कविता जो चंद पंक्तियों में पिरोए सारे एहसास, चलिए आज इस दिन को ऐसे बनाए खास

कविता अपनी चंद पंक्तियों में पूरा सार ही समेत लेती हैं, मानों मां के आंचल में बच्चों के सारे कष्ट ही दूर हो गए हो। ऐसी होती है ये कविता। कविताओं से हम हैं, और हम से ही कविताएं। आज का दिन है 21 मार्च यानी विश्व हिंदी दिवस।

Update:2021-03-21 18:35 IST
चाहे दिल का हाल सुनाना हो, या मन की बात का बखान करना हो कविता से अच्छा और कोई जरिया नहीं है। दुनिया में हर दुख-सुख, खुबसुरती को कविताओं में पिरोया जा सकता है।

नई दिल्ली। चाहे दिल का हाल सुनाना हो, या मन की बात का बखान करना हो कविता से अच्छा और कोई जरिया नहीं है। दुनिया में हर दुख-सुख, खुबसुरती को कविताओं में पिरोया जा सकता है। ये अपनी चंद पंक्तियों में पूरा सार ही समेत लेती हैं, मानों मां के आंचल में बच्चों के सारे कष्ट ही दूर हो गए हो। ऐसी होती है ये कविता। कविताओं से हम हैं, और हम से ही कविताएं। आज का दिन है 21 मार्च यानी विश्व हिंदी दिवस। इस सुहाने अवसर पर आज हम आपकों बहुत ही रोमांचक और गजब की कविताओं से रूबरू कराना चाहते हैं। तो चलिए फिर हमारे साथ इसी लय में।

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गुलजार साहब की ये कविता

देखो, आहिस्ता चलो!

देखो, आहिस्ता चलो!

देखो, आहिस्ता चलो, और भी आहिस्ता ज़रा,

देखना, सोच-सँभल कर ज़रा पाँव रखना,

ज़ोर से बज न उठे पैरों की आवाज़ कहीं.

काँच के ख़्वाब हैं बिखरे हुए तन्हाई में,

ख़्वाब टूटे न कोई, जाग न जाये देखो,

जाग जायेगा कोई ख़्वाब तो मर जाएगा.

ख़ुदा

पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाज़ी देखी मैंने

काले घर में सूरज रख के,

तुमने शायद सोचा था, मेरे सब मोहरे पिट जायेंगे,

मैंने एक चिराग़ जला कर,

अपना रस्ता खोल लिया.

तुमने एक समन्दर हाथ में ले कर, मुझ पर ठेल दिया.

मैंने नूह की कश्ती उसके ऊपर रख दी,

काल चला तुमने और मेरी जानिब देखा,

मैंने काल को तोड़ क़े लम्हा-लम्हा जीना सीख लिया.

मेरी ख़ुदी को तुमने चन्द चमत्कारों से मारना चाहा,

मेरे इक प्यादे ने तेरा चाँद का मोहरा मार लिया

मौत की शह दे कर तुमने समझा अब तो मात हुई,

मैंने जिस्म का ख़ोल उतार क़े सौंप दिया,

और रूह बचा ली,

पूरे-का-पूरा आकाश घुमा कर अब तुम देखो बाज़ी.

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केदारनाथ सिंह

हाथ

उसका हाथ

अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा

दुनिया को

हाथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए।

फोटो-सोशल मीडिया

सुभद्राकुमारी चौहान

फूल के प्रति

डाल पर के मुरझाए फूल!

हृदय में मत कर वृथा गुमान।

नहीं है सुमन कुंज में अभी

इसी से है तेरा सम्मान।

मधुप जो करते अनुनय विनय

बने तेरे चरणों के दास।

नई कलियों को खिलती देख

नहीं आवेंगे तेरे पास।

सहेगा कैसे वह अपमान?

उठेगी वृथा हृदय में शूल।

भुलावा है, मत करना गर्व

डाल पर के मुरझाए फूल।

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नागार्जुन

गुलाबी चूड़ियाँ

प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,

सात साल की बच्ची का पिता तो है!

सामने गियर से उपर

हुक से लटका रक्खी हैं

काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी

बस की रफ़्तार के मुताबिक

हिलती रहती हैं…

झुककर मैंने पूछ लिया

खा गया मानो झटका

अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा

आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब

लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया

टाँगे हुए है कई दिनों से

अपनी अमानत

यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने

मैं भी सोचता हूँ

क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ

किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?

और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा

और मैंने एक नज़र उसे देखा

छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में

तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर

और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर

और मैंने झुककर कहा -

हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ

वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे

वरना किसे नहीं भाँएगी?

नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ!

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