बाबरी विध्वंस केस: फैसले के समय कुछ ऐसा था कोर्ट के अंदर का सीन

सीबीआई की विशेष अदालत में जस्टिस सुरेन्द्र यादव के कक्ष में प्रवेश करते ही सन्नाटा छा जाता है। अपने आसान पर विराजमान होने के बाद वह अपना फैसला पढ़ना आरम्भ करते हैं।

Update: 2020-09-30 09:55 GMT
बाबरी विध्वंस केस: फैसले के समय कुछ ऐसा था कोर्ट के अंदर का सीन (social media)

समय -12 बजकर 15 मिनट

स्थान-न्यायालय परिसर का पुराना भवन

अदालत- बाहर चहल पहल पर अंदर सन्नाटा।

लखनऊ: सीबीआई की विशेष अदालत में जस्टिस सुरेन्द्र यादव के कक्ष में प्रवेश करते ही सन्नाटा छा जाता है। अपने आसान पर विराजमान होने के बाद वह अपना फैसला पढ़ना आरम्भ करते हैं। जैसे ही उनके मुख से यह बात सामने आती है कि घटना पूर्व नियोजित थी। वहां पर मौजूद आरोपितों के चेहरे पर संतुष्टि का भाव झलकने लगता है। उन्हें इस बात का पूरी तरह से अनुमान लग जाता है कि कोर्ट अब उन्हें बरी कर देगा। इस बीच वहां पर मौजूद अन्य लोगों को भी इस बात का पूरा यकीन हो जाता है कि आगे पूरा फैसला क्या आने वाला है।

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सीबीआई की विशेष अदालत जस्टिस सुरेन्द्र यादव ने फैसले में कहा

सीबीआई की विशेष अदालत जस्टिस सुरेन्द्र यादव ने फैसले में कहा कि सभी साक्ष्यों सबूतों गवाहों और वीडियो कैसेट अखबारों की प्रति को ध्यान में रखकर उन्होंने पाया है कि कैसेट टेम्पर्ड किए गए थें। इसके अलावा गवाहों के बयानों में विरोधाभास पाया गया। इसके अलावा अखबारों की मूल प्रति भी नहीं दाखिल की गई थी।

फैसले में कहा गया कि घटना के समय 6 दिसंबर 1992 को दोपहर 12 बजे तक कार सेवा माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश द्वारा सुचारू रूप से चल रही थी। कारसेवक विश्व हिंदू परिषद के नियंत्रण में सरयू तट से एक हाथ में बालू और एक हाथ में जल लेकर कार सेवा के लिए आएंगे। इससे स्पष्ट है कि कारसेवकों के दोनों हाथ फंसे हुए थे। ऐसे में कोई इस तरह की घटना कैसे की जा सकती थी। इससे प्रतीत होता है कि कारसेवकों के हाथ खाली नहीं थे। और यह भी साफ प्रतीत होता है कि घटना सुनियोजित नहीं थी।

फैसला पढ़ते हुए कहा

जस्टिस सुरेन्द्र यादव ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई है कि दोपहर 12 बजे के बाद अराजक तत्वों की तरफ से इस घटना को अंजाम दिया गया।

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अयोध्या विवाद प्रकरण पर कोर्ट में मौजूद एडवोकेट सुभाष ओझा ने बताया कि जस्टिस सुरेन्द्र यादव ने कहा कि सुनवाई के दौरान यह भी पाया गया कि विश्व हिंदू परिषद और आरएसएस के सदस्यों का इसमे कोई हाथ नहीं था। यही नहीं इस विचारधारा से जुड़े अन्य रामभक्तों ने भी इस ढांचे को नहीं गिराया क्योंकि ढांचे में उस समय तो श्री राम लला विराजमान थे।

इसलिए न्यायालय की तरफ से सभी साक्ष्यों गवाहों और सबूतों को ध्यान में रखते हुए पाया है कि इस केस से जुड़े सभी आरोपितों को बाइज्जत बरी किया जाता है।

श्रीधर अग्निहोत्री

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