जानें क्या है ताली और थाली बजाने के पीछे की कहानी, शाम 5 बजे सभी को है बजाना

22 मार्च को सुबह से ही पूरे देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र के आह्वान पर जनता कर्फ्यू लगा है। प्रधानमंत्री ने आज शाम 5 बजे लोगों से की ताली-थाली बजाने की अपील

Update: 2020-03-22 06:41 GMT

22 मार्च को सुबह से ही पूरे देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र के आह्वान पर जनता कर्फ्यू लगा है। इस कर्फ्यू के साथ प्रधानमंत्री ने आज शाम 5 बजे लोगों से घर की छत पर, बालकनी में और घर के दरवाजे, खिड़कियों पर आकर ताली, थाली बजाने की भी अपील की है। सोशल मीडिया पर इस पर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रिया आ रही है। दरअसल इसका कुछ लाभ है भी या नहीं, क्या इससे कोरोना भागेगा। इसके पीछे वैज्ञानिक और धार्मिक पक्ष क्या है बता रहे हैं पंडित राकेश झा

इतिहास से है ताल्लुख

दरअसल ताली और थाली बजाने से कोरोना का कोई लेना-देना नहीं है। इन दिनों लोगों में कोरोना को लेकर डर का माहोल बना हुआ है। इसी डर को कम करने के लिए ताली और थाली बजाने की बात प्रधानमंत्री ने की है। दरअसल रोग हो या शत्रु उससे जीत हासिल करने के लिए सबसे पहले हमारे इरादों को मजबूत होना ज़रूरी है।

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हमें इस समय कमजोर नहीं पड़ना है, सबको एकजुट होकर इस गंभीर हालात से लड़ना है। लेकिन इसके पीछ महज इतनी बात नहीं है। इतिहास के पन्नों में जाकर देखेंगे तो आपको यह भी पता लगेगा कि इसी तरह की एक पहल से भगवान राम के पूर्वज महाराजा रघु ने कमाल कर दिखाया था और अपने जमाने से गंभीर रोग का अंत कर दिखाया था।

ढुंढी नाम की थी एक राक्षसी

महाराजा रघु के समय में एक राक्षसी ढुंढी कहीं से आ गई। यह राक्षसी बच्चों की हत्या कर देती थी। इससे पूरे राज्य में हाहाकर मचा था। इसे वरदान प्राप्त था कि इसे ना देवता मार सकते थे ना मनुष्य। इसे अस्त्र, शस्त्र से भी नहीं मारा जा सकता था। ऐसे में चिंतित रघु को राज पुरोहित ने सलाह दी कि इस राक्षसी का अंत बच्चे ही अपनी किलकारी से कर सकते हैं।

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महाराज रघु के कहने पर राज्य के सभी बच्चों ने हाथों में जलती लकड़ी लेकर खूब हो-हल्ला मचाना शुरू कर दिया। कुछ बच्चे ताली बजा रहे थे, कुछ खूब-हंसी ठिठोली कर रहे थे। बच्चों के शोर को सुनकर ढुंढी आई और बच्चों ने उसका अंत कर दिया। यहां राक्षसी ढुंढी प्रतीकात्मक भी हो सकती है जो एक महामारी रही हो जो बच्चों की जान ले रही थी। इससे बच्चों के आनंद-उत्साह ने हरा दिया।

सदियों से चली आ रही परंपरा

थाली-बाटी बजाने की जहां तक बात है तो हमारे देश में सदियों से परंपरा चली आ रही हैं कि बच्चों के जन्म के बाद घर की महिलाएं हाथी बजाती हैं। यह उत्साह का प्रतीक होता है। माना जाता है कि इससे घर से नकारात्मकता दूर जाती है और सकारात्मक ऊर्जा की वृद्धि होती है।

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देश के कई भागों में ऐसी मान्यता है कि दीपावली की रात में आधी रात बीत जाने पर ब्रह्म मुहूर्त में घर की महिला सूप-डगरा लेकर उसे एक सरकंडे से बजाती हैं। उस समय महिलाएं बोलती हैं अन्न,धन-लक्ष्मी घर आए। कलह, दरिद्रता बाहर जाए। यह भी सकारात्मकता को बढ़ाने का एक तरीका है। जो हमारे देश की परंपराओं में शामिल है।

वैज्ञानिक पक्ष भी है इसका

इन धार्मिक पहलुओं के बाद अगर इसके वैज्ञानिक पक्ष पर गौर करें तो एक खास तरह की ध्वनि से चिकित्सा भी किया जाता है। जिसे ध्वनि चिकित्सा कहते हैं। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि ध्वनि के विशेष कंपन से मन और मस्तिष्क प्रभावित होता है। जो शरीर की कोशिकाओं को एक्टिवेट करता है और रोगों से बचाता है। ओम के उच्चारण का लाभ तो वैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं।

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शंख की ध्वनि के बारे में कहा जाता है कि इसके नाद से जो कंपन उत्पन्न होता है वह धरती के अंदर सोए सूक्ष्म जीवों को भी प्रभावित करता है और जहां तक इसकी ध्वनि गूंजती है वहां तक नकारात्मक ऊर्जा में कमी आती है। हमारे देश में मंदिरों में और विशेष पूजा अवसरों पर घंटी-घड़ियाल बजाने के पीछे भी यह वैज्ञानिक कारण है कि इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

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