PM Modi Aligarh Daura: पीएम मोदी का राजा महेंद्र प्रताप सिंह राज्य विश्वविद्यालय अलीगढ़ में कार्यक्रम

राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने जिस सपने का देखा था उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साकार रूप देने में लगे हुए हैं।

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Published By :  Raghvendra Prasad Mishra
Update:2021-09-13 21:30 IST

राजा महेंद्र प्रताप सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फाइल तस्वीर (फोटो साभार-सोशल मीडिया)

Lucknow News: भारतीय इतिहास के पन्नों में भुला दिए गए "जाट आइकॉन" राजा महेंद्र प्रताप सिंह (Raja Mahendra Pratap Singh) ने जिस शैक्षिक-सामाजिक परिवर्तन का सपना देखा था, उसके पूरा होने का समय आ गया है। जिस अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना में उन्होंने भू-दान किया, उसने भले ही उन्हें सम्मान न दिया हो, लेकिन अब उसी अलीगढ़ में "जाटलैंड के नायक" के नाम पर विश्वविद्यालय की स्थापना होने जा रही है। मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं इसकी आधारशिला रखेंगे। इस खास मौके पर राजा महेंद्र प्रताप (Raja Mahendra Pratap Singh) के वंशजों की गरिमामयी मौजूदगी रहेगी। इसके साथ ही 14 सितंबर, 2019 को लिया सीएम योगी आदित्यनाथ का वह संकल्प भी पूरा होगा, जबकि उन्होंने तुष्टिकरण की राजनीति के चलते उपेक्षित कर दिए गए राजा महेंद्र प्रताप सिंह (Raja Mahendra Pratap Singh) को यथोचित सम्मान दिलाने का वचन दिया था।

बता दें कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए राजा महेंद्र प्रताप सिंह (Raja Mahendra Pratap Singh) ने अपनी सम्पत्ति दान कर दी थी। उस अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास में राजा महेंद्र प्रताप सिंह (Raja Mahendra Pratap Singh) को कोई स्थान नहीं मिला। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर भी जो तथ्य दिए गए हैं, उसमें सिर्फ सैय्यद अहमद खान के योगदान का जिक्र तो है पर विश्वविद्यालय के लिए जमीन का एक बड़ा हिस्सा दान करने वाले राजा महेंद्र प्रताप सिंह का कोई उल्लेख नहीं है। इतिहास की इस भूल के सुधार की जरूरत बताते हुए मुख्यमंत्री योगी ने राजा महेंद्र प्रताप सिंह (Raja Mahendra Pratap Singh) को उनका गौरव वापस दिलाने का संकल्प लिया था। योगी ने अलीगढ़ जनपद में राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर विश्वविद्यालय स्थापना की घोषणा की थी। बकौल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ "राजा महेंद्र प्रताप ने अपनी पूरी सम्पत्ति दान कर दी मगर उनके साथ न्याय नहीं हुआ। उन्हें भुला दिया गया।"

यह विश्वविद्यालय जनपद अलीगढ़ की तहसील कोल के ग्राम लोधा एवं ग्राम मूसेपुर करीब जिरौली के कुल 92.27 एकड़ क्षेत्रफल में स्थापित किया जाएगा। विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन, शैक्षणिक भवन, छात्रावास, आवासीय भवन आदि के निर्माण के प्रथम चरण के लिए 101.41 करोड़ रुपए की लागत के निर्माण कार्यों की स्वीकृति प्रदान की गई है। इस विश्वविद्यालय के क्षेत्राधिकार में अलीगढ़ मण्डल के चारों जनपद-अलीगढ़, कासगंज, हाथरस एवं एटा शामिल हैं। अलीगढ़ मण्डल के 395 महाविद्यालय इस विश्वविद्यालय से सम्बद्ध होंगे।

एएमयू ने राजा महेंद्र को भुलाया, बीएचयू ने काशी नरेश को रखा याद

देश के दो बड़े विश्वविद्यालयों के "नींव की ईंट" की तुलना करें तो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय दोनों की स्थापना में क्षेत्रीय राजाओं ने भूमि दान की थी मगर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक सर सैय्यद अहमद खान ने भूमि दान देने वाले राजा महेंद्र प्रताप सिंह को भुला दिया जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय ने काशी नरेश के योगदान को सदैव सिर-माथे पर रखा।

लड़ी आजादी की लड़ाई, अफगानिस्तान में बनाई थी अंतरिम भारत सरकार

प्रसिद्ध इतिहासकार इरफ़ान हबीब ने लिखा है कि "राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने ब्रिटिश सरकार का विरोध किया था। वर्ष 1914 के प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान वह अफगानिस्तान​ गए थे। 1915 में उन्होंने आज़ाद हिन्दुस्तान की पहली निर्वासित सरकार बनवाई थी।" बाद में सुभाष चंद्र बोस ने 28 साल बाद उन्हीं की तरह आजाद हिंद सरकार का गठन सिंगापुर में किया था। एक समय उन्हें नोबल शांति पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया था।

सर्वसम्मति से चुने गए थे अखिल भारतीय जाट महासभा के अध्यक्ष

वर्ष 1976 में राजा महेंद्र प्रताप को सर्वसम्मति से अखिल भारतीय जाट महासभा का अध्यक्ष चुना गया। इससे पहले 29 अगस्त, 1949 को कोलकाता की एक विशाल सभा में उन्हें "राजर्षि" के सम्मान के साथ अभिनंदन किया गया था। यही नहीं, कोलकाता में हिंदी शिक्षा परिषद ने 18 दिसंबर, 1960 को उन्हें "विश्व रत्न सम्मान" से विभूषित किया।

जाट राजा महेंद्र प्रताप का परिचय: एक नजर में

महेन्द्र प्रताप का जन्म 01 दिसम्बर, 1886 को एक जाट परिवार में हुआ था। वो मुरसान रियासत के शासक थे। यह रियासत वर्तमान उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में थी। वे राजा घनश्याम सिंह के तृतीय पुत्र थे, जब वह तीन साल के थे तब हाथरस के राजा हरनारायण सिंह ने उन्हें पुत्र के रूप में गोद ले लिया। साल 1902 में उनका विवाह बलवीर कौर से हुआ था जो जिन्द रियासत के सिद्धू जाट परिवार की थीं। विवाह के समय वे कॉलेज की शिक्षा ले रहे थे।

राजा महेंद्र सिंह के बारे में बताया जाता है कि मैसर्स थॉमस कुक एंड संस के मालिक बिना पासपोर्ट के अपनी कम्पनी के पी एंड ओ स्टीमर द्वारा राजा महेन्द्र प्रताप और स्वामी श्रद्धानंद के ज्येष्ठ पुत्र हरिचंद्र को इंग्लैंड ले गए। उसके बाद जर्मनी के शासक कैसर से उन्होंने भेंट की। वहां से वो अफगानिस्तान गए। फिर बुडापेस्ट, बुल्गारिया, टर्की होकर हेरात पहुंचे जहां अफगान के बादशाह से मुलाकात की और वहीं से 01 दिसम्बर, 1915 में काबुल से भारत के लिए अस्थाई सरकार की घोषणा की । जिसके राष्ट्रपति स्वयं तथा प्रधानमंत्री मौलाना बरकतुल्ला खां बने। यहां स्वर्ण-पट्टी पर लिखा सूचनापत्र रूस भेजा गया। साल 1920 से 1946 विदेशों में भ्रमण करते हुए विश्व मैत्री संघ की स्थापना की, फिर 1946 में भारत लौटे। यहां सरदार पटेल की बेटी मणिबेन उनको लेने कलकत्ता हवाई अड्डे गईं। इसके बाद वो संसद-सदस्य भी रहे। 26 अप्रैल,1979 में उनका देहांत हो गया।

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