UP Election 2022: कैसा होगा चुनाव का वर्चुअल अभियान, आइए जानें

UP Election 2022 News: कोरोना के चलते पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में इस बार वर्चुअल चुनाव अभियान चलेगा। भीड़ न एकत्र होने पाए, इसीलिए वर्चुअल पर जोर है। लेकिन वर्चुअल अभियान में होगा क्या? जानते हैं।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Deepak Kumar
Update:2022-01-08 22:53 IST

कैसा होगा चुनाव का वर्चुअल अभियान 

UP Election 2022 News: कोरोना के चलते पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों (Assemblt Election 2022) में इस बार वर्चुअल चुनाव अभियान (virtual election campaign) चलेगा। भीड़ न एकत्र होने पाए, इसीलिए वर्चुअल पर जोर है। लेकिन वर्चुअल अभियान में होगा क्या? जानते हैं।

क्या है वर्चुअल

वर्चुअल यानी आभासी। नेता अपने भर या दफ्तर में बैठे रहेंगे और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, वीडियो कॉल से अपने कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग करेंगे। नेता और प्रत्याशी जनता तक अपनी बातें फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम वगैरह पर लाइव चैट और लाइव शो के जरिये पहुंचाएंगे और उनसे रूबरू होंगे। इसके अलावा टीवी पर प्रसारण, पॉडकास्ट, रेडियो जैसे माध्यमों से भी वादे, आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला चलेगा। और हां, व्हाट्सएप पर लोगों को मैसेज, वीडियो, फोटो इत्यादि भेजे जाएंगे। यही सब वर्चुअल है। सामने नेता है और नहीं भी है।

क्या ये सस्ता है?

रैलियों का आयोजन, कार्यकर्ताओं के लिए गाड़ियों का इंतजाम आदि खर्चे वाले काम होते हैं सो लोग सोच सकते हैं कि वर्चुअल अभियान (virtual election campaign) तो सस्ते में निपट जाएगा। लेकिन ये काफी हद तक गलत सोचना है। बिहार चुनाव को उदाहरणस्वरूप रखें तो एक रिपोर्ट के अनुसार वहां एक वर्चुअल रैली (virtual Rally) में राज्य के 72 हज़ार बूथों के कार्यकर्ताओं तक अमित शाह का संवाद पहुंचाने के लिए हज़ारों एलईडी स्क्रीनों और स्मार्ट टीवी इंस्टॉल कराए गए। राजद ने आरोप भी लगाया था कि इस रैली पर सरकार ने 144 करोड़ रुपए खर्च किए।

बहरहाल, सोशल मीडिया पर अभियान चलाने के लिए बड़ी टीम चाहिए। इसका खर्च काफी बड़ा होता है क्योंकि ये अभियान (virtual election campaign) लगातार चलता है। अभियान के लिए एक्सपर्ट टीम के अलावा किसी एजेंसी या कई एजेंसियों की सेवाएं लेनी पड़ती हैं। डेटाबेस चाहिए होता है, हार्डवेयर की जरूरत होती है। फिजिकल रैलियों से ज्यादा ही खर्च वर्चुअल अभियान में हो सकता है। दूसरी बात ये कि ग्रामीण क्षेत्रों में दिल्ली या लखनऊ में बैठ कर वर्चुअल अभियान नहीं चलाया जा सकता। ग्रामीण मतदाताओं को टारगेट करने के लिए टीवी, रेडियो जैसे तरीके अपनाने होंगे जिनका अलग कगरच होगा।

कौन होगा बढ़त की स्थिति में

टीवी और रेडियो का इस्तेमाल सत्ताधारी पार्टी के हाथ में रहेगा इसमें दो राय नहीं है। अन्य दल भी निजी चैनलों या रेडियो एफएम के वर्चुअल प्रचार कर सकती हैं। चूंकि वर्चुअल रैली का खर्च बहुत ज़्यादा होगा इसलिए संचार माध्यमों के सही और टारगेटेड इस्तेमाल से ही उसका कोई लाभ मिल सकेगा। स्मार्टफोन के जरिए पार्टियां करोड़ों लोगों तक पहुंचने की रणनीति बनाई जाएंगी। बहरहाल, चुनाव का वर्चुअल स्वरूप भविष्य के चुनावों की जमीन भी तैयार करेगा।

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