लखनऊ: आशियाना गैंगरेप विक्टिम के आग्रह पर एडवा की प्रदेश अध्यक्ष मधु गर्ग ने अपनी फेसबुक वॉल पर सोमवार को एक पोस्ट किया है। जिसमें आशियाना गैंगरेप विक्टिम ने अपनी दर्द की दास्तां बयां की है।
क्या लिखा है पोस्ट में
आशियाना केस की fighter के आग्रह पर post .....
मैं आशियाना केस की पीड़िता हूं। मै अपना असली नाम खो चुकी हूं। आज ही के दिन 2 मई 2005 को 11 साल पहले मुझसे मेरा बचपन छीन लिया गया था।
शहर के 6 रईसजादों ने मुझे इतने गहरे घाव दिए थे कि उसकी टीस आज भी मुझे दर्द देती है पर हैरानी यह है कि मेरे रिसते घाव, मेरे हाथ पैरों पर पड़े छाले डॉक्टरों को नहीं दिखाई दिए। शायद पैसों की चमक ने उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी थी तभी तो अदालत में रिपोर्ट लगाई कि मेरे साथ "कुछ" भी नहीं हुआ था। इतने पढ़े लिखे लोग भी झूठ बोलते हैं ? यह मैंने पहली बार जाना।
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मैं उस समय बहुत छोटी थी। मैं बहुत डरी हुई थी। मेरे परिवार ने कूड़े और कबाड़ की दुनि़या के अलावा कुछ नहीं देखा था तभी दीपा भट्ट के शैतानी इरादों को हम न समझ पाए उसने पूरी तरह अपने जाल में हमें फंसाया और साजिश कर असली अपराधियों को बचाने के लिए 3 बेगुनाहों को जेल भेज दिया। मैं बार-बार कहती रही कि मैंने इन्हें नहीं पहचाना है पर किसी ने नहीं सुना।
इन रिसते घावों और ढेर सारे दर्द के साथ मैं प्रोटेक्शन होम पहुंचा दी गई। मै रोती थी, गिड़गिड़ाती थी पर मुझे दिलासा देने वाला कोई नहीं था। मेरे मां-पिता को भी मुझसे मिलने की इजाजत नहीं थी। मुझे उनसे कौन सा खतरा था? मेरा गुनाह ? मैं नहीं समझ पा रही थी।
उन 18 महीनों मे मैंने हर पल उन दरिंदों को बेहद नफरत से याद किया। मैं उनकी शक्ल कभी नहीं भूल सकती थी। अदालत में मैंने उन्हें फौरन पहचान लिया। 5 को सजा हुई। मैं खुश थी। 10 साल बाद मेरे साथ सबसे अधिक हैवानियत करने वाले गौरव की सुनवाई शुरू हुई।
मुझे बार बार कहा गया कि यह "वो" नहीं है और मैं बार बार कहती रही कि इस हैवान को मैं कभी नहीं भूल सकती। दरिंदे के नामी वकील ने मुझसे कहा कि मैं झूठ बोलकर बेचारे की लाइफ बर्बाद कर रहीं हूं। मै समझ गई थी कि बेचारा नामी वकील कितना लाचार है कि पैसा उससे बोलवा रहा है।
मुझे अपने पापा पर गुरूर हुआ। बिना पढ़े मेरे गरीब पापा इन बिके हुए लोगों के आगे कितने बड़े हैं।
हैवान गौरव को बस 10 साल की सजा हुई ... कहा गया कि सबूत नहीं मिले। मुझे बताया गया कि उसने जमानत के लिए अपील कर दी है। 20 दिनों मे वह घबरा गया है। उसकी पैरवी में शहर के नामी वकील लगे हैं।
मैंने तिलतिल जलकर 11 साल काटे हैं। मेरा हिसाब कौन देगा ? कानूनी दांवपेंच मेरी तकलीफ का हिसाब दे पाएंगे ? कानून इंसाफ देने के लिए है या तकनीकी दांवपेंचों के आधार पर अपराधी को बचाने के लिए है ? मुझे बस जवाब चाहिये ...