Up Election 2022: अखिलेश नहीं लड़ेंगे चुनाव, एमएलए की लड़ाई में उतरने से कतराना कैसा ?
Up Election 2022: अखिलेश यादव (Akhilesh yadav ka byan) फिलहाल संसद सदस्य हैं और उनका टर्म 2024 तक का है।;
Up Election 2022: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh Vidhansabha Election 2022) के विधानसभा चुनाव में सभी दल कमर कसे हुए हैं। लेकिन शायद ही किसी भी बड़े दल – भाजपा, कांग्रेस, बसपा या सपा का कोई मुख्यमंत्री प्रत्याशी विधायकी का चुनाव लड़ेगा। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने तो एलान भी कर दिया है कि वह चुनाव लड़ने नहीं जा रहे। बाकी दलों के नेताओं ने कोई एलान तो नहीं किया है । लेकिन किसी के चुनाव लड़ने की उम्मीद कम ही है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ(CM Yogi Adityanath) , उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ( Deputy CM Keshav Prasad Maurya) और दिनेश शर्मा – सब विधान परिषद् के सदस्य हैं। इन पर निगाहें टिकी हैं कि कौन कौन विधानसभा चुनाव लड़ता है और कहाँ से।
अखिलेश 2012 से 2018 तक एमएलसी रहे
अखिलेश यादव (Akhilesh yadav ka byan) फिलहाल संसद सदस्य हैं और उनका टर्म 2024 तक का है। इसके पहले भी वह कभी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव नहीं लड़े हैं। जब वे यूपी के मुख्यमंत्री बने थे तब इसके लिए विधान परिषद् का रास्ता ही चुना था। अखिलेश 2012 से 2018 तक एमएलसी रहे थे। न इसके पहले विधानसभा चुनाव लड़ा और न इसके बाद। हालांकि, इसके पीछे तर्क ये दिया जाता है कि वो अपना ध्यान पूरी चुनावी प्रक्रिया के सफल प्रबंधन पर टिकाना चाहते हैं। एक क्षेत्र पर फोकस करने से अच्छा है कि पार्टी की जीत के लिए व्यापक रणनीति बनाई जाए और सभी सीटों पर फोकस किया जाये। बहरहाल, अगर अखिलेश मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचते हैं तो वो सदन में पिछले दरवाजे यानी विधान परिषद से ही कदम रखेंगे।
मायावती (Mayawati) 1996 से 1998 तक एमएलए रही
मायावती (Mayawati) की बात करें तो वे 1996 से 1998 तक एमएलए रही थीं और इसी दौरान 97 में वह मुख्यमंत्री बनीं। इसके बाद 2002 में फिर वह विधायक चुनी गईं। इसके बाद से उन्होंने विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा। मुलायम सिंह यादव ने भी विधायक का चुनाव कई बार लड़ा है। वो 1967-69 तथा 1974 से 80 तक जसवंतनगर से विधायक रहे, लेकिन ये सवाल तो उठता ही है कि आखिर एक मुख्यमंत्री प्रत्याशी भी सीधे जनता के वोट से क्यों न चुना जाए? चुनावी महासमर सिर्फ सरकार बनाने का खेल नहीं बल्कि जनता की नब्ज टटोलने का भी एक मौका होता है। इसीलिए इसे लोकतंत्र का महापर्व कहा गया है। ऊपरी सदन यानी विधान परिषद की परिकल्पना नीति निर्धारक विषयों पर बेहतर बहस के लिए हुई थी। ये जनता के सीधे प्रतिनिधि नहीं होते।
ममता को उपचुनाव जीतने में एडी छोटी का जोर लगाना पड़ा था।
राजनीतिक एक्सपर्ट्स (Political expert) का कहना है कि कुछ नेता जो मुख्यमंत्री प्रत्याशी होते हैं वो शायद इसलिए चुनाव नहीं लड़ते कि अगर कहीं हार गए या मामूली जीत हुई तो बहुत किरकिरी हो जायेगी जैसा कि ममता बनर्जी के मामले में देखा गया है। ममता को उपचुनाव जीतने में एडी छोटी का जोर लगाना पड़ा था।
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