IT विभाग के शिक्षक पर कार्रवाई, अंकसूची में फर्जीवाड़े पर बड़ा खुलासा
बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय परिसर स्थित आइटी विभाग के एक शिक्षक को कुलपति ने तीन वर्ष के लिए परीक्षा कार्य से अलग कर दिया। अब यह शिक्षक केवल कक्ष निरीक्षक की ही ड्यूटि कर पाएगा।
झाँसी: बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय परिसर स्थित आइटी विभाग के एक शिक्षक को कुलपति ने तीन वर्ष के लिए परीक्षा कार्य से अलग कर दिया। अब यह शिक्षक केवल कक्ष निरीक्षक की ही ड्यूटि कर पाएगा।
दरअसल बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय स्थित अभियान्त्रिकी व प्रौद्योगिकी संस्थान के कम्प्यूटर साइंस विभाग के शिक्षक बीबी निरंजन को तीन वर्ष के लिए परीक्षा कार्य से डिबार किया गया है। जांच कमेटी की रिपोर्ट के बाद कुलपति प्रो. जेवी वैशम्पायन ने आज उक्त शिक्षक को तीन वर्ष के लिए परीक्षा कार्य से अलग करने का निर्देश जारी करते हुए कहा कि अब वह केवल कक्ष निरीक्षक की ड्यूटि ही कर सकेंगे। वह प्रश्नपत्र बनाने तथा मूल्यांकन करने का कार्य अगले तीन वर्ष तक नहीं कर सकेंगे। शिक्षक पर परीक्षा के लिए बनी आचार संहिता का उल्लंघन करने तथा परीक्षा कार्य से अपने रिश्तेदारों के हित के लिए कार्य करने का आरोप सही पाया गया।
ये भी पढ़ें: एयरलाइन में फैला कोरोना! 200 क्रू मेंबर्स और पायलट क्वारंटाइन, कई पॉजिटिव
लिपिकों के रिश्तेदारों के खातों में पहुंचती थी राशि
बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय में फ़र्जी अंकसूची के मामले परत-दर-परत खुल रहे हैं। फ़र्जी अंकसूची मामले में एक गिरोह काम कर रहा था, जिसे विश्वविद्यालय के कई अधिकारी व कर्मचारियों का संरक्षण था। यह गिरोह बिहार में परीक्षा कराकर फ़र्जी अंकसूची जारी करता था और फिर विश्वविद्यालय की जनसूचना से फ़र्जी अंकसूची को सत्यापित किया जाता था। विश्वविद्यालय के लिपिकों के निर्देशन में बाहर के कई लोग इस गिरोह में शामिल हैं।
बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय में 28 मार्च 2019 में फ़र्जी अंकसूची का सत्यापन करने का मामला पकड़ में आया है।
तत्कालीन पटल सहायक को दोषी मानते हुए निलम्बित कर दिया
पूरे खेल में जनसूचना विभाग पटल से चल रहा था। विश्वविद्यालय प्रशासन ने जाँच रिपोर्ट के आधार पर जनसूचना के तत्कालीन पटल सहायक वीरेन्द्र सिंह वर्मा को प्रथमदृष्टया दोषी मानते हुए निलम्बित कर दिया है। फ़र्जी अंकसूची को सत्यापन में असली बताने के बाद डुप्लिकेट अंकसूची बनाने के लिए विश्वविद्यालय पहुँचे एक व्यक्ति के कारण यह मामला पकड़ में आया था। बिहार से सीआरपीएफ में नौकरी कर रहे रमेश कुमार ने बीएड की डुप्लिकेट मार्कशीट देने को आवेदन दिया था।
ये भी पढ़ें: कोरोना संकट में भी बढ़ा भारत का खजाना! विदेशी मुद्रा भंडार में रिकॉर्ड इजाफा
फ़र्जी अंकसूची देने के लिए प्रत्येक अभ्यर्थी से लिए जाते थे 60 ह़जार रुपए
कुलसचिव कार्यालय से इसकी जाँच की, तो अभिलेख नहीं मिले। जाँच में ही जनसूचना विभाग द्वारा अंकसूची के सत्यापन में इसे सही ठहराने का प्रमाण-पत्र दिया। जानकार बताते हैं कि विश्वविद्यालय की फ़र्जी अंकसूची देने तथा सत्यापन के लिए प्रत्येक अभ्यर्थी से 60 ह़जार रुपए तक लिए जाते थे। यह गिरोह बिहार के रोहतास जिले में लिखित परीक्षा कराता था और फिर अंकसूची दी जाती थी। इस फ़र्जी अंकसूची को व्यक्ति या संस्था द्वारा जनसूचना से ही सत्यापन कर दिया जाता था। इस पूरे खेल में विश्वविद्यालय के कई लिपिक जुड़े रहे हैं। इस खेल का पैसा लिपिकों के परिजनों तथा गिरोह के दूसरे सदस्यों के बैंक खाते में आता था।
रिपोर्ट: बी.के. कुशवाहा
ये भी पढ़ें: एयरलाइन में फैला कोरोना! 200 क्रू मेंबर्स और पायलट क्वारंटाइन, कई पॉजिटिव