सचिन पायलट के पिता ने भी की थी बगावत, गांधी परिवार के खिलाफ ठोक दी थी ताल
राजस्थान में गहलोत सरकार के लिए बड़ा सियासी संकट खड़ा करने वाले सचिन पायलट को लेकर आलाकमान अभी भी अनिश्चय की स्थिति में है। हालांकि उन्हें डिप्टी सीएम के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष के पद से भी हटा दिया गया है मगर कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने उनसे एक बार
नई दिल्ली: राजस्थान में गहलोत सरकार के लिए बड़ा सियासी संकट खड़ा करने वाले सचिन पायलट को लेकर आलाकमान अभी भी अनिश्चय की स्थिति में है। हालांकि उन्हें डिप्टी सीएम के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष के पद से भी हटा दिया गया है मगर कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने उनसे एक बार फिर मिल-बैठकर मतभेदों को दूर करने की अपील की है। सचिन पायलट ने यह तो स्पष्ट किया है कि वे भाजपा में नहीं जा रहे हैं, लेकिन अपनी भावी राजनीति को लेकर उन्होंने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। सचिन पायलट किसी जमाने में कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे राजेश पायलट के बेटे हैं और राजेश पायलट भी कांग्रेस में रहते हुए बगावती तेवर दिखा चुके हैं।
केसरी के खिलाफ लड़ा था अध्यक्ष का चुनाव
सचिन के पिता राजेश पायलट वायुसेना में स्क्वाड्रन लीडर रहे थे और गांधी परिवार के जरिए ही वे सियासत के मैदान में कूदे थे। हालांकि उन्होंने बाद में गांधी परिवार को ही चुनौती दे डाली थी। बगावती तेवर दिखाने के बावजूद उन्होंने पार्टी से कभी इस्तीफा नहीं दिया। राजेश पायलट के बगावती तेवर की पहली बानगी 1997 में दिखी थी जब उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए ही ताल ठोक दी थी।
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हालांकि कांग्रेस में अध्यक्ष पद का चुनाव ही अपने आप में अचरज का विषय था क्योंकि इस पर पद पर गांधी परिवार ही काबिज होता रहा है। 1997 में अध्यक्ष पद के लिए हो रहे चुनाव में गांधी परिवार के करीबी सीताराम केसरी मैदान में उतरे थे और पायलट ने उनके खिलाफ हुंकार भर दी थी। वैसे इस चुनाव में पायलट को केसरी के सामने हार का मुंह देखना पड़ा था।
सोनिया के खिलाफ जितेंद्र प्रसाद का दिया साथ
साल 2000 में भी राजेश पायलट का बगावती अंदाज सामने आया था। उस समय जितेंद्र प्रसाद ने सोनिया गांधी के खिलाफ अध्यक्ष पद पर दावा ठोक दिया था। इस चुनाव में राजेश पायलट सियासत में अपनी एंट्री कराने वाले गांधी परिवार के साथ नहीं खड़े दिखे। उन्होंने चुनाव में जितेंद्र प्रसाद का साथ दिया था। वैसे इस चुनाव का नतीजा भी वही हुआ जिसकी सबको उम्मीद थी। सोनिया गांधी जितेंद्र प्रसाद को हराकर अध्यक्ष बनने में कामयाब रहीं।
गहलोत से राजेश पायलट का भी था छत्तीस का आंकड़ा
राजस्थान की सियासत में बेटे सचिन पायलट की तरह पिता राजेश पायलट का भी मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से हमेशा छत्तीस का ही आंकड़ा रहा। राजस्थान की सियासत में राजेश पायलट ने गहलोत की जगह दूसरे नेताओं को ज्यादा महत्व दिया। सियासी जानकारों का कहना है कि वे गहलोत को मन ही मन नापसंद किया करते थे। हालांकि दोनों खुलकर कभी आमने-सामने नहीं दिखे मगर भीतर ही भीतर दोनों एक-दूसरे को पटखनी देने का कोई मौका नहीं चूकते थे।
क्षेत्र के कार्यक्रम में गहलोत को निमंत्रण तक नहीं
जानकारों के मुताबिक 1993 संचार राज्यमंत्री के रूप में राजेश पायलट जोधपुर में एक डाकघर का उद्घाटन करने पहुंचे थे। जोधपुर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गढ़ रहा है और वहां से वे पांच बार सांसद रह चुके हैं। उस समय भी गहलोत जोधपुर से ही सांसद थे और उन्हें कार्यक्रम का निमंत्रण तक नहीं दिया गया था। गहलोत की इस उपेक्षा से नाराज उनके समर्थकों ने कार्यक्रम के दौरान हंगामा भी कर दिया था और पायलट से सांसद को न बुलाने का कारण पूछा। इस पर पायलट ने मजाक करते हुए कहा था कि यहीं कहीं टहल रहे होंगे बेचारे गहलोत।
पिता की तरह बेटे ने भी दिखाई बेरुखी
उस समय पार्टी में राजेश पायलट को काफी महत्व दिया जाता था और उनके सामने गहलोत का सियासी कद थोड़ा कमजोर पड़ता था। गहलोत को उसी साल मंत्री पद से भी हटा दिया गया था और वे पार्टी में अलग-थलग पड़ गए थे। अब राजेश पायलट की तरह ही उनके बेटे सचिन पायलट ने भी गहलोत के खिलाफ बेरुखी दिखाई है।
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सचिन को शुरू से ही था इस बात का दर्द
जानकारों का कहना है कि गहलोत सरकार के शपथग्रहण के बाद से ही सचिन और मुख्यमंत्री के बीच अच्छा तालमेल नहीं था। सचिन को हमेशा इस बात की टीस महसूस होती थी कि वे सत्ता के इतना करीब पहुंचकर भी मुख्यमंत्री नहीं बन सके। हालांकि आलाकमान ने राजस्थान के इन दोनों प्रमुख नेताओं के बीच मतभेद दूर करने का कभी गंभीर प्रयास नहीं किया। इसी का नतीजा है कि राजस्थान में आखिरकार सचिन ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया और कांग्रेस के लिए बड़ा सियासी संकट खड़ा हो गया।
रिपोर्टर: अंशुमान तिवारी