History of Pratapgarh: यूपी और राजस्थान की अलग-अलग संस्कृति और आन बान और शान का गवाह रहा है जिला प्रतापगढ़
History of Pratapgarh: अगर हम बात करें राजस्थान में आने वाले प्रतापगढ की तो प्राकृतिक संपदा के धनी इस जिले को ’कान्ठल प्रदेश’ और देवगढ़ आदि के नाम से जाना गया, इस क्षेत्र का इतिहास काफी कुछ कहानियों को खुद में समेंटे हुए है।
UP and Rajasthan Pratapgarh History: प्रतापगढ़ का नाम सुनते ही कुछ क्षण के लिए आज के दौर की कई बड़ी राजनीतिक हस्तियों के चेहरे आंखों के सामने तैर जाते हैं। वहीं यहां की संस्कृति की सोंधी खुशबू और कई राज अपने सीने में छिपाए यहां के पर्यटन स्थल प्रतापगढ को बेहद खास बनाते हैं। लेकिन क्या आपको पता हैं कि भारत के प्रतिष्ठित जिलों में शुमार प्रतापगढ एक नहीं बल्कि दो हैं। एक प्रतापगढ यूपी के अर्न्तगत आता है, वहीं दूसरा राजस्थान में है।
यहां हम आपको इन दोनों ही जिलों की खूबियों से रूबरू करवाते हैं। अगर हम बात करें राजस्थान में आने वाले प्रतापगढ की तो प्राकृतिक संपदा के धनी इस जिले को ’कान्ठल प्रदेश’ और देवगढ़ आदि के नाम से जाना गया, इस क्षेत्र का इतिहास काफी कुछ कहानियों को खुद में समेंटे हुए है।
इस क्षेत्र पर भील प्रमुख का शासन था, उनके बाद अन्य शासकों ने शासन किया-
ये था प्रतापगढ़ का सूर्यवंशी इतिहास
सुविख्यात इतिहासकार महामहोपाध्याय पंडित गौरीशंकर हीराचंद ओझा 1863-1947 ईशवी में “प्रतापगढ़ का सूर्यवंशीय राजपूत राजपरिवार मेवाड़ के गुहिल वंश की सिसोदिया शाखा से सम्बद्ध रहा है“। महाराणा कुम्भा 1433-1468 ईस्वी में चित्तौडगढ़ और महाराणा प्रताप भी इसी वंश के प्रतापी शासक थे, कहा जाता है कि उनके चचेरे भाई क्षेम सिंह से उनका संपत्ति संबंधी कोई पारिवारिक विवाद कुछ इतना बढ़ा कि नाराज़ महाराणा कुम्भा ने उन्हें अपने राज्य चित्तौडगढ़ से ही निर्वासित कर दिया। वहीं कुछ का कहना है कि क्षेमकर्ण स्वयं घरेलू-युद्ध टालने की गरज से चित्तौडगढ़ से रुखसत हो गए।
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उन का परिवार मेवाड के दक्षिणी पर्वतीय इलाकों में कुछ समय तक तो लगभग विस्थापित सा रहा, बाद में क्षेमकर्ण ने सन 1437 ईस्वी में मेवाड़ के दक्षिणी भूभाग,देवलिया आदि गांवों को तलवार के बल पर ’जीत कर’ अपना नया राज्य स्थापित किया। 26 जनवरी 2008 को प्रतापगढ़ को राजस्थान के मानचित्र पर 33वां जिला होने का गौरव प्राप्त हुआ। यह उदयपुर, बांसवाड़ा और चित्तौड़गढ़ जिलों से लिए गए क्षेत्रों द्वारा बनाया गया है।
लोक कला एवं अनोखे पर्यटन स्थल का है गढ़
यह शहर अपनी कला-संस्कृति, कांच-जड़ित हस्तनिर्मित खूबसूरत आभूषण के साथ खाने में सोंधे गरम मसाले जीरा और हींग के लिए प्रसिद्ध है। अरावली की खूबसूरत पहाड़ियों और मालवा पठार के बीच कई ऐतिहासिक ईमारतों और बाग बावलियों के स्थित होने के कारण प्रतापगढ़ एक प्रसिद्ध पारिस्थितिक पर्यटन स्थल के तौर पर अपनी खास पहचान रखता है।यह शहर कई आदिवासी गांवों से घिरा हुआ है। प्रतापगढ़ में एक पहाड़ी किला है जो पश्चिमी भारतीय राज्य महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित है । यह किला महाबलेश्वर हिल स्टेशन से 24 किलोमीटर दूर स्थित है। किला अब एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल में गिना जाता हैं। जिसको देखने के लिए सैकड़ों की संख्या में सैलानी हर वर्ष भारत भ्रमण के लिए आते हैं।
किले का ऐतिहासिक महत्व प्रतापगढ़ की लड़ाई के कारण है , जो यहां 10 नवंबर 1659 को छत्रपति शिवाजी महाराज और बीजापुर सल्तनत के जनरल अफजल खान के बीच हुई थी । छत्रपति शिवाजी द्वारा अफ़ज़ल खान की हत्या के बाद बीजापुर सेना पर मराठों की निर्णायक जीत हुई।
क्षेत्रीय राजनीति का गढ़ रहा है राजस्थान का जिला प्रतापगढ
प्रतापगढ़ जिला हमेंशा से ही क्षेत्रीय राजनीति का एक अहम हिस्सा रहा है। जिसकी एक मिसाल के तौर पर एक वाकया काफी प्रसिद्ध है कि, सन 1778 में पुणे के एक रसूखदार मंत्री सखाराम बापू बोकिल को उनके प्रतिद्वंद्वी नाना फडनीस ने आपसी राजनैतिक प्रतिस्पर्धा के चलते 1778 में प्रतापगढ़ में कैद कर लिया था। जब तक कि रायगढ़ में उनकी मृत्यु नहीं हो गई तब तक उन्हें उसी किले में कैद करके रखा गया। कुटिल राजनीति में माहिर 1796 नाना फड़नीस ने 1796 में दौलतराव शिंदे और उनके मंत्री बलोबा की साजिशों से बचकर महाड जाने से पहले प्रतापगढ़ में अस्त्र-शस्त्र से लैस एक मजबूत छावनी को तैयार किया। 1818 में, तीसरे आंग्ल-मराठा युद्ध के दौरान अंग्रेजों की ताकत के आगे प्रतापगढ के महाराजा को आत्मसमर्पण करना पड़ा था। यह मराठा सेनाओं के लिए एक बड़ी क्षति थी। स्वतंत्रता के बाद, 1948 में प्रतापगढ़ रियासत टूटकर राजस्थान संघ में शामिल हो गई।
कई मशहूर देवस्थल हैं इस जिले की खास पहचान
राजस्थान स्थित प्रतापगढ के देवलिया में आज भी पुराना राजमहल, भूतपूर्व-राजघराने के स्मारक़, छतरियां, तालाब, बावड़ियाँ, मंदिर और कई अन्य ऐतिहासिक अवशेष आज भी इस जगह की राजसी ठाठ-बाठ की कहानी कहते नजर आते हैं। देवगढ़ में स्थापित ’भ्रामरीदेवी’ या ’भंवरमाता’ शक्तिपीठ, ’अम्बामाता’, ’कमलेश्वर महादेव’, ’गुप्तेश्वर’ मंदिर आदि प्रमुख देवस्थान में गिने जाते हैं। मातृशक्ति के एक रूप ’बीजमाता’ का एक पुराना मंदिर, जैनियों का भगवान मल्लिनाथ मंदिर और रघुनाथद्वार भी हैं, जहाँ राम और लक्ष्मण की मूर्तियां बड़ी-बड़ी राजस्थानी मूंछों के साथ गढ़ी गई हैं। इसी मंदिर की छत पर सूर्य के प्रकाश की सहायता से समय बताने वाली संगमरमर की धूप घड़ी भी है। ’भ्रामरीदेवी’ या ’भंवरमाता’ शक्तिपीठ (छोटी सादडी), ’अम्बामाता’, ’कमलेश्वर महादेव’, ’गुप्तेश्वर’ मंदिर आदि प्रमुख देवस्थान में गिने जाते हैं।
यूपी प्रतापगढ़ जिले से होकर बहती हैं पवन नदियां साईं, गंगा और गोमती
यूपी के प्रतापगढ़ जिले से होकर एक नहीं बल्की कई पवन नदियां बहती हैं गंगा, गोमती और सई। यहां इन बड़ी नदियों के साथ ही आधा दर्जन छोटी नदियां भी मिली हैं। यह अलग बात है कि ये दो छोटी नदियां अस्तित्व खो बैठी हैं और शेष बची नदियां भी संकट में हैं। वहीं बड़ी नदियों में सई प्रदूषण की शिकार होकर अपने आकार को खोती जा रही हैं।
यहां से प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने पदयात्रा करके अपने राजनैतिक करियर को दी थी धार*य
उत्तर प्रदेश में आंवले की बेशुमार पैदावार के लिए एक मशहूर जिले के तौर पर स्थित प्रतापगढ को 70 वें जिले के रूप में जाना जाता है। यहां के विधानसभा क्षेत्र पट्टी से ही देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने पदयात्रा करके अपने राजनैतिक करियर को धार दी थी। धरती को राष्ट्रीय कवि हरिवंश राय बच्चन की जन्म -स्थली के नाम से भी जाना जाता है। प्रतापगढ़ में बेहद प्रचलित मंदिर बेल्हा देवी है जो कि सई नदी के किनारे बना है। इसलिए इस जिले को बेल्हा भी कहते हैं । साथ ही इसे ऐतिहासिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।
प्रतापगढ़ की राजनीति में तीन मुख्य राजघरानों का नाम है मशहूर
प्रतापगढ़ के विधानसभा क्षेत्रों के नाम- रानीगंज, कुंडा, विश्वनाथगंज, पट्टी, वीरापुर, गढ़वारा, सदर, बाबागंज, बिहार, प्रतापगढ़ और रामपुर खास है। प्रतापगढ़ की राजनीति में यहाँ के तीन मुख्य राजघरानों का नाम हमेशा मशहूर रहा है। इनमें से पहला नाम है बिसेन राजपूत राय बजरंग बहादुर सिंह का। राय बजरंग बहादुर सिंह हिमांचल प्रदेश के गवर्नर थे तथा स्वतंत्रता सेनानी भी थे। जिनके वंशज रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया हैं। दूसरा परिवार सोमवंशी राजपूत राजा प्रताप बहादुर सिंह का है और तीसरा परिवार राजा दिनेश सिंह का है। इनकी रियासत कालाकांकर क्षेत्र है। जो पूर्व में भारत के वाणिज्य मंत्री और विदेश मंत्री जैसे पदों पर आसीन रह चुके हैं। दिनेश सिंह की पुत्री राजकुमारी रत्ना सिंह भी राजनीति में अपने कॅरियर को चमकाते हुए प्रतापगढ़ लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से तीन बार 1996, 1999 और 2009 में सांसद चुनाव में विजय भी हासिल कर चुकीं हैं।
कुल 17 विकास खंडो में बंटा हैं ये जिला
प्रतापगढ़ जिले को कुल 17 विकासखंडों में बांटा गया है । वहीं इस जिले के अंतर्गत कुल 7 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र आते हैं। विकास खण्डों की बात करें तो क्रमशः-कुंडा, कालाकांकर, रामपुर संग्रामगढ़, बाबागंज, बिहार, मान्धाता, लक्ष्मणपुर, सांगीपुर, लालगंज, संडवा चंद्रिका, प्रतापगढ़ सदर, मंगरौरा, शिवगढ़, गौरा, बाबा बेलखरनाथ धाम, पट्टी और आसपुर देवसरा क्षेत्र आते हैं।
प्रमुख पर्यटन और तीर्थ स्थल
यूपी प्रतापगढ़ में प्रमुख पर्यटन और तीर्थ स्थल की बात करें तो यहां कई ऐतिहासिक स्थल और प्रसिद्ध मंदिर मौजूद हैं। आइए जानते हैं- क्यों खास है कटरा गुलाब सिंह स्थल
कटरा गुलाब सिंह बाजार प्रतापगढ़ जिले का बेहद मशहूर पर्यटन स्थल के तौर पर शुमार है। प्रतापगढ़ के मुख्य पर्यटक स्थलों के रूप में विख्यात पांडव कालीन प्राचीन मंदिर बाबा भयहरण नाथ धाम कटरा गुलाब सिंह बाजार के पूर्व में स्थित है। 18वी शताब्दी के महान क्रांतिकारी बाबू गुलाब सिंह ने इस बाजार को बसाया था। महाभारत कल में पांडव अज्ञातवास के दौरान यहाँ टिके थे। इसी ग्राम के निकट बकुलाही नदी के तट पर कहावत है कि महाभारत के पांच पांडवो में एक भाई भीम ने राक्षस बकासुर का वध किया था।
प्रतापगढ़ जिले में है विश्व का इकलौता किसान देवता मंदिर
प्रतापगढ़ जिले में विश्व का इकलौता किसान देवता मंदिर स्थित है। इस मंदिर की खास बात यह है कि यह जाति और धर्म या संप्रदाय के बटवारे के बिना प्रेम और सौहार्द के साथ किसान देवता के नाम से लोग इस मंदिर के प्रति श्रद्धा भाव रखते है। एक ऐसा धार्मिक संस्थान है जहां किसी भी धर्म व संप्रदाय के लोग आ सकते हैं। इस मंदिर का उद्देश्य किसानों को सम्मान दिलाना है। किसान देवता मंदिर प्रतापगढ़ जिले के पट्टी तहसील के सराय महेश ग्राम में निर्मित है। किसान पीठाधीश्वर योगिराज सरकार ने किसान देवता मंदिर का निर्माण करवाया। वहीं यहां पर बेलखरनाथ मंदिर प्रतापगढ़ जिले के पट्टी में स्थित है। भगवान शिव को समर्पित बेलखरनाथ मंदिर इस जिले के प्राचीन मंदिरों में से है। प्रत्येक वर्ष महा शिवरात्रि के अवसर पर यहां मेले का आयोजन किया जाता है।
संडवा चन्द्रिका गांव स्थित चन्द्रिका देवी मंदिर में चन्द्रिका देवी मेले का आयोजन किया जाता है। श्रीमंधारस्वामी मंदिर यशकीर्ति भटारक सीमा पर स्थित है। इस मंदिर में र्तीथकर श्रीमंधारस्वामी की विशाल प्रतिमा स्थित है। इस प्रतिमा में श्रीमंधारस्वामी पदमासन की मुद्रा में है। केशवराजजी मंदिर भी काफी लोकप्रिय है।
राजनीति का शिकार हुआ ये जिला
ट्रैक्टर और आंवले की फैक्ट्री होने के बावजूद इस जिला रोजगार और रोजी के लिए तरस रहा हैं। देश की राजनीति में एक अहम पारी खेलने वाला जिला प्रतापगढ फिलहाल ठाकुर और ब्राह्मण के बीच की आग में स्वाहा हो रहा है। प्रतापगढ़ में वर्तमान समय में शिक्षा, बिजली, स्वच्छता और विकास की बेहद जरूरत है। यह शहर पिछले कई सालों से अपने उद्धार की रांह तक रहा है।