तकदीर उनकी भी होती है, जिनके हाथ नहीं होते: स्टोरी जान आप भी कहेंगे 'शाबास अबू'

Update: 2020-01-19 05:18 GMT

उवैश चौधरी

इटावा: "दुनिया कहती है कि किस्मत हाथो की लकीरों में होती है, लेकिन जिनके हाथ नही होते किस्मत तो उनकी भी होती है"

यह कहावत सटीक बैठती है 13 साल के मासूम अबु हमज़ा पर, जिसकी हिम्मत के सामने किस्मत भी छोटी और बौनी मालूम पड़ती है। हम बात कर रहे है इटावा निवासी कक्षा 7 में पढ़ने वाले अबु हमज़ा की जो दोनों हाथों से दिव्यांग है।हालाँकि अबु पैदाईशी दिव्यांग नही है। उसकी इस दिव्यंगता कि वजह 11 हजार वाट की हाईटेंशन लाइन है जोकि अबु के ताऊ के घर के पास से होकर गुजरी थी। अबु अपने ताऊ के घर खेलने गया था तभी किन्ही कारणों से अबु को बिजली के करंट ने अपनी चपेट में ले लिया। इस हादसे में अबु की जान तो बच गयी लेकिन उसको 5 साल की उम्र पर अपने दोनों हाथ गवाने पड़े और वह दिव्यंगता की श्रेणी में आ गया।

अबु अपनी ज़िंदगी आज भी आम बच्चे की तरह जीने की कोशिश करता है। दोनों हाथ न होने के बावजूद भी आम बच्चो की तरह साइकिल से स्कूल आता जाता है और स्कूल में पढ़ाई के साथ साथ कंप्यूटर लैब में कंप्यूटर भी अपने दोनों पैरों की मदद से चलाता है। अबु पैरों से पेन पकड़कर कॉपी पर जब लिखना शुरू करता है तो अच्छे अच्छे उसकी लेखनी देखकर शरमा जाते है।

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पिता की ज़िद/लगन ने अबु को फिर से दिए हौसलें के बाज़ू

पांच साल की उम्र में करंट लग जाने से अपने दोनों हाथ गंवा चुके अबु के पिता ने हिम्मत नही हारी। जयपुर के एसएमएस अस्पताल से छुट्टी होने के बाद अपने दिल के टुकड़े को फिर से इटावा शहर के रॉयल ऑक्सफोर्ड इंटर कॉलेज में लेकर 3 माह बाद पहुँचे। जहां अबु की शिक्षा बचपन से चल रही थी। अबु हादसे से पहले कक्षा 1 का छात्र था, हादसे के बाद कक्षा 2 का सेशन शुरू हो चुका था। जब उसके पिता अपने दिव्यांग बच्चे को लेकर स्कूल पहुंचे और फिर से आम बच्चो की तरह स्कूल में पढ़ने की बात स्कूल प्रबंधन से की तो स्कूल प्रबंधन परेशान हो उठा कि इस बच्चे को कैसे पढ़ाया जाए क्योंकि पढ़ाई के साथ लिखना भी ज़रूरी होता है।

फिर स्कूल में मौजूद प्रिंसिपल ने अबु के पिता से पैरों से लिखने की आदत डालने की बात कही, जिसपर उसके पिता ने बात मानते हुए यूट्यूब की मदद से अबु के पैरों में पेन थामा दिया और अबु को फिर से जीने की एक नई राह दिखाई।

अबु ने लिखना शुरू किया और केवल 2 माह में ही पैरो से लिखने में वो माहिर हो गया। आज अबु कक्षा 7 में पढ़ रहा है और उसका सपना कंप्यूटर इंजीनियर बनने का है। अबु अपनी सामाजिक पढ़ाई के साथ साथ धार्मिक ग्रंथ कुरान भी पढ़ चुका है।

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कहते है बचपन एक ऐसी चीज होती है जिसमें न कोई धर्म होता है न कोई जाति

अबु के इस जज़्बे और हिम्मत के पीछे जितना उसके मां बाप, भाई का सहयोग है, कहीं न कहीं उसके दोस्तों का भी हाथ है। अबु को नई जिंदगी देने में अहम भूमिका निभाई स्कूल का मित्र ऋषभ ने। अबु का एक हिन्दू दोस्त ऋषभ जो स्कूल में सिर्फ एक दोस्त ही नही एक माँ का किरदार भी अदा करता है, क्योंकि जिस तरह अबु की माँ अपने बच्चे को घर पर खाना खिलाती है, वही काम ऋषभ और उसके अन्य साथी स्कूल में करते है।

इंटरवेल में अपने हाथों से अबु को खाना खिलाते हैं और जब अबु को टॉयलेट आती है तो ऋषभ और अन्य साथी ही उसको टॉयलेट लेकर आते- जाते है। छुट्टी में अबु का स्कूल बैग लेकर अबु की साइकिल तक लाने ले जाने में मदद करते है।

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हाथों के बिना, साईकिल से अपने स्कूल का सफर आम बच्चों की तरह तय करता है

अबु का एक बड़ा भाई है, जिसने अबु के लिए एक खास तरह की साइकिल डिज़ाइन की है। अबु इसी साइकिल से स्कूल आता जाता है। साइकिल के पैडल के पास ही ब्रेक और हैंडल पर स्टेयरिंग की तरह एक हैंडल लगाया गया जोकि अबु अपने छाती के इस्तेमाल से मोड़ सकता है। अबु की एक छोटी बहन है जोकि उसी के स्कूल में पढ़ती है। छोटी बहन को पिता या उसका भाई लेने आते जाते है लेकिन अबु अपनी साईकिल से अकेला आता जाता है। अबु के पिता ट्रांसपोर्टर है। अबु का बड़ा भाई अपने पिता के साथ उनके काम मे हाथ बटाता है।

स्कूल प्रबंधन ने अबु की लगन और परिवार के जज्बे को देखते हुए उसकी फीस माफ करदी है और अबु को इंटरमीडिएट तक बिना शुल्क लिए पढ़ाने का फैसला भी लिया है।

बुलंद हौसलों और हिम्मती अबू को NewsTrack.Com की ओर से सलाम।

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