हवा का रुख भांपने में माहिर थे पासवान, छह पीएम की कैबिनेट में रहे मंत्री

पासवान की राजनीति की नब्ज पर मजबूत पकड़ मानी जाती थी और यही कारण है कि वह खगड़िया के काफी दुरूह माने जाने वाले इलाके शहरबन्नी से निकलकर दिल्ली की सत्ता तक अपनी मजबूत पकड़ बनाने में कामयाब रहे।

Update: 2020-10-08 16:01 GMT

अंशुमान तिवारी

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले बिहार के ताकतवर नेता माने जाने वाले केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का गुरुवार को नई दिल्ली में निधन हो गया। वे पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे और उनका दिल्ली के एक अस्पताल में इलाज चल रहा था। पासवान के बेटे और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के मुखिया चिराग पासवान ने अपने ट्वीट में पासवान के निधन की जानकारी दी। अपने संघर्ष के बूते दिल्ली की सत्ता तक का सफर तय करने वाले पासवान को मौसम विज्ञानी की संज्ञा दी जाती रही है और यही कारण है कि उन्होंने देश के छह प्रधानमंत्रियों की कैबिनेट में मंत्री के रूप में काम किया।

कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा

पासवान की राजनीति की नब्ज पर मजबूत पकड़ मानी जाती थी और यही कारण है कि वह खगड़िया के काफी दुरूह माने जाने वाले इलाके शहरबन्नी से निकलकर दिल्ली की सत्ता तक अपनी मजबूत पकड़ बनाने में कामयाब रहे। राजनीतिक क्षितिज पर एक बार छा जाने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

दो बार सर्वाधिक मतों से जीतने का रिकॉर्ड

अपनी सियासी ताकत के बल पर ही वे करीब 5 दशक तक बिहार और देश की राजनीति में छाए रहे। लोगों पर उनकी इतनी मजबूत पकड़ मानी जाती थी कि लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने दो बार सर्वाधिक मतों से जीतने का रिकॉर्ड भी कायम किया।

लालू ने दी थी मौसम विज्ञानी की संज्ञान

पासवान को सियासी कौशल का माहिर खिलाड़ी माना जाता था। राजनीतिक जोड़-तोड़ में वह इतने माहिर थे कि उन्हें यूपीए में शामिल कराने के लिए सोनिया गांधी खुद उनके आवास पर गई थीं। पासवान को मौसम विज्ञानी यूं ही नहीं कहा जाता है।

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1996 से लेकर 2020 तक केंद्र में सरकार बनाने वाले सभी गठबंधन चाहे वह यूपीए रहा हो या चाहे एनडीए, सभी का हिस्सा पासवान जरूर बने। उनकी इसी काबिलियत को देखते हुए ही राजद के मुखिया लालू प्रसाद यादव ने उन्हें मौसम विज्ञानी की संज्ञा दी थी।

मतदाताओं का मिजाज भांपने में माहिर

उनको मौसम विज्ञानी की संज्ञा देने के पीछे कारण यह था कि वह पूर्वानुमान लगाने में काफी माहिर थे। वे सियासत में बह रही हवा का रुख बहुत जल्दी भाग लेते थे। जब बड़े-बड़े नेता मतदाताओं का मिजाज समझने में नाकामयाब रहे, ऐसी स्थिति में भी पासवान को पता रहता था कि जनता क्या जनादेश सुनाने वाली है। बिहार के हाजीपुर लोकसभा सीट पर उनकी मजबूत पकड़ थी और उन्होंने यहां से कई बार चुनाव जीता। दो बार तो उन्होंने इस सीट से सबसे अधिक वोटों से जीतने का रिकॉर्ड भी कायम किया।

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2005 में कर दिया था खेल

बिहार में 2005 में उन्होंने सत्ता की चाबी अपने हाथ लगने पर गजब का खेल खेल दिया था। 2005 के विधानसभा चुनाव में लोजपा के 29 विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। ‌ चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं हासिल हुआ था और सत्ता की चाबी पासवान के ही हाथों में थी।

अल्पसंख्यक को सीएम बनाने की शर्त

वे चाहते तो नीतीश कुमार या लालू प्रसाद यादव में से किसी को भी मुख्यमंत्री बनवा सकते थे मगर उन्होंने सियासी खेल खेलते हुए शर्त रख दी कि जो पार्टी अल्पसंख्यक को सीएम बनाएगी वे उसी का साथ देंगे। राजद और जदयू दोनों दल पासवान की शर्त पर खरे नहीं उतरे और उसका नतीजा यह हुआ कि राज्य में दोबारा चुनाव कराना पड़ा। हालांकि 2005 के नवंबर महीने में हुए दोबारा चुनाव में नीतीश कुमार की अगुवाई में एनडीए को पूरा बहुमत मिल गया।

1969 में हुई थी सियासी सफर की शुरुआत

पासवान के सियासी सफर की शुरुआत 1969 में हुई थी जब वे एक आरक्षित सीट से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य के रूप में बिहार विधानसभा पहुंचे थे।

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1974 में वे बिहार में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के प्रबल अनुयायी के रूप में भी सामने आए और लोकदल के महासचिव बने। उनकी काबिलियत का ही नतीजा था कि उन्हें राज नारायण, कर्पूरी ठाकुर और सत्येंद्र नारायण सिन्हा जैसे सियासी दिग्गजों का करीबी माना जाता था।

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