घोटालों में सीबीआई जांच से हड़कंप, बडे नताओं व अफसरों तक पहुंची आंच

Update:2019-07-12 16:04 IST
घोटालों में सीबीआई जांच से हड़कंप, बडे नताओं व अफसरों तक पहुंची आंच

धनंजय सिंह

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की सियासत में सीबीआई का खास रोल रहा है। जब-जब चुनाव आते हैं तब-तब कोई न कोई सीबीआई जांच सूबे के सियासी माहौल को गरम कर देती है। कभी ताज कॉरिडोर, कभी फ्लोट पंप, कभी खाद्यान्न, कभी आय से अधिक संपत्ति, कभी खनन, कभी एनआरएचएम, कभी चीनी मिल तो कभी रिवरफ्रंट घोटाले की जांच सियासत में अपना रोल अदा करने लगती है। आज जब प्रदेश में विधानसभा की 12 सीटों के उपचुनाव सिर पर हैं तो खनन, चीनी मिल व रिवर फ्रंट घोटाले की जांच तेजी पर है। लगता है कि इस बार के उपचुनाव को इन तीनों जांचों के खुलासे प्रभावित करेंगे। इन जांचों के सिरे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव व बसपा सुप्रीमो मायावती तक जाते हैं। प्रदेश में अखिलेश यादव के कार्यकाल में प्रमुख सचिव खनन और निदेशक खनन के पदों पर तैनात आईएएस अफसरों के साथ ही साथ एक दर्जन से अधिक जिलाधिकारी अकेले खनन घोटाले की जद में हैं जबकि चीनी मिल घोटाले में तकरीबन एक दर्जन अधिकारी और तत्कालीन चीनी और गन्ना उद्योग मंत्री पर भी सीबीआई की गाज गिरना तय मानी जा रही है। रिवर फ्रंट घोटाले में एक पूर्व मुख्य सचिव के साथ ही साथ प्रमुख सचिव सिंचाई व वित्त ही नहीं, डेढ़ दर्जन से अधिक कंपनियां जांच की जद में हैं।

कभी केन्द्र सरकार का तोता कही जाने वाली सीबीआई की निगाह एक बार फिर यूपी में हुए भ्रष्टाचार में शामिल रहे अधिकारियों और नेताओं पर टिक गयी है। जुलाई के पहले सप्ताह में शुरू हुई सीबीआई की कार्रवाई से भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों की नींद हराम है। भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़ी गई मुहिम के तहत कई बड़े नेताओं और अफसरों का फंसना तय है। छापेमारी और जांच पड़ताल का सिलसिला अभी और आगे जाएगा, यह भी तय है।हाल ही में चीनी मिल बिक्री घोटाले में यूपी के चार शहरों के 19 ठिकानों में सीबाआई छापे के बाद खनन मामले में बुलन्दशहर के जिलाधिकारी अभय सिंह के आवास पर छापा पड़ा। सीबीआई की इस कार्रवाई से प्रशासनिक खेमे में तहलका मचा हुआ है। इसके पहले रिटायर्ड आईएएस नेतराम के यहां भी छापेमारी की गयी थी। 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यकाल के दौरान अभय सिंह फतेहपुर के डीएम थे। आरोप है कि उन्होंने बिना नियम कानून के मनचाहे लोगों को खनन का काम दिया।

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चीनी घोटाले में बड़ी कार्रवाई

चीनी मिल घोटाले के बारे में सीबीआई ने बसपा सुप्रीमो मायावती के शासनकाल में प्रमुख सचिव तथा प्रमुख सचिव गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग रहे नेतराम के गोमतीनगर स्थित आवास तथा बसपा सरकार में चीनी मिल निगम संघ के एमडी रहे विनय प्रिय दुबे (रिटायर्ड आईएएस ) के अलीगंज स्थित घर समेत 14 ठिकानों पर छापेमारी कर बता दिया है कि वह इस मामले की तह तक जाएगी। छापेमारी के दौरान सीबीआई ने करोड़ों रुपये की संपत्तियों सहित घोटाले से जुड़े कई अहम दस्तावेज कब्जे में लिए हैं। इससे पूर्व आयकर विभाग ने लोकसभा चुनाव से पहले नेतराम व उनके करीबियों के ठिकानों पर छापेमारी कर 225 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्तियों के दस्तावेज कब्जे में लिए थे। उधर यूपी में गोमती रिवर फ्रंट व खनन घोटाले के बाद सीबीआई ने बसपा शासनकाल में करोड़ों के चीनी मिल घोटाले में सात नामजद आरोपितों के खिलाफ केस दर्ज किया है।

बसपा सरकार में 21 सरकारी चीनी मिलों को औने-पौने दामों में बेचकर करीब 1100 करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप है। चीनी निगम की 10 संचालित व 11 बंद पड़ी चीनी मिलों को 2010-2011 में बेच दिया गया। सीबीआई लखनऊ की एंटी करप्शन ब्रांच ने चीनी मिल बिक्री घोटाले में लखनऊ के गोमतीनगर थाने में सात नवंबर 2017 को दर्ज कराई गई एफआईआर को अपने केस का आधार बनाया है। सात चीनी मिलों में हुई धांधली में सीबीआई ने धोखाधड़ी व कंपनी अधिनियम समेत अन्य धाराओं में रेगुलर केस दर्ज किया है जबकि 14 चीनी मिलों में हुई धांधली को लेकर छह प्रारंभिक जांच (पीई) दर्ज की गई हैं।

सीबीआई पहले से ही इस घोटाले के तार खंगाल रही थी। वहीं राज्य सरकार ने सीरियस फ्रॉड इंवेस्टिगेशन आर्गनाईजेशन (एसएफआइओ) से मामले की जांच कराई थी जिसके बाद राज्य चीनी निगम के प्रबंध निदेशक की ओर से गोमतीनगर थाने में धोखाधड़ी की एफआईआर दर्ज कराई गई थी। इसमें पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी दंपति समेत सात लोगों को फर्जी दस्तावेजों के जरिए राज्य की सात चीनी मिलें खरीदने का आरोपी बनाया गया था।सीबीआई ने अपने केस में दिल्ली निवासी राकेश शर्मा, उनकी पत्नी सुमन शर्मा के अतिरिक्त पांच अन्य को आरोपी बनाया है।

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औने-पौने दाम पर बेची गई 21 चीनी मिलें

बताया गया कि चीनी निगम की 21 चीनी मिलों को वर्ष 2010-11 में बेचा गया था। इस दौरान नम्रता मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड ने देवरिया, बरेली, लक्ष्मीगंज (कुशीनगर) व हरदोई इकाई की मिलें खरीदने के लिए 11 अक्टूबर 2010 को एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट कम रिक्वेस्ट फॉर क्वालीफिकेशन (ईओआइ कम आरएफक्यू) प्रस्तुत किए थे।यही प्रक्रिया गिरियाशो कंपनी प्राइवेट लिमिटेड ने भी अपनाई थी। नियमों को दरकिनार कर समिति ने दोनों कंपनियों को नीलामी प्रक्रिया के अगले चरण के लिए योग्य घोषित कर दिया था। दोनों कंपनियों की बैलेंस शीट व अन्य कागजातों में भारी अनियमितताएं पाई गयी थीं।

सीबीआई की कार्रवाई से मचा हड़कंप

उत्तर प्रदेश राज्य चीनी निगम लिमिटेड की 14 चीनी मिलों की बिक्री में हुए घोटाले के मामले में सीबीआई की प्रारंभिक जांच शुरू होने से इनके खरीददारों और बिक्री प्रक्रिया से जुड़े अफसरों में हड़कंप मचा हुआ है। माना जा रहा है कि भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट इस जांच का आधार बन सकती है। सीबीआई को वैसे तो कुल 21 चीनी मिलों की बिक्री की जांच सौंपी गई है, लेकिन इसमें से 7 बंद चीनी मिलों के मामले में उसने बाकायदा नियमित मुकदमा दर्ज करके जांच शुरू की है। इन 7 बंद चीनी मिलों की बिक्री के संबंध में जांच गंभीर कपट अन्वेषण संगठन कर चुका है। इसके निष्कर्षों के आधार पर ही चीनी निगम ने लखनऊ के गोमतीनगर थाने में मुकदमा दर्ज कराया था। अब यही मुकदमा एक तरह से सीबीआई को स्थानान्तरित हो गया है। अन्य चीनी मिलों के संबंध में अपनी जांच के बाद सीबीआई नियमित मुकदमा दर्ज करेगी। सीबीआई की इस प्रारंभिक जांच में बसपा शासनकाल में हुई बिक्री की पूरी प्रक्रिया घेरे में आ जाएगी। दरअसल वर्ष 2009 में चीनी मिलों के विनिवेश के लिए इनके मूल्यांकन की प्रक्रिया शुरू हुई थी।

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दबा दी गयी लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट

प्रदेश में तीन प्रकार की चीनी मिलें हैं। इसमें सरकारी, प्राइवेट व कोआपरेटिव की मिलें शामिल हैं। उस समय चीनी निगम की 35, चीनी फेडरेशन की 28 और 93 प्राइवेट मिलें थी। चीनी निगम अस्तित्व में ही तब आया था जब काफी चीनी मिलें घाटे में थीं। बसपा सरकार ने इसी घाटे को आधार बनाकर चीनी निगम की मिलों को बेचने का फैसला किया। कैग ने अपनी रिपोर्ट में पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाया तो बसपा के बाद सत्ता में आई अखिलेश सरकार ने लोकायुक्त को जांच सौंप दी थी। वर्तमान में सहकारी 25 और निजी क्षेत्र की 100 चीनी मिलें हैं।

लोकायुक्त ने भी भारी अनियमितता पकड़ी और आगे की कार्रवाई की सिफारिश की, लेकिन यह जांच रिपोर्ट दबी ही रह गई। आरोप है कि सभी 21 चीनी मिलों की बिक्री में खरीदारों को स्टाम्प ड्यूटी में ही लगभग 1180 करोड़ रुपये का फायदा पहुंचाया गया था। कायदे-कानून को ताक पर रखकर स्टाम्प ड्यूटी का निर्धारण किया गया था। इन चीनी मिलों की बिक्री के लिए नीलामी की प्रक्रिया से बड़ी कंपनियों के पीछे हटने से भी प्रकरण संदिग्ध हो गया था।

खनन में अखिलेश तक पहुंच सकती है जांच की आंच

उत्तर प्रदेश में अवैध रेत खनन के एक मामले में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर सीबीआई जांच का शिकंजा कस सकता है। दरअसल, जांच एजेंसी ने इस सिलसिले में एक प्राथमिकी सार्वजनिक की है। सीबीआई हमीरपुर जिले में 2012-16 के दौरान अवैध रेत खनन मामले की जांच कर रही है। मामले में 11 लोगों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी के संबंध में 14 स्थानों पर तलाशी ली गयी थी। इन 11 लोगों में आईएएस अधिकारी बी चंद्रकला, सपा के विधान पार्षद रमेश कुमार मिश्रा और संजय दीक्षित शामिल थे। संजय दीक्षित 2017 का विधानसभा चुनाव बसपा के टिकट पर लड़े थे, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली थी। बी चंद्रकला 2008 बैच की आईएएस अधिकारी हैं। वह अपने कथित भ्रष्टाचार रोधी अभियान को लेकर सोशल मीडिया पर चर्चित रही हैं । प्राथमिकी में कहा गया है कि मामले की छानबीन के दौरान संबंधित अवधि में तत्कालीन खनन मंत्री की भूमिका की भी जांच हो सकती है।

अखिलेश के पास था खनन का अतिरिक्त प्रभार

प्राथमिकी के मुताबिक 2012 से 2017 के बीच मुख्यमंत्री रहे अखिलेश यादव के पास 2012-2013 के बीच खनन विभाग का अतिरिक्त प्रभार था। इससे उनकी भूमिका जांच के दायरे में आ जाती है। उनके बाद 2013 में गायत्री प्रजापति खनन मंत्री बने थे और एक महिला द्वारा बलात्कार की शिकायत के बाद 2017 में उन्हें गिरफ्तार किया गया था।यह प्राथमिकी सीबीआई द्वारा दो जनवरी 2019 को दर्ज किए गए अवैध खनन के मामलों से संबद्ध है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ओर से इस मामले की जांच के आदेश दिए जाने के करीब ढाई साल बाद सीबीआई ने यह कार्रवाई की है।

उच्च न्यायालय ने 28 जुलाई 2016 को निर्देश दिया था कि वह राज्य में अवैध खनन की जांच करे। इसके बाद उसने दो प्रारंभिक जांच (पीई) दर्ज की थी, जिसमें से दो शामली एवं कौशांबी जिलों से जुड़े थे। इन्हें 2017 में प्राथमिकी में तब्दील कर दिया गया था। वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि फतेहपुर, देवरिया, सहारनपुर और सिद्धार्थनगर जिलों से जुड़े मामले भी जल्द दाखिल किए जाएंगे। सीबीआई 2012 और 2016 की अवधि के दौरान के अवैध खनन की जांच कर रही है।

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कई बड़े होंगे निशाने पर

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर मायावती के कार्यकाल के दौरान 21 सरकारी चीनी मिलों की बिक्री में हुई कथित अनियमितता की जांच में बसपा सुप्रीमो मायावती की भी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। अधिकारियों ने बताया कि 2011-12 में मायावती के कार्यकाल के दौरान चीनी मिलों की बिक्री से सरकारी खजाने को कथित तौर पर 1,179 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था।चीनी निगम की मलियाना, सहारनपुर, जरवल, बुढ़वल, भटनी, बैतालपुर, नंदगंज, रायबरेली, महोली, पिपराइच, सिसवा बाजार, चांदपुर, देवरिया, शाहगंज, बरेली,लक्ष्मीगंज, हरदोई, राम कोला, छितौनी, बाराबंकी और छाता मथुरा की चीनी मिलो को बेचा गया था।

40 एकड़ की चीनी मिल औने-पौने दाम पर

भारत सरकार की एजेंसी आईएफसीआई को 21 चीनी मिलों की वैल्यू लगाने के लिए नियुक्त किया गया था। तत्कालीन गन्ना मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी और गन्ना विभाग के अधिकारियो के साथ मिलकर इसकी कीमतबाजार से भी बहुत कम रखी गई। उदाहरण के तौर पर बाराबंकी चीनी मिल, जो अब बाराबंकी सिटी में आ गयी है और 40 एकड़ में फैली हुई है, उसकी कीमत महज डेढ़ करोड़ लगाई गई। इसे तत्कालीन गन्ना मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने अपने रिश्तेदारों के नाम से खरीदा जिन्हें सीबीआई ने नामजद किया है। इसी तरह अन्य चीनी मिलों की कीमतों में खेल कर औने-पौने दाम में बेचा गया।

इनके खिलाफ दर्ज किया मुकदमा

सीबीआई ने इस मामले में दिल्ली के रोहिणी निवासी राकेश शर्मा, सुमन शर्मा, गाजियाबाद के इंदिरापुरम निवासी धर्मेंद्र गुप्ता, सहारनपुर के साउथ सिटी निवासी सौरभ मुकुंद, मोहम्मद जावेद, बेहट निवासी मोहम्मद नसीम अहमद और मोहम्मद वाजिद को नामजद किया है। इनके खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी और कंपनी ऐक्ट 1956 की धारा 629 (ए) के तहत मामला दर्ज हुआ है। इससे पहले राज्य चीनी निगम लिमिटेड ने चीनी मिलें खरीदने वाली दो फर्जी कंपनियों के खिलाफ नौ नवंबर 2017 को गोमतीनगर थाने में एफआईआर दर्ज करवाई थी।

किस तरह बेचीं गयीं मिलें

चीनी निगम ने वर्ष 2010-11 में 21 चीनी मिलें बेची थीं। नम्रता मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड व गिरियाशो कंपनी प्राइवेट लिमिटेड ने देवरिया, बरेली, लक्ष्मीगंज (कुशीनगर व हरदोई इकाई की मिलें खरीदने के लिए आवेदन किया था। दोनों कंपनियों को नीलामी प्रक्रिया के अगले चरण के लिए योग्य घोषित कर दिया था। जांच में खुलासा हुआ कि कंपनियों ने काल्पनिक बैलेंस शीट, बैंकों का फर्जी लेन-देन दिखाकर कीमती चीनी मिलों को औने-पौने दामों में खरीद लिया। बिक्री प्रक्रिया के दौरान किसी अधिकार ने भी कंपनियों की ओर से दाखिल किए गए दस्तावेज की पड़ताल नहीं की। मायावती के कार्यकाल में हुए इस घोटाले की सीएजी और लोकायुक्त जांच रिपोर्ट अखिलेश सरकार को सौंपी गई थी पर मामला ठंडा पड़ा रहा। योगी सरकार ने अप्रैल 2018 में केंद्र को मामले की सीबीआई जांच के लिए पत्र भेजा था।

अवैध खनन में सीबीआई ने इन्हें बनाया आरोपी

सीबीआई सूत्रों की मानें तो लीज होल्डर आदिल खान, आईएएस अधिकारी बी. चंद्रकला, तत्कालीन खनन अधिकारी मोइनुद्दीन, समाजवादी पार्टी के विधायक रमेश मिश्रा और उनके भाई, हमीरपुर में खनन क्लर्क रहे राम आश्रय प्रजापति और अंबिका तिवारी, जालौन में खनन क्लर्क रहे राम अवतार सिंह और उनके रिश्तेदार के अलावा संजय दीक्षित और जालौन के करण सिंह पर अवैध खनन में शामिल होने का आरोप है। सीबीआई ने विधायकी का चुनाव लड़ चुके संजय दीक्षित के साथ ही उनके पिता सत्य देव दीक्षित के खिलाफ भी कार्रवाई की है। आईएएस अधिकारी चंद्रकला पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की रोक के बावजूद खनन लीज की मंजूरी देने और उसे रिन्यू करने का आरोप है। सीबीआई की छापेमारी में उनके पास से प्रापर्टी के दस्तावेज बरामद हुए हैं। साथ ही उनके लॉकर और कुछ ज्वैलरी को जब्त किया गया है। वहीं, आदिल खान पर तत्कालीन खनन मंत्री गायत्री प्रजापति की सिफारिश से लीज हासिल करने का आरोप है।मोइनुद्दीन के पास से छापेमारी में 12 लाख 50 हजार रुपये नकद और एक किलो 800 ग्राम सोना बरामद हुआ है। जालौन में खनन विभाग में क्लर्क रहे राम अवतार सिंह के ठिकाने से भी सीबीआई ने 2 करोड़ रुपये नकद और 2 किलो सोना बरामद किया है।

आरोपों में पहले भी घिर चुकी हैं चंद्रकला

अगर चंद्रकला की बात करें तो वह पहले भी आरोपों में घिर चुकी हैं। उन्होंने साल 2017 में अपनी संपत्ति का ब्योरा नहीं दिया था। सिविल सेवा अधिकारियों को 2014 के लिए 15 जनवरी 2015 तक अपनी संपत्ति का रिकॉर्ड पेश करना था। केंद्रीय सामान्य प्रशासन एवं प्रशिक्षण विभाग के मुताबिक चंद्रकला की संपत्ति 2011-12 में 10 लाख रुपये थी, जो 2013-14 में बढ़कर करीब 1 करोड़ रुपये हो गई यानी एक साल में उनकी संपत्ति 90 फीसदी बढ़ी।

कहा जा रहा है सीबीआई की लगातार छापेमारी की कार्रवाई से चीनी मिल घोटाले में तत्कालीन कई नेता व अफसर जांच के घेरे में होंगे। मिलों की बिक्री की प्रक्रिया में सीधे तौर पर शामिल रहे नेता व अधिकारियों पर सीबीआई का शिकंजा जल्द कसेगा। बताया गया कि सीबीआइ जांच की आंच अभी कई अन्य आईएएस अधिकारियों तक जल्द ही पहुंचेगी।

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