नर्क चतुर्दशी आज: जानें क्या है इस दिन का धार्मिक महत्व और क्यों की जाती यम की पूजा
लखनऊ: दिवाली के एक दिन पहले आज नरक चतुर्दशी का त्यौहार है। इसे नरक चौदस या नर्क चतुर्दशी या नर्का पूजा के नाम से पूरे भारत में जाना जाता है। दिवाली का यह पर्व हिन्दुओं का सबसे बड़ा पर्व कहा जाता है।
दीपावली को एक दिन का पर्व कहना उचित नहीं होगा। इस पर्व का जो महात्मय है उस दृष्टि से यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्यौहार है जैसे मंत्री समुदाय के बीच राजा। दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस फिर नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली फिर दीपावली और गोधन पूजा, भाईदूज का त्यौहार मनाया जाता है। इसलिए इसे त्यौहारों का राजा भी कहा जाता है। आज newstrack.com आपको नरक चतुर्दशी रूप चतुर्दशी और यम चतुर्दशी के बारे में बताने जा रहा है।
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नरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली भी कहते हैं। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले, रात के वक्त उसी प्रकार दीए की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात को। इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं।
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एक कथा के अनुसार नरक चतुर्दशी का माहात्म्य
आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष में दीयों की बारात सजायी जाती है। यह दीपावली के एक दिन पहले मनाया जाता है।
एक और कथा के अनुसार
इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक अन्य कथा यह है कि रन्ति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके सामने यमदूत आ खड़े हुए। यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है। पुण्यात्मा राजा की अनुनय भरी वाणी सुनकर यमदूत ने कहा हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक भूखा ब्राह्मण लौट गया यह उसी पापकर्म का फल है।
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दूतों की इस प्रकार कहने पर राजा ने यमदूतों से कहा कि मैं आपसे विनती करता हूं कि मुझे एक वर्ष का और समय दे दो। यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचा और उन्हें सब वृतान्त कहकर उनसे पूछा कि कृपया इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय है। ऋषि बोले हे राजन् आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्रह्मणों को भोजन करवा कर उनसे अनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें।
राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।
इसलिए इस दिन को रूप चतुर्दशी कहा जाता है...
इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने का बड़ा महात्मय है। स्नान के पश्चात विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना अत्यंत पुण्यदायक कहा गया है। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है। इसलिए इस दिन को रूप चतुर्दशी कहा जाता है।
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कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को उपरोक्त कारणों से नरक चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी और छोटी दीपावली के नाम से जाना जाता है। और इसके बाद क्रमशः दीपावली, गोधन पूजा और भाई दूज मनायी जाती है।
यम चतुर्दशी का महत्व
दिवाली के एक दिन पहले छोटी दीपावली और नरक चतुर्दशी का भी त्योहार मनाया जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन दीपदान किया जाता है। जिसे यम-दीपदान कहते हैं। मृत्यु का भय संसार में सबसे बड़ा भय माना जाता है। इंसान के भाग्य में अकाल मृत्यु क्यों लिखी है यह कोई नहीं जानता मगर इसके भय को दूर किया जा सकता है।
ऐसी मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के दिन की गई पूजा से व्यक्ति यम के द्वारा दी जानें वाली यातनाओं से मुक्त हो जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता यम की पूजा करने का भी विधान है। दीपदान करने से अकाल मृत्यु का डर खत्म होता है। यह दिन साल में केवल एक दिन आता है, जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा दीपदान करके की जाती है।
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नरक चतुर्दशी व छोटी दिवाली पर यम तर्पण मंत्र
यमय धर्मराजाय मृत्वे चान्तकाय च ।
वैवस्वताय कालाय सर्वभूत चायाय च ।।
यमदेवता के लिये ऐसे करें दीपदान
माना जाता है कि यम की दिशा दक्षिण मानी जाती है। धनतेरस की शाम यम का दीया दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके जलायें और इसे यम देवता को समर्पित करें। तत्पश्चात दिये को अन्न की ढ़ेरी पर घर की दहलीज पर रख दें। ऐसा करने से अकाल मृत्यु का भय टल जाता है। उपर्युक्त सारे तथ्य आध्यात्मिक ग्रन्थों के आधार पर बताये गए हैं। जिनका कि धर्मग्रन्थों और पुराणों में लेख मिलता है।