ताड़का का वध करना नहीं चाहते थे 'श्रीराम'

दुर्गेश पार्थसारथी, अमृतसर : जीवन पर्यंत मर्यादाओं में बंधे श्री राम यदि मर्यादा पुरुषोत्‍तम हैं तो केवल अपनी मार्याओं के कारण। भगवान श्री राम की महिमा का बखान सबने अपने अपने ढंग से किया है।

Update: 2020-04-04 09:01 GMT

नई दिल्ली। दुर्गेश पार्थसारथी, अमृतसर : जीवन पर्यंत मर्यादाओं में बंधे श्री राम यदि मर्यादा पुरुषोत्‍तम हैं तो केवल अपनी मार्याओं के कारण। भगवान श्री राम की महिमा का बखान सबने अपने अपने ढंग से किया है। चाहे वह आदि कवि भगवान वाल्‍मीकि हों, महाकवि कालीदास हों या फिर गोस्‍वामी तुलसीदास या इनके समकालीन या बाद के चिंतक व लेखक। सबने भगवान श्री राम को अपने-अपने नजरिए से देखा है।

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श्री वाल्‍मीकि रामायण में जहां महर्षि वाल्‍मीकि भगवान श्री राम को सर्वगुण व सर्व शक्ति संपन्‍न होते हुए भी एक मार्यादा पुरुष के रूप में प्रतिष्‍ठापित कर मानव सामाज का पथ-प्रदर्शक बताया है। वहीं, गोस्‍वामी तुलसी दास जी ने 'श्री रामचरितमानस' में भगवान श्री राम को विष्‍णु का अवतार मानते हुए उन्‍हें मार्यादाओं में बंधे मर्यादा पुरुषोत्‍तम भगवान श्री राम माना है। यानि हर समय काल में भगवान श्री राम की मर्यादाओं को रेखांकित किया है।

दुनियाभर के लेखकों, चिंतकों और कवियों श्री राम को ऐसे ही मर्यादा पुरुषोत्‍तम नहीं माना है। इसके पीछे कई कारण हैं। भगवा श्री राम में अपने पूरे जीवन काल में एक महिला का वध किया है। और वो है राक्षसी ताड़का। जिसका ऋषि विश्‍वामित्र के कहने पर उन्‍होंने वध किया था।

श्री वाल्‍‍मीकि रामायण में मिलता है उल्‍लेख

आत्‍मा नंद आश्रम की विदूषी आत्‍म ज्‍योति श्री वाल्‍मीकि रामायण के कथा के आधार पर कहतीं हैं अध्‍योध्‍या से मुनि विश्‍वामित्र के साथ श्री राम अपने भाई लक्षण के साथ गाधीपुरी (आज का गाजीपुर) होते हुए ब्‍याघ्रसर अथवा चरित्रवन (आज का बिहार प्रांत का बक्‍सर) पहुंचते हैं।

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इस जंगल के रास्‍ते में वह बड़े भयानक पद चिन्‍ह देख कर पूछते हैं- गुरुदेव यह किसके पद चिन्‍ह हैं। तब विश्‍वामित्र कहते हैं छह कोस तक फैले इस निर्जन वन में ताड़का नाम की राक्षसी का एकाधिकार है। अगस्‍त मुनि के श्राप से रक्षसी बनी ताड़का और उसके मारीच की विनाश लीला के कारण उजाड़ बने इस वन में आने वाले किसी भी मनुष्‍य को वह जीवित नहीं छोड़ती।

इसपर भगवान श्री राम कहते हैं गुरुदेव महिलाएं तो बहुत कोमल हृदय और कोमलांगी होती हैं फिर ताड़का में हजार हाथियों को बल आया कैसे। इसपर मुनि विश्‍वामित्र ताड़का के जन्‍म से लेकर राक्षसी बनने तक की कथा श्री राम को सुनाते हैं।

वह कहते हैं ताड़का ने अपने पति सुंद की मृत्‍यु व खुद के कुरूप होने का प्रतिशेध लेने के लिए अगस्‍त ऋषि के आश्रम को तहसनहस कर दिया।

विश्‍वामित्र ने पढ़ाया राजधर्म का पाठ

भगवान श्री राम वाकई में मर्यादापुरुषोत्‍तम थे। सामर्थवान होते हुए भी एक साधारण मनुष्‍य की तरह व्‍यवहार करते हैं। श्री वाल्‍मीकि रामायण का गहनता से अध्‍ययन करने पर पता चलता है कि भगवान श्री राम ने अपने पूरे जिवन काल में मात्र एक नारी का वध किया है। वह भी मुनि विश्‍वामित्र की आज्ञ से।

विश्‍वामित्र के बार-बार कहने पर श्री राम कहते हैं- 'महामुने भला मैं इसे कैसे मार सकता हूं। यह नारी है और नारी का वध करना रघुल रीति के विपरित है। इसपर विश्‍वामित्र ने उन्‍हें राजधर्म की शिक्षा देते हुए कहा-' प्रजा पालक नरेश को प्रजा जनों की रक्षा के लिए क्रूरतापूर्ण अथा क्रूरता रहित, पातकयुक्‍त या सदोष कर्म भी करना पड़े तो करना चाहिए।

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जिनके ऊपर राज्‍यपालन का भार है उनका तो यह सनातन धर्म है। अत: हे रघुनंदन! एक हाजार हाथियों की बलवाली ताड़का महापापिनी है। उसे मार डालो।

राम का संशय दूर करते हुए विश्‍वामित्र ने आगे कहा-' पुराने समय में विरोचन की पुत्री सारी पृथ्‍वी का नाश करना चाहती थी, उससे रक्षा के लिए इंद्र ने उसका वध कर डाला था। ऐसे ही शुक्राचार्य की माता और भृगु की पत्‍नी त्रिभुवन को इंद्र से शून्‍य कर देना चाहती थी। यह जानकारी भगवान विष्‍णु ने उसे मार डाला था।

ऐसे ही बहुत से मनस्‍वी पुरुषों ने पापा-चारिणी स्त्रियों का वध किया है। अत: हे रघुनंदन तुम भी मेरी आज्ञा से दया त्‍याग दो और इस राक्षसी को मारडालो।

ताड़का वध से पहले राम ने विश्‍वामित्र से ली थी आज्ञा

ताड़का संहार से पहले श्री राम ने कहा- ' हे मुनिश्‍वर! अयोध्‍या में मेरे पिता महाराज दशरथ ने अन्‍य गुरु जनों के बची मुझे यह आदेश देते हुए कहा था कि पुत्र! तुम पिता के वचनों का मान रखने के लिए कुशिकनंदन विश्‍वामित्र की आज्ञा का पूर्णत: पालन करना। इसलिए, मैं पिता के उपदेश और आपकी आज्ञा से ताड़का का वध अवश्‍य करुंगा।

श्री वाल्‍मीकि रामायण के बालकांड के २५वें, २६वें और २७वें सर्ग में उल्‍लेख आता है कि चैत्र रथवन या चरित्रवन में ही ताड़का वध से प्रसन्‍न्‍ा होकर विश्‍वामित्र ने राम को दिव्‍यास्‍त्र दिए थे।

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