Javelin throw: भाला फेंक हमेशा से रहा है लोकप्रिय, लेकिन ट्रेनिंग की सुविधा हर जगह मिलना मुश्किल
Javelin throw: एलिजाबेथ डेवेनपोर्ट पहली और एकमात्र भारतीय जेवलिन थ्रो खिलाड़ी हैं जिसने एशियाई खेलों में दो बार मेडल जीते हैं।
Javelin throw: ओलिंपिक खेलों के इतिहास में भारत को एथलेटिक का पहला गोल्ड मेडल भाला फेंक यानी जेवलिन थ्रो स्पर्धा में मिला है, जिसके बाद से इस खेल की काफी चर्चा शुरू हो गयी है। बहुत से लोग शायद न जानते हों, लेकिन भारत में लोकप्रिय एथलेटिक खेलों में भाला फेंक हमेशा से शामिल रहा है। इसकी वजह ये है कि कम संसाधन में इसे अपनाया जा सकता है। भारत में सभी स्टेडियम या स्कूल-कालेज जहां खेल सुविधाएं हैं, वहां भाला फेंक आमतौर पर मिल ही जाता है। ज्यादातर जगह पूर्व खिलाड़ी ही प्रशिक्षण देते हैं। बड़े केन्द्रों में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया से प्रमाणित प्रशिक्षक उपलब्ध होते हैं।
भारत की एलिजाबेथ ने जीता था पहला मेडल
भारत ने भले ही इससे पहले ओलिंपिक में एथलेटिक्स का कोई मेडल नहीं जीता है, लेकिन जहां तक भाला फेंक की बात है तो भारत में इस स्पर्धा के कई दमदार खिलाड़ी रहे हैं। अगर भाला फेंक में भारत के टॉप 5 एथलीट्स की बात की जाये तो उनमें नीरज कुमार के अलावा शिवपाल सिंह, अन्नू रानी, दविंदर सिंह कांग और एलिजाबेथ डेवेनपोर्ट का नाम शुमार है। शिवपाल सिंह वाराणसी के हैं और उन्होंने कई इंटरनेशनल इवेंट्स में मेडल जीते हैं। टोक्यो में भी इनसे पदक की उम्मीद थी। शिवपाल सिंह के करियर में चोट के कारन काफी उतार चढ़ाव रहे हैं।
मेरठ की अन्नू रानी के नाम महिलाओं की भाला फेंक स्पर्धा का नेशनल रिकार्ड है। 2014 के आशियां गेम्स में वह कांस्य पदक विजेता रही हैं। इसके अलावा भी कई टॉप इवेंट्स में पदक जीते हैं या क्वालीफाई किया है। जालंधर, पंजाब के दविंदर सिंह ने 2017 की एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था। सेना में नायब सूबेदार दविंदर सिंह पहले भारतीय हैं जिसने इंटरनेशनल एथलेटिक्स फेडरेशन की विश्व चैंपियनशिप में क्वालीफाई किया।
एलिजाबेथ डेवेनपोर्ट पहली और एकमात्र भारतीय जेवलिन थ्रो खिलाड़ी हैं जिसने एशियाई खेलों में दो बार मेडल जीते हैं। उन्होंने 1958 में रजत पदक और 1962 में कांस्य पदक जीता था। शुरुआती एशियाई खेलों में भारत की ज्यादातर महिला पदक विजेता एंग्लो-इंडियन समुदाय की रही हैं। उस जमाने में एथलेटिक जूतों से वंचित इन एथलीट ने खेलों में हिस्सा लिया और धाक जमाई।
मेरठ में बनते हैं जेवलिन
खेल इवेंट्स में इस्तेमाल होने वाले जेवलिन या भाले कई तरह के होते हैं। ये एल्युमिनियम, पीवीसी, बांस या लकड़ी से बने होते हैं और इनके प्रोडक्शन का गढ़ मेरठ और जालंधर हैं जहां से जेवलिन एक्सपोर्ट भी किये जाते हैं। निर्माण इकाइयों में हर उम्र के एथलीटों के हिसाब से हर साइज के जेवलिन बनाये जाते हैं जिनकी कीमत 500 रुपये से लेकर डेढ़ लाख रुपये तक होती है। जेवलिन बनाना भी एक तकनीकी काम है, क्योंकि जेवलिन में लचक और वजन बहुत मायने रखती है। जमीन से टकराने पर जेवलिन टूटना भी नहीं चाहिए।
ट्रेनिंग सेंटर
यूं तो जेवलिन थ्रो की ट्रेनिंग लगभग हर शहर के स्टेडियमों में होती है लेकिन प्रोफेशनल लेवल की ट्रेनिंग के दो सेंटर विख्यात हैं–पटियाला स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स का सेंटर और ओडिशा में भुबनेश्वर स्थित कलिंग स्टेडियम। इन दोनों सेंटरों पर जेवलिन थ्रो की ट्रेनिंग के बेहतरीन और विश्वस्तरीय इंतजाम हैं। वैसे तो एनआईएस में जेवलिन थ्रो की ट्रेनिंग काफी समय से हो रही है लेकिन भारतीय एथलेटिक्स महासंघ (एएफआई) ने पहली बार लिये एनआईएस पटियाला में एक विशेष स्ट्रेंथ-बिल्डिंग मशीन लगायी है जिसका नाम क्राफ्ट ट्रेनिंग जेराट (केटीजी) है। इससे भाला फेंक एथलीट अपनी मजबूती और रफ्तार बढ़ा सकेंगे। इससे उन्हें चोट का काफी कम जोखिम रहता है। इसी मशीन पर ओलिंपिक की तैयारी के दौरान नीरज चोपड़ा के अलावा शिवपाल सिंह को ट्रेनिंग कराई जा चुकी है। यह मशीन भाला फेंकने की ताकत बढ़ाता है। इस मशीन को डेवलप करने वाले जर्मन एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह मशीन युवा एथलीटों के लिए नहीं है, यह केवल उचित कोच की देखरेख में शीर्ष एथलीटों के प्रशिक्षण के लिए है। बताया जाता है कि एथलेटिक फेडरेशन जर्मन मशीनें चाहते थे, लेकिन जर्मन कंपनी ने देने से इनकार कर दिया। इसके बाद एक चीनी कंपनी से मशीन खरीदी गयी।
प्राइवेट कोचिंग
भारत में एथलेटिक्स प्रशिक्षण के क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर की सुविधाएँ बहुत सीमित हैं। बहुत कम ही जगह निजी तौर पर ट्रेनिंग की सुविधा या ट्रेनर उपलब्ध हैं। टोक्यो में गोल्ड मेडल जीतने वाले नीरज चोपड़ा ने भी शुरुआती प्रशिक्षण के लिए यूट्यूब का सहारा लिया था और वीडियो देख कर भाला फेंक के गुर सीखे थे। ऐसे में एथलेटिक्स या खासतौर पर जेवेलिन थ्रो के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए स्टेडियम या साई सेंटर ही जाना पड़ेगा। प्राइवेट सेक्टर की बात करें तो जेवलिन थ्रो की ट्रेनिंग देने के लिए 'इंडियन जेवेलिन' नाम से एक संस्था चल रही है जो भाला फेंक की ट्रेनिंग देती है।
संस्था की वेबसाइट के अनुसार इसे मियामी यूनिवर्सिटी से एमबीए कर चुके माइकेल मुसेलमान, बायोमेडिकल इंजीनियर आदित्य भार्गव और आईटी एक्सपर्ट सिद्धार्थ पाटिल संचालित कर रहे हैं हैं जबकि सलाहकारों में अमेरिका के रिटायर्ड एथलीट टॉम पेट्रानॉफ शामिल हैं। इसी तरह हिसार, हरियाणा में 'यूथ इंडिया स्पोर्ट्स काउंसिल' नाम से एक संस्था ट्रेनिंग प्रदान करती है। एथलेटिक स्पोर्ट्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया नाम से भी एक संस्था ट्रेनिंग देने का दावा करती है। इसके अलावा ऑनलाइन ट्रेनिंग देने वाले भी कई संस्थान और निजी ट्रेनर उपलब्ध हैं। इसके अलावा मुंबई, पुणे, हैदराबाद, रांची, चंडीगढ़ आदि शहरों में छोटे स्तर पर खेल प्रशिक्षण देने वाले संस्थान हैं जहाँ से बेसिक ट्रेनिंग लेने के बाद एडवांस लेवल के लिए 'साई' सेंटरों में जाया जा सकता है।