चिन्मयानन्द मामले की प्रगति रिपोर्ट पेश, इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई 28 नवम्बर को

Update:2019-10-22 20:32 IST

प्रयागराज। स्वामी चिन्मयानन्द पर एलएलएम छात्रा से दुराचार व पीड़िता पर ब्लैकमेल के आरोपों की जांच कर रही एसआईटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रगति रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में पेश कर दी है। कोर्ट को बताया गया कि आवाज की जांच रिपोर्ट अभी नहीं मिली है। फोरेंसिक जांच रिपोर्ट आने के बाद स्थिति स्पष्ट हो सकेगी। कोर्ट ने अगली सुनवाई की तिथि 28 नवम्बर तय करते हुए जांच की प्रगति रिपोर्ट माँगी है।

यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज मिश्र तथा न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की खण्डपीठ ने दिया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मामले की निगरानी हाईकोर्ट द्वारा की जा रही है। पीड़िता की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता रवि किरण जैन ने पीड़िता की एक अर्जी पर कोर्ट का ध्यान आकृष्ट किया। जिसमें स्वामी के खिलाफ पीड़िता ने बहुत पहले नई दिल्ली के लोधी थाने में शिकायत की है। उसकी अलग से जांच की मांग की गई। एसआईटी उस मामले की भी जांच कर रही है। कोर्ट ने राज्य सरकार से इस अर्जी पर भी जवाब माँगा है।

एक अन्य अर्जी पर सुनवाई 6 नवंबर को

सरकार की तरफ से जीए एस.के. पाल व एजीए प्रथम ए.के. सण्ड व स्वामी चिन्मयानन्द की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता दिलीप कुमार ने पक्ष रखा। वही एक अन्य कोर्ट ने स्वामी चिन्मयानंद ब्लैकमेल की आरोपी रेप पीड़िता की जमानत अर्जी पर राज्य सरकार व स्वामी को जवाब दाखिल करने का समय दिया है। अर्जी की सुनवाई 6 नवंबर को होगी। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने की पीड़िता की जमानत अर्जी की सुनवाई की।

88 बर्खास्त कर्मचारियों की श्रम न्यायालय में जारी कार्रवाई 6 माह में पूरा करने का निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इफको फूलपुर के बर्खास्त 88 कर्मियों की बकाया वेतन के साथ बहाली आदेश के निष्पादन की सक्षम प्राधिकारी श्रम न्यायालय प्रयागराज में चल रही कार्यवाही को 6 माह में पूरी करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि 2002 में पारित अवार्ड के पालन कराने की सुनवाई में अनावश्यक स्थगन की अनुमति न दी जाए। यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र ने ज्ञानचन्द व 87 अन्य की याचिका पर दिया है। याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता ए.एन. त्रिपाठी, ए.के. मिश्र व आर.पी. मिश्र ने बहस की।

ये था मामला

याचीगण का कहना है कि लम्बे समय से इफको में कार्यरत याचियों को 1987-88 में अवैध रूप से हटा दिया गया जिसे औद्योगिक अधिकरण इलाहाबाद में चुनौती दी गई। 15 जून 1990 को अधिकरण ने अवार्ड दिया और याचियों की बकाया वेतन के साथ बहाली का आदेश दिया। जिसके खिलाफ इफको की याचिका खारिज हो गयी। 6 मार्च 2002 को एसएलपी भी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी। अवार्ड फाइनल हो गया। फिर भी याचियों को बहाल नहीं किया गया तो धारा 6-एच 1 व 6-एच 2 के तहत अवार्ड का पालन कराने एवं धारा 14-ए के तहत बर्खास्तगी के दिन से 250 रूपये प्रतिदिन पेनाल्टी लगाने की मांग में निष्पादन वाद दायर किया। जो 2002 से निष्पादन कार्यवाही लंबित है। जिसे 6 माह में तय करने का निर्देश दिया है।

प्रवर्तक पर्यवेक्षकों की प्रोन्नति मामले में प्रमुख सचिव को आदेश पालन का दुबारा मौका

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रवर्तन पर्यवेक्षकों की प्रोन्नति की विभागीय संरचना तैयार करने के आदेश की अवहेलना को प्रथम दृष्टया अवमानना माना है और परिवहन विभाग के प्रमुख सचिव अरविन्द कुमार को आदेश का पालन करने का दुबारा मौका दिया है।

कोर्ट ने कहा है कि 2 माह में लिये गये निर्णय से याची को अवगत कराएं। कोर्ट ने कहा है कि फिर भी आदेश का पालन नहीं होता तो याची तिबारा अवमानना याचिका दाखिल कर सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति एम.सी. त्रिपाठी ने अमित अग्रवाल की अवमानना याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है।

अवमानना याचिका पर दो माह का समय

याची अधिवक्ता संजय कुमार पांडेय का कहना है कि कोर्ट ने विपक्षी को एक माह में नियमानुसार निर्णय लेने का निर्देश दिया था जिसका पालन न करने पर दाखिल अवमानना याचिका कोर्ट ने विपक्षी को आदेश के पालन का समय देते हुए निस्तारित कर दिया था। फिर भी आदेश का पालन नहीं हुआ तो दुबारा अवमानना याचिका दाखिल की गयी। कोर्ट ने पुनः प्रमुख सचिव परिवहन विभाग को 2 माह का समय दिया है।

चरस के आरोपी की 10 साल की कठोर सजा व 1 लाख जुर्माना की सजा रद्द

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्रक की रिम सहित टायर व 20 ग्राम चरस के साथ पकड़े गए आरोपी इटावा थाना भर्थना के सत्ते उर्फ सत्तन को दोष मुक्त घोषित करते हुये उसे दी गई 10 साल के कठोर कारावास व एक लाख जुर्माना 1 की सजा रद कर दी है। और तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने दिया है।

अपर सत्र न्यायाधीश इटावा द्वारा सुनाई गई सजा के खिलाफ दाखिल अपील पर न्यायमित्र राधेश्याम यादव ने बहस की। इनका कहना था कि एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 के बाध्यकारी उपबन्धों का पालन नहीं किया गया। इस धारा के तहत तलाशी मजिस्ट्रेट के सामने होनी चाहिए और स्वतंत्र गवाह होने चाहिए। इस केस में इस नियम का पालन नहीं किया गया। अपर सत्र न्यायालय ने पुलिस के ऐसे साक्ष्यों के आधार पर सजा सुनाई है जिन्हें कोर्ट में साबित नहीं किया गया। ऐसे दस्तावेज का साक्षिक मूल्य भी नहीं है। ऐसे में सुनाई गई सजा कानून के विपरीत होने के कारण रद्द की जाय। कोर्ट ने 10 अगस्त 1998 को सुनाई गई सजा रद्द कर दी है।

बहू आत्महत्या मामले में पूर्व बसपा सांसद नरेन्द्र कश्यप व उनकी पत्नी को मिली सजा पर रोक

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूर्व बसपा सांसद नरेंद्र कश्यप को अपनी बहू को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने के आरोप में मिली सजा पर रोक लगा दी है। नरेंद्र कश्यप को गाजियाबाद की जिला अदालत ने साढ़े तीन साल के कारावास और दस हजार जुर्माने की सजा सुनाई थी। पूर्व सांसद की पत्नी देवेंद्री कश्यप को भी अदालत ने इतनी ही सजा सुनाई है। सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दाखिल की गयी है। यह आदेश न्यायमूर्ति आर.के. गौतम ने नरेंद्र कश्यप व उनकी पत्नी की आपराधिक अपील पर दिया है।

दोनों पहले से ही जमानत पर है। आपराधिक अपील पर दाखिल अर्जी में नरेंद्र कश्यप का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी ने कहा कि याची पर लगाए गए आरोप मनगढ़ंत एवं बेबुनियाद है। अधीनस्थ न्यायालय ने दहेज उत्पीड़न, हत्या आदि आरोपों से बरी कर दिया है। किन्तु आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरित करने के आरोप में सजा सुनाई गई है। बहू की मृत्यु में अपीलार्थी के विरुद्ध कोई साक्ष्य नहीं है। ऐसे में निचली अदालत का फैसला सही नहीं है। इसे रद्द किया जाए।

अपील पर सुनवाई जनवरी में

अधिवक्ता का यह भी कहना है कि याची एक राजनीतिक व्यक्ति है और इस सजा की वजह से वह चुनाव नहीं लड़ पा रहा है। उसका राजनीतिक भविष्य बर्बाद हो रहा है। कोर्ट ने सभी तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए नरेंद्र कश्यप को सुनाई गई सजा के आदेश पर रोक लगा दी है तथा अपील को सुनवाई के लिए जनवरी 2020 में सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है।

प्रमुख सचिव बेसिक तलब, हलफनामा न दाखिल कर मुकदमा अटकाने पर कोर्ट की तल्ख टिप्पणी

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा उ प्र के कार्य करने की शैली पर आज नाराजगी जताते हुए कड़ी टिप्पणी की है। चीफ जस्टिस की बेंच ने कहा कि या तो वह कोर्ट के आदेश के अनुपालन में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं अथवा उन्हें पद पर काम करने की शैली ही मालूम नहीं है । उनके द्वारा हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद स्वयं का हलफनामा न दाखिल कर बेशिक शिक्षा अधिकारी के मार्फत हलफनामा दाखिल करने पर नाराजगी व्यक्त की है और आदेश का पालन न करने के स्पष्टीकरण के साथ बुधवार 23 अक्टूबर को कोर्ट में हाजिर होने का निर्देश दिया है। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर तथा न्यायमूर्ति विवेक वर्मा की खंडपीठ ने बाँदा निवासी सुशील त्रिवेदी की जनहित याचिका पर दिया है।

मालूम हो कि 30 अगस्त 2019 को कोर्ट ने विशेष सचिव/सचिव बेसिक शिक्षा से हलफनामा माँगा था कि अध्यापकों को स्कूलों में तैनात करने के बजाय कार्यालय में सम्बद्ध क्यों किया जा रहा है। याची का कहना है कि ऐसा करने से स्कूलों की पढ़ाई को नुकसान हो रहा है। प्रमुख सचिव ने कोई हलफनामा नहीं दाखिल किया और अपनी तरफ से बेसिक शिक्षा अधिकारी बांदा का हलफनामा दाखिल कराया। जिनमे मांगी गई जानकारी नही थी। इस पर कोर्ट ने प्रमुख सचिव से स्वयं हलफनामा दाखिल करने को कहा तो सरकारी वकील ने प्रमुख सचिव की तरफ से कोर्ट में अर्जी दाखिल कर 2 सप्ताह का समय मांगा ।

कोर्ट की तल्ख टिप्पणी

कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि या तो प्रमुख सचिव को अपने वैधानिक दायित्व का ज्ञान नहीं है या न्यायिक कार्रवाही में अनावश्यक रूप से बाधा उत्पन्न कर रहे हैं । ऐसा लगता है कि प्रमुख सचिव को कोर्ट के आदेश की परवाह नहीं है और वह सम्मान नही कर रहे है। कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त करते हुए प्रमुख सचिव को बुधवार 23 अक्टूबर तक हलफनामा दाखिल करने का समय दिया। साथ ही स्पष्टीकरण के साथ कोर्ट में हाजिर होने का भी निर्देश दिया है।

 

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