Up politics: क्या आप जानते हैं, संघ की शाखाओं में क्यों नहीं आती महिलाएं

Up politics: आरएसएस के वरिष्ठ नेता मनमोहन वैद्य ने कहा, RSS शाखाओं में पुरुषों के साथ काम करता है।

Written By :  aman
Published By :  Ragini Sinha
Update: 2021-09-26 03:07 GMT

संघ की शाखाओं में क्यों नहीं आती महिलाएं (social media)

Up politics: अक्सर आपने राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) को यह कहकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संंघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) पर सवाल उठाते जरूर सुना होगा कि उसकी शाखाओं में महिला क्यों नहीं दिखती? दरअसल, इन राजनीतिक हस्तियों का मुख्य मकसद संघ पर महिलाओं की उपेक्षा का आरोप लगाना है। राहुल ने कहा था, "क्या आपने कभी संघ की शाखाओं में शॉर्ट्स पहने महिलाओं को देखा है।" यह सवाल भले ही राजनीति से प्रेरित हों। मगर आम जन के भी मन में कौतूहल पैदा करता है कि क्या सच में संघ महिलाओं की उपेक्षा करता है। 

राहुल के इस बयान का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारियों ने जवाब दिया। उन्होंने कहा, "आरएसएस की शाखा सुबह छह बजे लगने लगती है। साथ ही यहां कठिन व्यायाम भी करवाया जाता है। जिसके चलते महिलाओं की इसमें भागीदारी नहीं होती है । सुबह जल्दी उठकर संघ की शाखा जाना और कठिन व्यायाम करना महिलाओं के लिए सहज नहीं है।" ऐसे सवालों पर आरएसएस के वरिष्ठ नेता मनमोहन वैद्य ने कहा, "आरएसएस शाखाओं में पुरुषों के साथ काम करता है। उसके जरिए वह परिवारों से भी जुड़ता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि आरएसएस के अन्य सभी संगठनों में महिलाओं की भागीदारी बराबर की है।"

महिलाओं के लिए राष्ट्र सेविका समिति 

एक बार मनमोहन वैद्य ने 'इकनॉमिक टाइम्स' से बातचीत में कहा था, "हम अकसर महिलाओं की भागीदारी की बात करते हैं। लेकिन शारीरिक खेलों, कठिन व्यायाम और शाखा के समय के चलते महिलाओं के लिए शाखा में शामिल होना संभव नहीं है। महिलाओं की भागीदारी के लिए संघ का आनुषांगिक संगठन 'राष्ट्र सेविका समिति' काम करता है। समिति की ओर से प्रतिदिन दोपहर में शाखा का आयोजन होता है। कुछ स्थानों पर सप्ताह में तीन दिन शाखा लगाई जाती है।" ये शाखाएं महिलाओं के दिनचर्या के हिसाब से निर्धारित की गई हैं। 

एक साथ कठिन खेल संभव नहीं 

संघ के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा, " शाखा में खेलों के जरिए राष्ट्र निर्माण पर बल दिया जाता है। संघ ने इनकी रचना ऐसी की है कि शाखाओं में पुरुष और 'सेविका समिति' में महिलाओं की अलग-अलग हिस्सेदारी होती है।" संघ से जुड़े एक अन्य सदस्य ने बताया, कि शाखा में एक खेल होता है " किला किसका है।" यह खेल हर दिन खेला जाता है, जिसे खेलते हुए काफी जोर-आजमाइश होती है। यह महिला और पुरुष की मिली-जुली शाखा में बिलकुल ही संभव नहीं है।

महिलाओं की अन्य जिम्मेदारियां भी हैं 

आरएसएस की अनुषांगिक संगठन सेविका समिति की एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया, कि हम मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग की महिलाओं के बीच काम करते हैं। इन महिलाओं पर घर की जिम्मेदारियां होती है। बावजूद वो शाखा से जुड़ती हैं। ऐसे में यह कहना सही नहीं होगा कि महिलाएं अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को छोड़ सुबह के वक्त शाखा में आएं। इतना ही नहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पुणे जैसे शहरों में 'फैमिली शाखा' का कांसेप्ट शुरू किया। संघ का मानना रहा है कि इससे उसकी 'सिर्फ पुरुषों के लिए' वाली छवि बदलेगी।

फैमिली शाखाएं अमेरिका और यूरोप में 

क्या आपको पता कि संघ की 'फैमिली शाखाएं' अमेरिका और यूरोप के कई जगहों पर लगती हैं। इन शाखाओं की शुरुआत साल 2013 में की गई थी। इन्हें शुरू करने का श्रेय राम माधव और सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले को जाता है। संघ से जुड़े नेता कहते हैं, कि ये शाखाएं साप्ताहिक होती हैं। इनमें खेल, योग और बौद्धिक चर्चाएं होती हैं। संगठन की शीर्ष संस्था यानि प्रतिनिधि सभा में महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ रही है।

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