनाकर वीपी मेनन से मिलने से इनकार कर दिया। वहीं, जूनागढ़ ने बाबरियावाड़ और मांगरोल पर भी अपना दावा ठोक दिया। जूनागढ़ के नवाब ने एक अक्टूबर 1947 को मांगरोल पर कब्जा भी कर लिया। इसके बाद भारत ने एक बार फिर पाकिस्तान को पत्र लिखा और कहा कि नवाब से कब्जा हटाने के लिए कहा जाए।

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खजाना लेकर कराची जा चुका था नवाब

वहीं, पाकिस्तान ने अपनी चालाकी दिखाते हुए मांगरोल और बाबरियावाड़ के विलय की कानूनी पक्ष की जांच की मांग कर डाली। मांगरोल और वाबरियावाड ने भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए हुए थे। ऐसे में भारत ने तत्काल दोनों का प्रशासन भारतीय सिविल सेवा के हाथों में दे दिया। साथ ही जूनागढ़ पर आर्थिक प्रतिबंध को बढ़ा दिया गया। वहीं दूसरी ओर नवाब पहले ही सारा खजाना लेकर कराची जा चुका था। जिसके बाद जूनागढ़ की हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी।

दीवान भुट्टो को नहीं रही पाकिस्तान से मदद की आस

इधर, जनता का गुस्सा लगातार बढ़ता ही जा रहा था। दूसरी ओर दीवान भुट्टो को पता चल गया कि पाकिसतान उसकी कोई मदद नहीं करने वाला। भुट्टो को खुद भारत से प्रशासन हाथ में लेने की गुजारिश करनी पड़ी। इस बीच पांच नवंबर को रियासत का कामकाज एक स्टेट काउंसिल ने अपने हाथ में लिया। वीपी मेनन की पुस्तक "इंटीग्रेशन आफ इंडिया इनस्टेड" के मुताबिक, परिस्थितियों और दबाव के आगे दीवान भुट्टो टूट चुके थे।

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पाकिस्तान को मिले 91 वोट

इन्हीं हालात के बीच भारतीय फौजें 9 नवंबर को जूनागढ़ में प्रवेश कर गईं। नेहरू ने औपचारिक तौर पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को दी। 20 फरवरी 1948, को भारत ने जूनागढ़ में जनमत संग्रह कराया, जिसमें दो लाख एक हजार 457 वोटरों में एक लाख 90 हजार 870 ने अपने वोट डाले। पाकिस्तान के पक्ष में केवल 91 वोट पड़े। इस तरह से जूनागढ़ भारत का अंग बन गया।

हालांकि पाकिस्तान आज भी जूनागढ़ और माणावदर को आधिकारिक तौर पर अपना ही इलाका मानता है। उसने कभी भारत में इन इलाकों के विलय को स्वीकार नहीं किया। अपनी इस खीझ को वो 72 सालों से इन दोनों इलाकों को अपने आधिकारिक नक्शे में शामिल करके जाहिर करता रहा है।

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