Sentinel Island: भारत का प्रतिबंधित द्वीप, जहां जाने पर मिलती है मौत

Sentinel Island: साल 1981 में जब एक जहाज़ गलती से इस आइलैंड के बीच जा फँसा। जिसके बाद आदिवासियों ने जहाज़ के लोगों पर हमला करना शुरू कर दिया किसी तरह उन्हें बचाया जा सका। ऐसी ही घटना 2004 में हुई , जब...

Update:2023-06-27 13:20 IST
Sentinel Island (Pic: Newstrack)

Sentinel Island: भारत में ही एक ऐसा द्वीप है जहां के लोग क्या खा रहे हैं ? कैसे जी रहे हैं ? यह किसी को नहीं पता है। यह द्वीप 23 वर्ग मील जितना है। यहाँ सुनामी और तूफ़ान भी आ चुके हैं, पर यहाँ के लोग कैसे इन आपदाओं से अपनी सुरक्षा करते हैं ये किसी को नहीं पता है। इस द्वीप का नाम नॉर्थ सेंटिनल द्वीप है। यहाँ आदिवासियों का ही बसेरा है। कहा जाता है यह द्वीप 60 हजार पुराना है। और यहाँ क़रीब 100 से भी कम लोग है।

यह द्वीप अंडमान निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर से सिर्फ़ 50 किलोमीटर की दूरी पर है।एक बार इस द्वीप में एक अमेरिकी टूरिस्ट जॉन एलन चाऊ की वहां के लोगों ने तीर मारकर हत्या कर दी थी। यहाँ के आदिवासी किसी भी लोगों से सम्पर्क नहीं करना चाहते हैं। यही वजह थी कि जॉन ने सम्पर्क बनाने की कोशिश की और उसे जान से हाथ धोना पड़ा। यदि लोग आदिवासी से सम्पर्क भी करना चाहे तो आदिवासी तीर कमान से हमला कर देते हैं।

होते रहे हैं हमले

साल 1981 में जब एक जहाज़ गलती से इस आइलैंड के बीच जा फँसा। जिसके बाद आदिवासियों ने जहाज़ के लोगों पर हमला करना शुरू कर दिया किसी तरह उन्हें बचाया जा सका। ऐसी ही घटना 2004 में हुई , जब सुनामी के वक्त सरकार ने हेलिकॉप्टर इस द्वीप में लोगों की जान बचाने के लिए भेजें तब भी आदिवासियों ने हेलिकॉप्टर पर ही तीर चलाने शुरू कर दिए थे। साल 2006 में दो मछुआरे अपनी नाव समेत भटककर आइलैंड के करीब पहुंचे, तो जान से हाथ धो बैठे।

यहाँ के आदिवासी का मानना है कि अन्य लोगों के सम्पर्क में आने से कोई बीमारी आ सकती है और उनकी मौत हो जाएगी। कहा जाता है ये लोग छोटे कद के और अश्वेत होते हैं। एक रिसर्च के मुताबिक, ये जारवा सुमदाय के कहलाते हैं। विभिन्न कारणों के चलते भारत सरकार ने जनजातियों को संरक्षित करने के लिए एक नियम जारी किया। इसे 1956 में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (आदिवासी जनजातियों का संरक्षण) विनियमन जारी किया। इसके बाद से इस क्षेत्र में प्रशासन के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के प्रवेश पर बैन लगा दिया गया है। यहां तक कि यहाँ न फ़ोटो खींची जा सकती है ना ही फ़िल्म बनायी जा सकती है।

आसमान से देखने पर यह द्वीप किसी भी आम द्वीप की तरह एकदम शांत दिखने वाला, हरा भरा और खूबसूरत नजर आता है। प्रशांत महासागर के नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड पर यह एक आदिम जनजाति है, जिसका आधुनिक युग से कोई लेना- देना नहीं है। वह ना तो किसी बाहरी व्यक्ति के साथ संपर्क रखते हैं और ना ही किसी को संपर्क रखने देते हैं। इस जनजाति का इतिहास देखें तो ये जाति पाषाण काल की कही जाती है, क्योंकि तब से लेकर अब तक इनके भीतर किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं आया है। इसकी वजह से इनके भीतर ग्रहण शीलता की कमी और बाहरी दुनिया से दूरी रखने का स्वभाव है।

भारत सरकार द्वारा कई प्रयास किए गए ताकि इस जनजाति के लोगों के हितों के लिए काम किया जाए और इनके जीवन को सुधारा जाए। पर अभी तक कोई भी प्रयास सफल नहीं हुए हैं। आदिवासी जनजातियों के लिए ही काम करने वाली सर्वाइवल इंटरनेशनल नामक संस्था का कहना है कि नॉर्थ सेंटिनल द्वीप पर रहने वाली जनजाति, इस ग्रह की सबसे कमजोर जनजाति है। उनके भीतर रोग प्रतिरोधक क्षमता नहीं है।मामूली सी बीमारी की वजह से भी उनकी मौत हो सकती है। इसलिए महामारी में इनकी जान जाने का खतरा बहुत ज्यादा है। सेंटिनली लोगों से किसी प्रकार का संपर्क ना होने के कारण दूर से ही इनकी तस्वीरों के जरिए इनकी जनगणना की जाती रही है। कहा जाता है ये लोग मछली पकड़कर भोजन हासिल करते हैं और द्वीप पर रहने वाले जंगली पौधों को इकट्ठा करके उनसे अपना पेट भरते हैं।आनुवंशिक रूप से इस जनजाति समूह द्वारा बोली जाने वाला भाषा सेंटिनलीज़ है। इस भाषा को समझना भी बहुत मुश्किल है क्‍योंकि द्वीप के आस-पास के क्षेत्रों में ऐसी भाषा नहीं बोली जाती है ।

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