किसान आंदोलन: बलिया BJP सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त ने दी राय, कहा ऐसे निकलेगा हल
भाजपा सांसद मस्त ने आज जिले के बैरिया स्थित संसदीय कार्यालय पर संवाददाताओं से बातचीत करते हुए दावा किया कि देश में नये कृषि कानून के विरोध में आंदोलन पश्चिम बंगाल के आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजनैतिक लाभ के लिये किया जा रहा है ।
बलिया: भाजपा किसान मोर्चा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष व सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त ने आज कहा है कि पश्चिम बंगाल के आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजनैतिक लाभ के लिये देश में नये कृषि कानून के विरोध में आंदोलन हो रहा है । उन्होंने कहा है कि किसान आंदोलन का समाधान सरकार से वार्ता से ही हो सकता है। सरकार ने किसानों से वार्ता के सारे विकल्प खुले रखे हैं।
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पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट दलों की हालत खराब हो गई है
भाजपा सांसद मस्त ने आज जिले के बैरिया स्थित संसदीय कार्यालय पर संवाददाताओं से बातचीत करते हुए दावा किया कि देश में नये कृषि कानून के विरोध में आंदोलन पश्चिम बंगाल के आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजनैतिक लाभ के लिये किया जा रहा है । उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट दलों की हालत खराब हो गई है । हसुआ, हथौड़ा, बाली वाले लोगों की पश्चिमी बंगाल में दुकान बंद हो गई है। उनको लग रहा है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा की सरकार बनने जा रही है, तो दिल्ली डिस्टर्ब करें और बंगाल में उनका दुकान चल सके। उन्होंने कहा कि भारत के किसानों को बहुत दिनों तक भरमाया नहीं जा सकता। उनका भ्रम टूट जाएगा।
आढ़तियों व राजनैतिक दलों से गुमराह होकर किसान आंदोलन हो रहा है
उन्होंने जोर देकर कहा है कि संवाद के जरिये ही किसानों की समस्याओं का समाधान हो सकता है। उन्होंने कहा कि आढ़तियों व राजनैतिक दलों से गुमराह होकर किसान आंदोलन हो रहा है। सांसद मस्त ने कहा कि किसान सरकार से संवाद बनाए रखें। उनकी जितनी मांगे हैं और जो भी शंका है , उसके समाधान के लिए सरकार तैयार है। नये कृषि कानून की हिमायत करते हुए उन्होंने कहा कि किसानों की समृद्धि के लिए यह कानून बना है। यह कानून बनाने के बाद किसानों को स्वतंत्र कर दिया गया है कि आप अपना उत्पाद देश में कहीं भी ले जाकर बेंच सकते हैं। किसान अपना उत्पाद मंडी में भी भेज सकता है और मंडी के बाहर भी। जहां उसे उपयुक्त कीमत मिले, वह बेचने को स्वतंत्र है।
एमएसपी कानूनी तौर पर बना हुआ है
उन्होंने कहा कि एमएसपी कानूनी तौर पर बना हुआ है। संसद में जब प्रधानमंत्री बोलते हैं , कृषि मंत्री बोलते हैं और सांसद बोलते हैं, वह संसद में रिकॉर्ड होता है। वहां से भी लिखित प्रमाण मिल सकता है। फिर लिखकर देने की किसानों की जिद कैसी? इसके बाद भी सरकार लिखित देने के लिए तैयार है। एमएसपी नहीं बंद करेंगे। हर साल एमएसपी हम बढ़ाने वाले हैं। बढ़ा भी है। कांट्रैक्ट फार्मिंग के बारे में बताते हुए मस्त ने कहा कि इसको लेकर लोग निराधार शंका कर रहे हैं। पंजाब, केरल, हरियाणा, तमिलनाडु, पश्चिमी बंगाल, उत्तर प्रदेश व बिहार की खेती के अलग अलग स्वरूप है। बटैया व लगान की खेती तो हमारे उत्तर प्रदेश और बिहार की परंपरागत कृषि व्यवस्था है।
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उन्होंने सवाल किया कि क्या लगान व बटैया पर खेती करने वाले लोगों का नाम खसरा खतौनी पर चढ़ जाता है? कभी ऐसा हुआ है? उन्होंने कहा कि आज भी जो कांट्रेक्ट खेती करेगा , उसका खेत पर मालिकाना हक नहीं होगा। खसरा खतौनी में जमीन के मालिक का ही नाम रहेगा , कांट्रेक्ट खेती वाले का नहीं। सांसद मस्त ने कहा कि विपक्षियों के भ्रमित करने से आंदोलित किसान बात समझ नहीं पा रहे हैं। कानून वापस लेने की जिद कर रहे हैं। यह उचित नहीं है। समय बीतने के साथ भारत के किसान इस कानून को ठीक से समझ जाएंगे ।
रिपोर्ट- अनूप कुमार हेमकर
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