Lucknow: 12 साल के बच्चे से बात करते-करते किया था ब्रेन ट्यूमर का ऑपरेशन, हजारों लोगों की ज़िंदगी बचा चुके हैं डॉ. रवि देव

राजधानी में पिछले लगभग 20 सालों से लोगों की सेवा कर रहे डॉक्टर रवि देव (Dr. Ravi Dev) एक बेहतरीन न्यूरो सर्जन (Neurosurgeon) हैं।

Reporter :  Shashwat Mishra
Published By :  Shweta
Update:2021-06-12 19:38 IST

डॉ. रवि देव 

Lucknow:  राजधानी में पिछले लगभग 20 सालों से लोगों की सेवा कर रहे डॉक्टर रवि देव (Dr. Ravi Dev) एक बेहतरीन न्यूरो सर्जन (Neurosurgeon) हैं। वह किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज (King George's Medical College) में न्यूरो सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष व प्रोफेसर के पद पर तैनात थे। मौजूदा समय में वह लखनऊ (Lucknow) शहर के महानगर (Mahanagar) स्थित अपना एक प्राइवेट क्लिनिक चला रहे हैं। जहां वह अपने पेशेंट्स का ट्रीटमेंट करते हैं। डॉ. रवि देव को स्पाइन सर्जरी, घुटने की सर्जरी, जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी और ऑर्थोपेडिक सर्जरी में महारत हासिल है। डॉ. देव ने अब तक के अपने करियर में हजारों सर्जरी कर लोगों की जानें बचाई हैं। उन्होंने अपने नाम कई रिकॉर्ड्स व कुछ ऐसे कमाल किए हैं, जिनका ज़िक्र करना ज़रूरी हो जाता है।

छोटे छेद से सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस की सर्जरी

साल 2006 में डॉ. रवि देव ने महमूदाबाद से तत्कालीन विधायक नरेंद्र वर्मा का सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस की सर्जरी कर उन्हें उनकी दस साल पुरानी बीमारी से निजात दिलाया था। डॉ. देव ने इस सर्जरी को मात्र एक छोटे छेद के जरिए किया था। और तो और, इस सर्जरी के 24 घण्टे बाद ही नरेंद्र वर्मा चलने-फिरने लगे थे। जबकि सर्जरी के पहले वह लड़खड़ाकर चला करते थे। सर्जरी करने के बाद उस वक़्त रवि देव ने बताया था कि यह बीमारी अमूमन उम्र बढ़ने के साथ होती है, मगर इन्हें यह जल्दी हो गई थी। इसमें रीढ़ में गर्दन के पास ऊपरी हिस्से में मौजूद सर्वाइकल वटिब्रा की हड्डी बढ़कर वहां मौजूद नसों को दबाने लगती है। इसकी वजह से गर्दन, हाथ में तेज दर्द होता है और कमजोरी की वजह से सुन्नपन भी आ जाता है।

रवि देव ने बताया था कि अभी तक इस प्रकार की 'स्पॉन्डिलाइटिस' का ऑपरेशन करने के लिए गर्दन के पास बड़ा चीरा लगाकर रीड की हड्डी तक जाकर उसे काटना पड़ता था। इस दौरान अक्सर हड्डियों के बीच जोड़ को भी नुकसान पहुंचता था और कई दफा वहां खाली हड्डियों को भरने के लिए कमर से 'इलियक' हड्डी को निकाल कर एक ग्राफ्ट भी लगाना पड़ता था। इस ऑपरेशन में मरीज को स्थिर रखना पड़ता था, क्योंकि ज्यादा हिलने-ढुलने से ग्राफ्ट की गई हड्डी का टुकड़ा श्वास नली में जाने का खतरा भी बना रहता था।

डॉ. देव ने बताया कि एंडोस्कोप के जरिए किए गए ऑपरेशन में गर्दन में सिर्फ नौ मिलीमीटर का एक छेद किया जाता है। इसी के जरिए छेद तब जाकर वहां ड्रिलर के माध्यम से नस को दबा रही हड्डी को ठीक कर दिया जाता है। इससे न तो कई ग्राफ्ट लगाना पड़ता है और छोटा चीरा होने की वजह से मरीज को रक्त स्राव भी कम होता है। डॉ. रवि देव बताते हैं इस ऑपरेशन के बाद मरीज जल्दी ही अस्पताल से छुट्टी भी पा जाता है।

12 वर्ष के बालक से बात करते-करते किया था ब्रेन ट्यूमर का ऑपरेशन

वर्ष 2004 में डॉ. रवि देव ने एक बारह वर्षीय बालक से बात करते हुए उसका ब्रेन ट्यूमर का ऑपरेशन कर दिया था। वह ऐतिहासिक क्षण था, क्योंकि बिना बेहोश किए किसी कम उम्र के बच्चे का ब्रेन ट्यूमर का ऑपरेशन करना नामुमकिन था। मग़र, रवि देव नामुमकिन को ही मुमकिन करने के लिए जाने जाते हैं। यह ऑपरेशन करने की प्रेरणा उन्हें डिस्कवरी चैनल को देखकर मिली थी। उस वक़्त डॉ. देव ने बताया था कि यह इसलिए किया गया, जिससे यह पता चल सके कि ऑपरेशन के दौरान उसके दिमाग के किसी हिस्से पर असर तो नहीं पड़ा।

दिमाग के एक तिहाई भाग में फैला ट्यूमर एक ही बार में निकाला

साल 2000 में डॉ. रवि देव ने 'स्कल बेस सर्जरी' के तहत पेट्रोसल (कान की हड्डी) विधि से दिमाग के एक तिहाई भाग में फैले हुए ट्यूमर को एक ही बार में निकाल कर उस क्षण को इतिहास में दर्ज करा दिया था। क्योंकि, उस वक़्त वह उत्तर भारत में किया गया पहला ऐसा ऑपरेशन था, जिसमें मरीज़ के दिमाग के एक तिहाई भाग में फैले ट्यूमर को एक ही बार में निकाल दिया गया हो। आमतौर पर मस्तिष्क के नितांत अंदरूनी भाग में फैले ट्यूमरों को निकालने के लिए कई बार सर्जरी की आवश्यकता होती है। स्कल बेस सर्जरी के बाद भी ट्यूमर को सफलतापूर्वक निकालना आसान नहीं होता, लेकिन पेट्रोसल विधि के तहत होने वाले इस ऑपरेशन में ट्यूमर की समस्या का निदान स्थाई तौर पर हो जाता है। इस विधि के तहत चिकित्सक कान के बगल से छेद कर मस्तिष्क के अंतिम छोर तक आसानी से पहुंचकर ट्यूमर का खात्मा कर देते हैं। इसके अलावा भी डॉ. देव ने हजारों ऐसे ऑपरेशंस को अंजाम दिया है, जिसमें मरीजों के बचने की उम्मीद न के बराबर थी। डॉ. रवि देव आज एक जाना-पहचाना नाम हैं। राजधानी के बड़े न्यूरो सर्जन हैं। उन्होंने कई ऐसी रिसर्च भी कर रखी हैं, जिसे आज के समय में न्यूरो सर्जरी की पढ़ाई करने वाले मेडिकल स्टूडेंट्स पढ़ते हैं। 

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