यौन अपराध को समझौता कर समाप्त नहीं किया जा सकताः हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यौन अपराध अलग किस्म का अपराध है जिसे समझौता कर समाप्त नहीं किया जा सकता। यह समाज के विरुद्ध अपराध है। नारी की निजता व शुद्धता के अधिकार के विरुद्ध अपराध को समझौते के आधार पर खत्म नहीं किया जा सकता।

Update:2023-03-29 02:16 IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यौन अपराध अलग किस्म का अपराध है जिसे समझौता कर समाप्त नहीं किया जा सकता। यह समाज के विरुद्ध अपराध है। नारी की निजता व शुद्धता के अधिकार के विरुद्ध अपराध को समझौते के आधार पर खत्म नहीं किया जा सकता। यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने मुजफ्फरनगर के मीरापुर निवासी कलीम व परिवार के 4 अन्य लोगो की याचिका पर दिया है।

कोर्ट ने कहा कि शादी की पहली रात दहेज की मांग पूरी न होने पर पति के जीजा ने बर्बर तरीके से बलात्कार किया। ऐसे आरोपी को समझौते के आधार पर छोड़ने से सभ्य समाज पर विपरीत असर पड़ेगा, जिसे रद्द नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने हस्तक्षेप से इंकार करते हुए समझौते के आधार पर चार्ज सीट रद्द करने की मांग में दाखिल याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा कि आरोपियों का आचरण सभ्य समाज के मानकों के विपरीत है। यदि ऐसे समाज के विरुद्ध अपराधों में समझौते की अनुमति दी गयी तो धनाढ्य व शक्तिशाली लोग आर्थिक व सामाजिक रूप से कमजोर पर दबाव डाल कर अपराध को समझौते से खत्म करा लेंगे।

यह भी पढ़ें…आतंकियों के लगे कैंप! कश्मीर पर रच रहे ऐसी बड़ी साज़िश

उल्लेखनीय है कि 6 मार्च 19 को याची पीड़िता की शादी हुई। शादी में 7 लाख खर्च हुए। ससुराल वालों ने 50 हजार नकद की मांग की। किसी तरह विदाई हुई। पहली रात में याची पति के जीजा दाऊद ने पीड़िता के साथ रेप किया। फिर उसके पति ने भी रेप किया। वह बेहोश हो गयी। अस्पताल में भर्ती कराया गया। सास पर भी गला दबाकर मारने का आरोप है। ससुर पर दहेज उत्पीड़न का आरोप है।

पुलिस ने पीड़िता के बयान पर उसके भाई द्वारा दर्ज करायी गयी एफआईआर के आधार पर चार्ज सीट दाखिल की। कोर्ट ने संज्ञान भी ले लिया। याची का कहना है कि उसके बीच समझौता हो चुका है। दोनों पति-पत्नी की तरह से रह रहे है। इसलिए एसीजेएम की अदालत में चल रहे केस को रद्द किया जाय। कोर्ट ने जिसे मानने से इंकार कर दिया है।

यह भी पढ़ें…250 ग्राम का परमाणु बम! पाकिस्तान का ये दावा, सच्चा या झूठा

सरकारी कार्यालयों में शिकायत कमेटी गठित न होने पर सरकार से जवाब तलब

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार व उसके अन्य विभागों के कार्यालयों में कार्य स्थल पर शिकायत कमेटी के गठन के मामले में 27 सितम्बर तक जवाब मांगा है। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश गोविन्द माथुर तथा न्यायमूर्ति विवेक वर्मा की खण्डपीठ ने अनुप्रिया सहित 13 विधि छात्राओं की जनहित याचिका पर दिया है।

याचियों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के विशाखा केस की गाइडलाइन के तहत सभी विभागों में कार्य स्थल पर महिला कर्मियों के यौन उत्पीड़न की शिकायत कमेटी गठित की जानी चाहिए। 2013 में प्रदेश में कानून बन चुका है। किंतु कमेटियों का गठन अभी तक नहीं किया जा चुका है। 12 जुलाई को कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा था किंतु कोई जवाब नही दाखिल हुआ तो कोर्ट ने सरकार को दुबारा मौका दिया है।

यह भी पढ़ें…पी चिदंबरम को लगा बड़ा झटका, कोर्ट ने सुनाया नया फैसला

प्रदेश के सभी ट्रिब्यूनल को प्रयागराज मे स्थापित करने की याचिका दाखिल, शुक्रवार को सुनवाई

प्रयागराज: प्रदेश के सभी अधिकरणों को प्रयागराज में स्थापित करने की मांग में जनहित याचिका दाखिल की गयी है। शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश की पीठ के समक्ष सुनवाई होगी। यह जनहित याचिका अधिवक्ता प्रभाशंकर मिश्र ने दाखिल की है। याचिका में सभी अधिकरणों की स्थापना प्रयागराज में करने की मांग की है। साथ ही कोर्ट से प्रार्थना की गयी है कि वह अधिकरणों के गठन की सरकारी नीति मंगाये।

याचिका में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों के हवाले से कहा गया है कि हाईकोर्ट की प्रधान पीठ जहां हो अधिकरण वही स्थापित किये जाय। याचिका में कोर्ट के फैसलों को भी लगाया गया है। याचिका में कहा गया है कि अधिकरण इलाहाबाद में हाई कोर्ट की पीठ होने के नाते यहीं पर अधिकरण स्थापित किये जाय। हाईकोर्ट की खण्डपीठ के शहर में अधिकरण स्थापित करना कानूनी उपबन्धों व कोर्ट के फैसलो के विपरीत है।

डीआईओएस को अवमानना की सजा सुनाने के लिए हाईकोर्ट ने किया तलब

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अमेठी के जिला विद्यालय निरीक्षक नंद लाल गुप्ता को अदालत के आदेश का पालन न करने पर अवमानना की सजा सुनाने के लिए 9 सितम्बर को तलब किया है।

यह आदेश जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की बेंच ने शिव नारायण यादव की अवमानना याचिका पर पारित किया। याची का कहना था कि वह परमहंस संस्कृत महाविद्यालय, अमेठी में चतुर्थ श्रेणी के पद पर तैनात था। 2008 में तत्कालीन प्राचार्य ने मौखिक निर्देश देते हुए, उसे काम करने से मना कर दिया। जिसके बाद उसने जिला विद्यालय निरीक्षक के यहां गुहार लगाई।

यह भी पढ़ें…जागने वालों देखो! महीनों सोता ही रहता है ये गांव, पूरी दुनिया हैरान

बाद में हाईकोर्ट में भी रिट दाखिल की। उसकी याचिका पर रिट कोर्ट ने 17 मई 2017 को याची के पक्ष में अंतरिम आदेश पारित किया। जिसमें याची को उसके द्वारा किये गए काम का वेतन देने का आदेश दिया गया।

आदेश के बावजूद याची को वेतन नहीं मिलने पर उसने वर्तमान अवमानना याचिका दाखिल की। जिसमें कहा गया कि विद्यालय मैनेजमेंट द्वारा सेलरी बिल भेजे जाने के बावजूद जिला विद्यालय निरीक्षक स्तर से इसे जानबूझकर रोके रखा गया है।

यह भी पढ़ें…बिजली चोरी का उपाय: इस तरह से किया जा रहा था करोड़ों का हेरफेर

याचिका के जवाब में जिला विद्यालय निरीक्षक नंद लाल गुप्ता ने हलफनामा दाखिल किया। जिसे पढने पर कोर्ट ने पाया कि वह बजाय 17 मई 2017 के आदेश का अनुपालन करने के, आदेश का अनुपालन न करने के सम्बंध में कानूनी मशवरा ले रहे हैं।

सारी परिस्थितियेां पर गौर करने के बाद कोर्ट ने कहा कि जिला विद्यालय निरीक्षक ने स्पष्ट तौर पर अदालत के आदेश की अवहेलना की है। आदेश के दो साल बीत जाने के बावजूद उन्होंने इसका अनुपालन करने पर ध्यान नहीं दिया। कोर्ट ने उक्त टिप्पणी करते हुए, नंद लाल गुप्ता को अवमानना का दंड देने के लिए 9 सितम्बर को कोर्ट के समक्ष उपस्थित रहने का आदेश दिया है।

Tags:    

Similar News