प्रदीप श्रीवास्तव
झांसी: शिवपुरी में पिछले दिनों दो बच्चों की खुले में शौच करने पर हत्या कर दी गई। इस घटना ने जाति प्रथा की निर्मम सच्चाई को फिर उजागर कर दिया है। बुंदेलखंड में सामाजिक भेदभाव आम है। यहां पानी को लेकर होने वाले भेदभाव प्रेमचंद की कहानी ‘ठाकुर का कुंआ’ की याद दिलाते हैं। सवर्ण अपने कुंए से दलितों को पानी नहीं भरने देते। बुंदेलखंड का एक प्रसिद्ध लोक मुहावरा है - मटकी न फूटे, खसम मर जाए। बुंदेलखंड के गांवों में दलितों के साथ कम से कम 46 तरह के बहिष्कार होते हैं, इनमें शौच जाने, पानी भरने से लेकर मंदिरों में घुसने तक शामिल है।
दलितों में भी आपसी भेदभाव है। सफाई का काम करने वालों को सबसे ज्यादा नीची नजर से देखा जाता है। बुंदेलखंड में मुख्यत: अहिरवार, गौतम, डोमार, जाटव, चमार, वाल्मिकी, भंगी, छोड़ा आदि जातियां दलित मानी जाती हैं। इनमें वाल्मिकी, चमार, डोम आदि के साथ यह ज्यादा होता है। इन जातियों के घर अक्सर गांव के बाहर होते हैं, इसलिए इस वर्ग के लोगों को गांव के अंदर के हैंडपंपों से पानी लेने की इजाजत नहीं है। दलितों को हैंडपंप सुधारने के लिए किसी अपने जैसे ही दलित मिस्त्री को ढूंढना पड़ता है। दलितों का एक हैंडपंप सुधरने में कई-कई दिन लग जाते हैं। तब तक इन्हें गांव के सरकारी स्कूलों से पानी भरना पड़ता है।
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बुंदेलखंड के दलित एक्टिविस्ट कुलदीप बौद्ध कहते हैं कि बुंदेलखंड में 66 अनुसूचित जाति व जनजातियां सरकारी दस्तावेजों में दर्ज हैं। चित्रकूट के कर्बी ब्लॉक के पतौड़ा गांव के कैलाश अहिरवार बताते हैं कि गांव में दलितों के बीच में कई-कई जातियां व उप जातियां हैं। इनमें वाल्मिकी और भंगी सबसे नीचे आते हैं।
चार हजार की आबादी वाले पतौड़ा गांव में करीब 1800 वोटर हैं। गांव में 65 प्रतिशत यादव 20 प्रतिशत दलित और शेष अन्य जातियां हैं। यहां के दलितों में भी भेदभाव है। करीब एक दर्जन वाल्मिकी परिवार हैं, जिन्हें गांव से बाहर रहने को जगह मिली है। वह गांव के पानी का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। इनके लिए एक हैंडपंप और एक कुंआ है। अगर कुंआ सूख जाता है तो हैंडपंप भी सूख जाता है। ऐसे में उन्हें नहर के पानी पर निर्भर रहना पड़ता है। बांदा के बदौखर खुर्द ब्लॉक स्थित मोहनपुरवा गांव की आबादी करीब 5,320 है। इनमें 2860 वोटर हैं। गांव में ५० फीसदी यादव हैं। अहिरवार 15 प्रतिशत, 18 प्रतिशत खेंगर, व २० प्रतिशत अन्य जातियां हैं। गांव के रामकिशन बताते हैं कि कई दशकों से यहां पर सवर्ण ही सरपंच होते हैं। गांव में 15 कुंए और करीब 90 हैंडपंप हैं। इनमें से 14 कुंए हमेशा सूखे हैं। 50 से ज्यादा हैंडपंप हमेशा खराब रहते हैं। हरिजनों के मुहल्ले में दो हैंडपंप हैं, जिनसे पूरा समाज पानी भरता है। संदीप कुमार वाल्मिकी बताते हैं कि हम कभी भी सवर्णों के कुंए से पानी नहीं लेते हैं। वह भी कभी हमारे कुंए तक नहीं आते हैं। जब हमारे हैंडपंप खराब हो जाते हैं तो हमें काफी परेशानी होती है। हम आधा किमी दूर सरकारी स्कूल के हैंडपंप से पानी भरते हैं। ‘जल जन जोड़ो अभियान’ के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह कहते हैं कि बुंदलेखंड में पानी को लेकर दलितों के साथ अत्याचार आम है। पानी की समस्या को दूर करने के रास्ते में हमारे लिए जाति प्रथा के खिलाफ लड़ाई भी शामिल है।
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80 फीसदी आबादी गांवों में
बुंदेलखंड का आधिकारिक नक्शा तो नहीं है, लेकिन भौगोलिक स्थिति, भाषा और संस्कृति की समानता को देखते हुए यह मध्य प्रदेश के सात और उत्तर प्रदेश के छह जिलों से मिलकर बनता है। सन 2011 की जनगणना के अनुसार बुंदेलखंड की आबादी करीब 1.8 करोड़ है। इनमें 1 करोड़ पुरुष और 80 लाख महिलाएं शामिल हैं। बुंदेलखंड की करीब 80 फीसदी आबादी गांवों में रहती है। 25 से 30 प्रतिशत आबादी दलितों की है। झांसी जिले में पुलिस ने 2016 में दलितों के साथ अपराध के 110 मुकदमे दर्ज किए। जबकि सन 2017 में 141 और जुलाई 2018 तक 93 मामले दर्ज हुए थे। इनमें मारपीट के सबसे ज्यादा केस थे।