केंद्र सरकार का पावर सेक्टर पैकेज बना निजी बिजली घरानों का राहत पैकेज

ऑल इण्डिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने केंद्र सरकार द्वारा घोषित पावर सेक्टर पैकेज को निजी बिजली उत्पादन घरानों के लिए राहत पॅकेज करार देते हुए मांग की है कि राज्यों की बिजली वितरण और उत्पादन कंपनियों को इस संकट की घड़ी में केंद्र सरकार कर्ज के बजाये अनुदान दे।

Update: 2020-05-14 11:01 GMT

लखनऊ: ऑल इण्डिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने केंद्र सरकार द्वारा घोषित पावर सेक्टर पैकेज को निजी बिजली उत्पादन घरानों के लिए राहत पॅकेज करार देते हुए मांग की है कि राज्यों की बिजली वितरण और उत्पादन कंपनियों को इस संकट की घड़ी में केंद्र सरकार कर्ज के बजाये अनुदान दे।

फेडरेशन ने केंद्र सरकार से अपील की है कि कोविड -19 महामारी के संकट में राज्यों की बिजली कंपनियों पर डाले गए कर्ज को अनुदान में बदले जिससे आने वाली खरीफ की फसल और देश की 70 प्रतिशत ग्रामीण जनता के हित में बिजली वितरण कम्पनियाँ सुचारु रूप से कार्य कर सकें।

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ऑल इण्डिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने गुरुवार को कहा कि केंद्र सरकार ने बिजली वितरण कंपनियों को जो 90,000 करोड़ रुपये का पॅकेज देने का एलान किया है।

उसमें साफ लिखा है कि यह धनराशि निजी बिजली उत्पादन घरों, निजी पारेषण कंपनियों और केंद्रीय क्षेत्र के बिजली उत्पादन घरों का बकाया अदा करने के लिए दी जा रही है और राज्यों की बिजली वितरण कंपनियां इसका कोई और उपयोग नहीं कर सकेंगी।

इससे साफ है कि यह रिलीफ पैकेज निजी घरानों के लिए है न कि राज्य की सरकारी बिजली कंपनियों के लिए। इतना ही नहीं राज्य की वितरण कम्पनियां तो इस धनराशि का उपयोग राज्य के सरकारी बिजली उत्पादन घरों से खरीदी गई बिजली का भुगतान करने के लिए भी नहीं कर सकती हैं, जिनसे राज्यों को सबसे सस्ती बिजली मिलती है।

उन्होंने कहा कि निजी बिजली उत्पादन घरों और केंद्रीय क्षेत्र के बिजली उत्पादन घरों का कुल बकाया 94, 000 करोड़ रुपये है और केंद्र सरकार ने 90,000 करोड़ रुपये दिए है तो और स्पष्ट हो जाता है कि राज्यों की बिजली कंपनियों के लिए इस पॅकेज में कुछ नहीं है।

केंद्र सरकार यह धनराशि राज्य सरकारों द्वारा गारंटी देने पर कर्ज के रूप में दे रही है और यह समझना मुश्किल नहीं है कि लॉकडाउन के चलते भारी नुकसान उठा रही राज्यों की बिजली वितरण कम्पनियां इस कर्ज को कैसे अदा करेंगी। इसलिए केंद्र सरकार अगर वास्तव में मदद करना चाहती है तो कर्ज के बजाय उसे अनुदान देना चाहिए।

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दुबे ने सवाल भी उठाया कि केंद्र व् राज्य के सरकारी विभागों पर बिजली वितरण कंपनियों का 70,000 करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व बकाया है। अकेले उत्तर प्रदेश में ही सरकारी विभागों का बकाया 13,000 करोड़ रुपये से अधिक है।

अगर सरकार अपना बकाया ही दे दे तो राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों को केंद्र सरकार से कोई कर्ज लेने की जरूरत नहीं रहेगी। उन्होंने कहा कि इस संकट की घड़ी में निजी घरानों की चिंता के साथ सरकारों को अपने बिजली राजस्व के बकाये का भुगतान भी सुनिश्चित करना चाहिए वरना 90,000 करोड़ रुपये के इस कर्ज के बोझ तले दबी वितरण कम्पनियां कैसे और कब तक अपने कर्मचारियों के वेतन का भुगतान कर सकेंगी।

उन्होंने कहा कि घोषित पॅकेज में कहा गया है कि इस संकट के दौरान केंद्रीय उपक्रमों की बिजली उत्पादन कम्पनियां राज्यों की वितरण कंपनियों से न खरीदी गई बिजली के फिक्स चार्ज को नहीं वसूलेंगी।

जबकि इस मामले में निजी बिजली उत्पादन कंपनियों को न खरीदी गई बिजली के फिक्स चार्ज लेने का अधिकार दिया गया है। एक ही मामले में दो मापदण्ड से साफ है कि यह घोषणा निजी घरानों के लिए मदद का तोहफा है जबकि राज्यों की सरकारी बिजली कंपनियों पर कर्ज और बिना बिजली खरीदे निजी घरानों को फिक्स चार्ज देने का भार उठाना होगा।

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