लखनऊ: एवरेस्ट जाने में हमारी टीम को जितना मजा आया था, उतना ही मजा वापस आने में भी आ रहा था। हमारी टीम एवरेस्ट से वापस आ रही थी। सर्द मौसम की ठंडी हवाएं हमें जमा रही थी, लेकिन हमारे हौसले तो आग की तरह दहक रहे थे। वापस आते टाइम हमें किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, इसके बारे में हम आपको बताते हैं।
(राइटर दुनिया के पहले जर्नलिस्ट हैं, जो अंटार्कटिका मिशन में शामिल हुए थे और उन्होंने वहां से रिपोर्टिंग की थी। )
हमारे लोबूचे पहुंचते-पहुंचते मौसम कुछ ठीक हो गया था। बादल तो अब भी छाए हुए थे। लेकिन तेज हवा चलने के कारण ठंड बढ़ गई थी। साथ ही विजिबिलटी भी बढ़ गई थी, जिसके कारण अब हम ज्यादा दूर तक देख सकते थे। लोबूचे शिविर से गोरखशेप तक जाते ऊपर वक्त हमें 7 घंटे लगे थे। मगर वापसी में हमने ये सफर करीब चार घंटे में ही तय कर लिया।
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ऊपर जाते समय लोबूचे से ही राजेंद्र की तबियत बिगड़नी शुरू हुई थी और यहीं से उसने डाइमौक्स खानी शुरू की थी, लेकिन वापसी के दौरान वो पाइल्स की नई समस्या से बुरी तरह जूझ रहा था और काफी परेशान था। इसी कारण वापसी में जब लोबूचे में राजेंद्र को टाॅयलेट जाने की जरूरत महसूस हुई। तो हमें फिर से उसी ‘पीक फिफ्टीन’ टी हाउस में ही जाना पड़ा।
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जहां हम ऊपर चढ़ते समय ठहरे थे। वहां हमें फिर से पिछली बार वाले नाटे और कुटिल चेहरे वाले मैनेजर का सामना करना पड़ा। उसने राजेंद्र से शौचालय के इस्तेमाल के लिए तीस रूपए मांगे और हमें देने भी पड़े। पैसे लेने के बाद पहले की तरह ही उसने अपने विदूषकनुमा अंदाज से हमें खुश करने की कोशिशें शुरू कर दीं।
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हमें इससे कोई खुशी तो नहीं हुई। मगर हमने उसे अभियान में मिले सबसे अप्रिय इंसान की तरह याद रखने के लिए उसका एक कार्ड जरूर ले लिया। इसके बाद हम फिर आगे बढ़ गए क्योंकि हमें शाम तक फैरिचे पहुंचना था।
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थुकला पास पर कुछ देर रूककर हमने पर्वतारोहियों के स्मारकों के पास एवरेस्ट और आस पास की चोटियों में शहीद हुए पर्वताराहियों के प्रति अपना सम्मान प्रकट किया और फिर थुकला के लिए नीचे उतरना शुरू कर दिया। थुकला पास में हवाएं तेज थीं और वहां से नीचे उतरने वक्त भी यह हवा हमारे लिए परेशानी पैदा करती रही थी।
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थुकला पास की चढ़ाई जितनी विकट है, वहां से नीचे उतरना भी उतना ही कठिनाई भरा है। थुकला पहुंचकर कर हमने राहत की सांस ली क्योंकि इससे आगे का मार्ग तुलनात्मक रूप से आसान था।
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थुकला सिर्फ एक पड़ाव है, यहां कोई स्थायी गांव नहीं है। हमेशा तेज हवाओं से घिरा यह पड़ाव अपनी खास स्थिति के कारण एवरेस्ट मार्ग में आने वाले हर आरोही, भारवाही या अन्य स्थानीय लोगों के लिए एक अनिवार्य पड़ाव बन गया है। सभी यहां पर रूकते हैं, खाते पीते हैं और फिर आगे बढ़ जाते हैं। थुकला से कुछ लोग लोबूचे शिखर आरोहण के लिए भी जाते हैं। वैसे लोबूचे आरोहण करने वाले ज्यादातर पर्वतारोही या तो फैरिचे से चढ़ाई शुरू करते हैं या फिर लोबूचे से।
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लोबूचे वस्तुतः दो अलग अलग शिखर हैं। एक लोबूचे और दूसरा लोबूचे ईस्ट। एक दूसरे से जुड़े यह दोनों शिखर आकार में एक-दूसरे से बहुत मिलते-जुलते हैं। दोनों शिखर तीन पिरामिडों के आकार के हैं। प्रायः पर्वतारोही इन दोनों शिखरों का आरोहण एक साथ करते हैं। लोबूचे मुख्य शिखर की दक्षिणी रिज से होकर लोबूचे ईस्ट का आरोहण किया जाता है। लोबूचे आरोहण के लिए 5200 मीटर की ऊंचाई पर आधार शिविर बनाया जाता है। आधार शिविर से भी अमा देवलम, पुमोरी, एवेरस्ट और खूम्बू घाटी का विहगंम दृश्य वैसा ही दिखता है जैसा लोबूचे श्खिर से।
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हालांकि लोबूचे से पूरे एवरेस्ट क्षेत्र का 360 डिग्री का नजारा दिखता है और पूरे इलाके की प्रायः सभी बड़ी छोटी चोटियां और नदी घाटियां एक साथ दिखाई देती हैं। प्रायः लोबूचे शिखरों का आरोहण एवरेस्ट अभियान दलों के सदस्य अपने अनुकूलन और अभ्यास अभियानों के लिए करते हैं जबकि यूरोप के पर्वतारोहियों के बीच ये एक प्रशिक्षण शिखर के रूप में लोकप्रिय हैं। सामान्य तौर पर इन शिखरों का आरोहण अधिक तकनीकी और कठिन नहीं माना जाता और इसीलिए इन्हें ट्रेकिंग पीक भी कहा जाता है।
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हर वर्ष एवरेस्ट क्षेत्र की इन चोटियों पर आरोहण के लिए विश्व के अनेक देशों के पर्वतारोही यहां आते हैं और नेपाल तथा एवरेस्ट क्षेत्र के गांवों की अर्थव्यवस्था को मजबूती देते हैं। इन्ही शिखरों के आरोहण से वे शेरपा भी निखरते हैं। जो आगे चल कर एवरेस्ट के जाबांज बन कर दूसरे पर्वतारोहियों को एवरेस्ट पहुंचाने को साधन बनते हैं।
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हम दोपहर से पहले थुकला पहुंच गए थे। थुकला एक महत्वपूर्ण पड़ाव तो है ही, भौगोलिक रूप से एवरेस्ट क्षेत्र से आने वाले जल प्रवाह के लिहाज से भी यह बहुत विशिष्ट महत्व रखता है। थुकला के बाद स्थानीय जल धाराओं के जल प्रवाह की गति कुछ मंद हो जाती है और घाटी बहुत चौड़ी हो जाती है।
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थुकला से नीचे एवरेस्ट क्षेत्र के खुम्बू ग्लेशियर से दूधकोसी से की मूल धारा में रूप में आने वाला पानी लोबूचे की ओर से आने वाली धाराओं से मिल जाता है। फैरिचे से कुछ आगे इसमे दिंगबोचे की और से आने वाली इमजा खोला नामक धारा का पानी भी मिल जाता है और इस प्रकार से यह दूधकोसी का रूप ले लेती है।
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एवरेस्ट के मार्ग में दूधकोसी का साथ बहुत लंबा रहता है। हमने जब से मात्रा शुरू की थी। तब से बेस कैंप के आसपास के दिनों को छोड़ कर प्रायः हर दिन हमें किसी न किसी रूप से दूधकोसी का सानिध्य मिलता रहा था। थुकला में कुछ हल्का-फुल्का खा कर जब हमने आगे बढ़ना शुरू किया, तो हमें वह क्षण भी याद आया।
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जब हमने पहली बार दूधकोषी को देखा था और उस शाम में दूध जैसी वह नदी हमें इतना मुग्ध कर गई थी कि हम अंधेरा ढलने तक उसे निहारते रहे थे। राजेंद्र देर तक फोटो खींचते खिंचवाते रहे थे। अब हम फिर दूधकोसी के किनारे थे। नीचे, बहुत नीचे फैरिचे में दूधकोसी बड़ी शांत गति से बहती हुई हमारा इंतजार कर रही थी।
गोविंद पंत राजू