उर्दू शायरों को भी दिलअजीज थी होली की मस्ती
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अवध के नवाबों की देन होली की बारात व मेलों में जहां मुस्लिम बढ़-चढ़ कर हिस्सेदारी करते थे तो मोहर्रम में हिंदू भी ताजिए निकालते थे।
मनीष श्रीवास्तव
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अवध के नवाबों की देन होली की बारात व मेलों में जहां मुस्लिम बढ़-चढ़ कर हिस्सेदारी करते थे तो मोहर्रम में हिंदू भी ताजिए निकालते थे। प्यारे साहब रशीद, नानक चंद नानक, छन्नू लाल दिलगीर, कृष्ण बिहारी नूर जैसे हिन्दू कवियों और शायरों के लिखे मर्सिये आज भी मुहर्रम की मजलिसों में कर्बला का मंजर पेश कर आखें नम कर जाते हैं तो कई मुस्लिम शायरों ने होली पर तमाम शेर और नज्म लिखी हैं।
मीर ने नवाब आसफुद्दौला के होली खेलने को कुछ इस तरह किया बयां
शायरों के बादशाह माने जाने वाले गालिब भी जिसकी शायरी और कलामों के मुरीद थे, वह मीर तकी मीर खुद होली के त्यौहार के कायल थे। बताते हैं कि दिल्ली से लखनऊ आए मीर ने जब नवाब आसफुद्दौला को होली के रंगों में रंगते और डूबते देखा तो उन्होंने इसको कुछ इस तरह बयान किया -
होली खेलें आसफुद्दौला वजीर,
रंग सौबत से अजब हैं खुर्दोपीर
दस्ता-दस्ता रंग में भीगे जवां
जैसे गुलदस्ता थे जूओं पर रवां
कुमकुमे जो मारते भरकर गुलाल
जिसके लगता आन कर फिर मेंहदी लाल
मीर के दिल पर छाई होली की मस्ती
इसके बाद ही मीर के दिल पर होली की मस्ती कुछ इस तरह छाई कि उन्होंने लिखा कि -
आओ साथी बहार फिर आई
होली में कितनी शादियां लाई
जिस तरफ देखो मार्का सा है
शहर है या कोई तमाशा है
फिर लबालब है आब-ए-रंग
और उड़े है गुलाल किस-किस ढंग
थाल भर-भर अबीर लाते हैं
गुल की पत्ती मिला उड़ाते हैं
शेर अली अफसोस ने भी होली की पेश की बानगी
नवाब आसफुद्दौला के दौर के ही एक दूसरे शायर शेर अली अफसोस ने भी अपने वक्त की होली को शायरी के जरिए कुछ इस तरह से होली की बानगी पेश की-
बुझी है ये होली पड़ा है ये खेल
हर एक तरफ है रंग की रेल पेल
बजाती है कोई खड़ी तालियां
मजे से है देती कोई गलियां
लगाती है कोई किसी के गुलाल
किसी के कोई दौड़ मलती है गाल
उड़े थे अबीरो गुलाल इस क़दर
किसी की न आती थी सूरत नजर
सआदत यार खां ‘रंगीन’ ने लिखा कि...
अपने तक्ल्लुस की तरह ही रंगीन मिजाज सआदत यार खां ‘रंगीन’ के लिए तो होली अपनी दिल की हसरतों को शब्दों में पिरोने का एक बहुत अच्छा मौका था, तो उन्होंने लिखा
भरके पिचकारियों में रंगीन रंग
नाजनीं को खिलायी होली संग
बादल आए हैं घिर गुलाल के लाल
कुछ किसी का नहीं किसी को ख्याल
चलती है दो तरफ से पिचकारी
मह बरसता है रंग का भारी
हर खड़ी है कोई भर के पिचकारी
और किसी ने किसी को जा मारी
भर के पिचकारी वो जो है चालाक
मारती है किसी को दूर से ताक
किसने भर के रंग का तसला
हाथ से है किसी का मुंह मसला
और मुट्ठी में अपने भरके गुलाल
डालकर रंग मुंह किया है लाल
जिसके बालों में पड़ गया है अबीर
बड़बड़ाती है वो हो दिलगीर
जिसने डाला है हौज में जिसको
वो यह कहती है कोस कर उसको
ये हंसी तेरी भाड़ में जाए
तुझको होली न दूसरी आए
लखनऊ की होली के मुरीद थे ख्वाजा हैदर अली ‘आतिश’
ख्वाजा हैदर अली ‘आतिश’ भी लखनऊ की होली के मुरीद थे, उन्होंने लखनऊ की होली को बयान करते हुए लिखा
होली शहीद-ए-नाज के खूं से भी खेलिए
रंग इसमें है गुलाल का बू है अबीर की
होली के सबसे बड़े दीवाने थे वाजिद अली शाह ‘अख्तर’
लखनऊ की तारीख में जो शख्स होली के सबसे बड़े दीवाने के तौर पर मशहूर है उसका नाम हैं वाजिद अली शाह ‘अख्तर’ जिसे आज तक उसका शहर जान-ए-आलम कहकर खिताब करता है।
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इंशा अल्लाह खां ने देवराज इंद्र और परियों से की होली की तुलना
उर्दू के एक और बड़े शायर इंशा अल्लाह खां इंशा ने तो नवाब सआदत अली खां की होली की तुलना देवराज इंद्र और उनकी परियों से करते हुए कहा था कि होली के समय नवाब साहब के साथ रहिए और आप पायेंगे कि देवराज इंद्र परियों के साथ ज्यादा खुश होते हैं कि नवाब सआदत अली खां अपनी हूरों के बीच। उन्होंने लिखा-
संग होली में हुजूर अपने जो लावें हर रात
कन्हैया बनें और सर पे धर लेवें मुकुट
गोपियां दौड़ पड़े ढ़ूंढे कदम की छैयां
बांसुरी धुन में दिखा देवें वही जमना तट
गागरे लेवें उठा और ये कहती जावें
देख तो होली जो बज्म होती है पनघट
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