सेना कोर्ट:दिवंगत हवलदार को 25 वर्ष के बाद पत्नी ने दिलाया न्याय
नारी अबला नहीं सबला है।उसकी जिजीविषा के सम्मुख आधिदैविक शक्तियां भी घुटने टेक देती हैं, भारत सरकार और सेना की ताकत तो इसके आगे कुछ नहीं हैl इसी उदाहरण को चरितार्थ किया तोपखाना लखनऊ निवासिनी श्रीमती मालती देवी ने उन्होंने अपने
लखनऊ:नारी अबला नहीं सबला है।उसकी जिजीविषा के सम्मुख आधिदैविक शक्तियां भी घुटने टेक देती हैं, भारत सरकार और सेना की ताकत तो इसके आगे कुछ नहीं हैl इसी उदाहरण को चरितार्थ किया तोपखाना लखनऊ निवासिनी श्रीमती मालती देवी ने उन्होंने अपने दिवंगत पति को 25 वर्ष के संघर्ष के पश्चात दिलाया न्यायl
क्या था मामला
याचिनी मालती देवी के पति हवलदार देव लखन प्रसाद ने 8 नवम्बर 1974 को भारतीय सेना में सिपाही के पद पर वायरलेस यूनिट में भर्ती होकर करीब 19 वर्ष सेवा की। वर्ष 1993 में मदरांव, निवासी गोरे लाल, गाँव मंसूरपुर निवासी शिव भोला, कृष्ण कुमार तिवारी ने आरोप लगाया कि याचिनी के पति ने भर्ती कराने के लिए उनसे कई चरणों में रिश्वत ली और सिग्नलमैन पारसनाथ ने मारने का आरोप लगायाl
कोर्ट मार्शल ने की बर्खास्तगी और छह माह की सजा
आरोप पर सेना द्वारा उच्च-स्तरीय कोर्ट आफ इन्क्वायरी कराई गई जिसने कोर्ट-मार्शल किए जाने की सिफारिश की और कोर्ट मार्शल ने याचिनी के पति को सेना से बर्खास्त करके छह माह की सिविल जेल की सजा सुनाई जिसके विरुद्ध याचिनी के स्वर्गीय पति ने उच्च-न्यायालय के समक्ष वर्ष 1997 में रिट दायर की जिसके विचाराधीन रहने के दौरान 29 नवम्बर 2004 को उसकी मृत्यु होने के पश्चात् याचिनी ने अपने दिवंगत पति को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष का बीड़ा उठाया और वर्ष 2011 में याचिनी का मुकदमा सेना कोर्ट लखनऊ स्थानांतरित कर दिया गयाl
भारत सरकार और सेना के अधिवक्ता अमित जायसवाल ने किया जोरदार विरोध
केंद्र सरकार और सेना के अधिवक्ता अमित जायसवाल ने सेना कोर्ट के सामने जोरदार विरोध करते हुए कहा कि सेना जैसे संवेदनशील संस्थान में रिश्वत लेकर सैनिकों को भर्ती कर रहा है उसका मामला सुनने लायक ही नहीं हैl
सेना कोर्ट ने दिया पेंशन देने का आदेश
याची के अधिवक्ता ने एस मुथु कुमारन, नायक सरदार सिंह और रंजीत ठाकुर बनाम भारत सरकार में उच्चतम-न्यायालय की गई व्यवस्था का उद्धरण देते हुए न्यायालय के सामने दलील दी कि जिसके पति पर 19 वर्षों की सेवा के दौरान किसी प्रकार का आरोप नहीं लगा और अचानक उस पर इतने आरोप लगाकर बर्खास्त कर दिया गया और एक सैनिक की विधवा को अनिश्चितता की स्थिति में जीने के लिए मजबूर कर दिया गया यह अन्यायपूर्ण है।
सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि अपराध और सजा के बीच संतुलन का होना अनिवार्य है लेकिन इस मामले में तो सैनिक के साथ-साथ पूरे परिवार को ही सजा दे दी गई कोर्ट ने सैनिक की विधवा को चार महीने के अन्दर उसके पति की पेंशन और पारिवारिक-पेंशन विधवा याचिनी को देने का आदेश दिया l
केंद्र और सेना की नीतियों पर पड़ सकता है सकारात्मक प्रभाव
ए ऍफ़ टी बार के महामंत्री और याचिनी के अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय ने इस संबंध में पूछे जाने पर बताया कि सेना कोर्ट के इस आदेश से भारत सरकार और सेना की नीतियों में परिवर्तन आने की संभावना है जिसका लाभ भविष्य में पीढ़ियों को मिलेगाl