RAW ने जो किया है वो दूसरों के लिए सिर्फ सपना है, जानिए पूरी कुंडली

Update: 2018-08-30 12:03 GMT

नई दिल्ली : आज हम आपको बताएंगे इंडिया की सुरक्षा एजेंसी रॉ यानि रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के बारे में। रॉ का नाम दुनिया भर में काफी इज्जत के साथ लिया जाता है। जहां सीआईए और मोसाद अपनी शातिर चालों और खूंखार तरीकों के लिए दुनिया में जानी जाती हैं। वहीं रॉ शांति से अपना काम निपटा निकल लेती है। बांग्लादेश का उदय इसका सबसे बड़ा नमूना है।

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दिल्ली के लोदी रोड की एक 11 मंजिली ईमारत में रॉ का ऑफिस है। दूर से देखने पर ये आम ऑफिस जैसा ही लगता है। कहा जाता है कि इसकी दीवारों के कान नहीं है।

आपको बता दें, एजेंट्स इसे 'आर एंड डब्लू' कहते हैं न कि 'रॉ'।

आइए जानते हैं कब हुआ रॉ का गठन

1962 के भारत-चीन युद्ध और 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद बाह्य खुफिया एजेंसी की जरूरत देश को महसूस होने लगी थी। इसके बाद 21 सितंबर 1968 को पीएम इंदिरा गांधी ने रॉ का गठन किया। इंदिरा ने रामेश्वर नाथ काव को इसका पहला निदेशक बनाया। 1968 से पहले तक भारत की आंतरिक एवं बाह्य खुफिया सूचनाओं की जानकारी आईबी जुटाया करती थी। लेकिन कई मौकों पर इसके फेल होने के बाद रॉ ने बाह्य खुफिया एजेंसी के तौर पर अपना काम संभाला जो आजतक चल रहा है।

रॉ इस समय पड़ोसी देशों में होने वाले सैन्य और राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर रखती है। इसके साथ ही रॉ पाकिस्तान और चीन के समर्थक देशों की भी निगरानी करती है। रॉ के एजेंट्स दुनिया भर में हैं। ये उन देशों में भी तैनात हैं जहां भारतीय प्रवासी न के बराबर हैं।

रॉ के वो मिशन जिन्होंने दुनिया को बताया हम किसी से कम नहीं

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बांग्लादेश का जन्म

70 के आसपास जब पूर्वी पाकिस्तान, पाकिस्तान से अलग होने के लिए कुलबुला रहा था। उस समय रॉ ने मुजीबुर रहमान और मुक्ति वाहिनी को हर तरह से मदद दी। उसके लड़ाकों को फौजी ट्रेनिंग और हथियार मुहैया करवाए। जिसके बाद दुनिया के नक़्शे पर उदय हो सका ‘बांग्लादेश’।

मुजीबुर रहमान ने मान ली होती बात तो मरते नहीं

रॉ ने मुजीबुर को पहले ही बता दिया था कि वो निशाने पर हैं। उनकी हत्या की साजिश रची जा रही है। लेकिन उन्होंने इस चेतावनी को नहीं माना और बेमौत मारे गए।

ऑपरेशन काहुटा

1978 के आसपास रॉ ने ऑपरेशन काहुटा आरंभ किया। इस ऑपरेशन में रॉ ने पाकिस्तान के लॉन्ग रेंज मिसाइल प्रोग्राम का पता लगा लिया था। इसके लिए रॉ ने नाई की उस दुकान को अपना निशाना बनाया। जहां इस प्रोग्राम से जुड़े वैज्ञानिक अपने बाल कटवाने आते थे। उनके बालों को वहां से एकत्र कर भारत भेजा गया। जहां लैब में डीएनए जांच के बाद पता चला की उनमें रेडियो एक्टिवेशन पदार्थ मौजूद है। ये बात प्रधानमंत्री ‘मोरारजी देसाई’ को पता चली तो उन्होंने पाकिस्तानी हुक्मरानों को इसके बारे में बता दिया और रॉ के एजेंट पकडे गए उन्हें सजा का सामना करना पड़ा।

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ऑपरेशन चाणक्य

कश्मीर में सक्रीय आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन से निपटने के लिए रॉ ने घाटी में 'ऑपरेशन चाणक्य' चलाया। रॉ के एजेंट को हिजबुल में प्लांट किया गया। उस एजेंट ने उनमें फूट भी डाली जिसकी वजह से उन्ही के संगठन में भारत के कुछ समर्थक भी पैदा हो गए। इसका नतीजा ये रहा कि कुछ ही दिनों में हिजबुल 2 धड़ों में बंट गया।

ऑपरेशन लीच

बर्मा में लोकतंत्र की स्थापना के लिए रॉ ने वहां काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (केआईए) की सहायता की। बागियों को हथियार और रसद मुहैया करवाई गई। कुछ समय बाद जब केआईए ने पूर्वोत्तर के उग्रवादी संगठनों को हथियार और ट्रेनिंग देनी शुरू की तो रॉ ने केआईए के सफाए के लिए ऑपरेशन लीच आरंभ किया। 1998 में इसके छह बड़े नेताओं को मार दिया गया और 34 अराकानी गुरिल्लों को गिरफ्तार कर लिया गया।

मुंबई हमला

रॉ ने मुंबई हमले से काफी पहले ही आतंकियों के बीच हुई फोन बातचीत को टेप किया और उसे डी-कोड कर लिया था। लेकिन अन्य विभागों ने द्वारा कोई फॉलो-अप नहीं हुआ। इसके बाद रॉ की सूचना पर शेख अब्दुल ख्वाजा कोलंबो से गिरफ्तार करने में सफलता मिली।

सिक्किम का विलय

1972 में पीएम इंदिरा गांधी ने सिक्किम के विलय की जिम्मेदारी रॉ को सौंपी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रॉ के आधिकारियों के साथ सिक्किम को लेकर एक मीटिंग की। इसमें रॉ प्रमुख रामनाथ काव, पीएन हक्सर और पीएन धर ने हिस्सा लिया। इंदिरा ने जब सिक्किम मामले पर सलाह मांगी तो राव ने जवाब दिया कि उनका काम सरकार के फैसले को मनवाना है, सलाह देना नहीं है और इसके बाद ही सिक्किम विलय की खुफिया प्रक्रिया शुरू हो गई थी। 1975 में सिक्किम भारत का 22वां राज्य बना।

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ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्ध

इस मिशन के सफल संचालन और दुनिया में किसी को इसके बारे में पता भी न चले इस बात की जिम्मेदारी रॉ के हाथों में थी। भारत ने 18 मई 1974 को पोखरण में परमाणु परीक्षण कर दुनिया को दो संदेश दिए। पहला ये कि वो तकनीक के मामले में किसी से कम नहीं है और जबतक रॉ न चाहे कोई ये पता नहीं कर सकता की हम कब क्या और कैसे कर रहे हैं।

टैप की जनरल परवेज मुशर्ऱफ़ की बातचीत

साल 1999 में कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जनरल परवेज मुशर्ऱफ़ चीन दौरे पर थे। उस समय चीफ़ ऑफ जनरल स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल अजीज खान ने बीजिंग फोन कर बताया था कि पीएम नवाज शरीफ ने पाकिस्तानी वायु सेना और नौ सेना के प्रमुखों को बुला कर उनसे कहा कि जनरल मुशर्ऱफ़ ने उन्हें कारगिल की लड़ाई के बारे में अंधेरे में रखा है।

रॉ ने इस बातचीत को रिकॉर्ड कर भारत में रह रहे सभी देशों के राजदूतों को भेज दिया।

ऑपरेशन मेघदूत

1984 में रॉ ने सेना को बताया कि सियाचिन ग्लेशियर के साल्टोरो रिज पर कब्जा करने के लिए पाकिस्तान ने ऑपरेशन “अबाबील” आरंभ किया है। इसके बाद सेना ने ऑपरेशन मेघदूत आरंभ किया और पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फिर गया।

ऑपरेशन कैक्टस

नवंबर 1988 में आतंकी संगठन पीपुल्स लिबरेशन ऑफ तमिल ईलम ने मालदीव पर आक्रमण किया। मालदीव के राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम ने भारत से मदद मांगी। प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सेना के साथ रॉ को भी इस मुसीबत से निपटने के आदेश दिए। इसके बाद 1600 सैनिकों ने और रॉ ने कुछ ही घंटों के भीतर आतंकियों को निपटा दिया।

नॉर्दन अलाइंस

1996 में अफगानिस्तान के फरखोर एयर बेस में रॉ ने 25 बिस्तरों वाले सैन्य अस्पताल का निर्माण किया गया। इस हवाई अड्डे का उपयोग नॉर्दन अलाइंस को सहायता कर रहे रॉ के सहायक भारतीय एविएशन रिसर्च सेंटर द्वारा किया गया था। 2001 में भी अफगान युद्ध में भारत ने नॉर्दन अलाइंस को ऊंचाई पर युद्ध करने के लिए आवश्यक शस्त्रों की आपूर्ति की। ये सब रॉ के जरिए ही संभव हो सकता क्योंकि अफगानिस्तान में उस समय अमेरिका और पाकिस्तान पूरी तरह से हावी थे और देश पर अपना कब्जा जमाना चाहते थे।

स्नैच ऑपरेशन

ये ऑपरेशन हमेशा चलता रहा है और चलता रहेगा। इस ऑपरेशन में संदिग्ध को पहले विदेश में गिरफ्तार किया जाता है। इसके बाद उससे पूछताछ होती है। फिर उसे हवाई अड्डे पर या सीमा के आसपास गिरफ्तार कर लिया जाता है।

इस डॉन को दाऊद के खिलाफ इस्तेमाल करती रही रॉ !

कुछ अधिकारियों और रिपोर्ट्स के मुताबिक छोटा राजन को रॉ दाऊद इब्राहिम से निपटने के लिए हथियार बना चुकी है। मिर्जा दिलशाद बेग, खालिद मसूद और परवेज टांडा की हत्याओं में रॉ और राजन का नाम सामने आया था।

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