कौशाम्बी: कभी किसी चीज को बेकार नहीं समझना चाहिए। कहते हैं कि बंद घड़ी भी दिन में दो बार सही समय बताती है। ठीक उसी तरह भले ही आम लोगों की नजरों में गधों का कोई मोल हो या न हो, लेकिन देश के कुछ कुछ कोनों में गधों के भी अच्छे कद्रदान मौजूद हैं। देश विदेश में तरह तरह के मेले लगते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी जिले के कड़ा शीतला धाम में गर्दभ मेले के नाम से एक अनोखा मेला लगता है। इस मेले में गधा, खच्चर व अच्छी नस्ल के घोड़ों की खरीद फरोख्त की जाती है।
यहां पर गधों को सजाया-संवारा जाता है। गधों के लिए खाने-पीने के सामान से लेकर उन्हें सजाने- संवारने तक हर प्रकार का सामान मेले में उपलब्ध होता है। इसमें देश भर के दूर-दराज इलाकों से धोबी समाज के लोग इकट्ठा होते हैं। मेले में आने वाले धोबी समाज के लोग अपने बेटे और बेटियों के रिश्ते भी अक्सर यहीं खोज लेते हैं। इससे उनके दो फायदे होते हैं, गधों की खरीदारी के साथ रिश्तेदारी भी जुड़ जाती है।
70 हजार में बिका सबसे महंगा गधा
मेले में बारे में कहा जाता है पौराणिक मान्यता के मुताबिक गधा देवी शीतला की सवारी है। इसलिए कड़ा शीतला धाम में ये मेला लगता है। इस तरह का अलबेला गधों का मेला कम ही जगहों पर लगता है। मेले में राजस्थान, बिहार, म.प्र, जम्मू-कश्मीर जैसे कई राज्यों के लोग आते हैं। यहाँ काफी महंगे जानवर बिकते हैं, जिनकी कीमत हजारो में होती है। इस बार लगाए गए गधों के मेलों में सबसे महंगा गधा 70 हजार रूपए में बिका। पंडा समाज और धोबी समाज संयुक्त रूप से इस मेले का आयोजन सदियों से करते आ रहे हैं। तीन दिन तक चलने वाले इस मेले में गधा, खच्चर व घोड़ों की खरीद फरोक्त की संख्या हजारों में होती है।
घास और चना खिलाकर खुश करते हैं देवी शीतला की सवारी को
सूत्रों के अनुसार इस मेले में गधों के खाने पीने से लेके सजाने-संवारने तक के सभी सामान आसानी से मिलते हैं। मेले में बिकने से पहले गधों के खूब सजाया-संवारा जाता है। सजाने के लिए तरह-तरह के साजो सामान व खाने के लिए बेहतरीन भोजन बेचने वाले व्यापारी मेले की रौनक बढ़ाते हैं। तीन दिन तक चलने वाले इस मेले की सुर्खियां देश के कोने-कोने तक फैली हुई हैं। गधों की खरीदारी के अलावा मेले में तमाम लोग ऐसे भी पहुँचते हैं, जो देवी शीतला की सवारी गधे मे मनौती माँगते हैं। मनौती माँगने वाले लोग गधे को दूध पिलाते हैं, चना व हरी घास खिलाते हैं। जिनकी मनौती पूरी होती है, वह भी मेले मे पहुँचते हैं। ऐसे लोगों का मानना है कि देवी की सवारी के खुश होने पर उन्हे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
लगाए जाते हैं खास तरह के निशान
शीतला धाम में जिस तरह का अनोखा गधों का मेला लगता है, ऐसा मेला शायद ही देश के कुछ ही स्थानों पर लगता है। यहाँ पहुँचने वाले गधों, घोड़ों और खच्चर के मालिकों को किसी तरह की परेशानी न हो, इसलिए इन जानवरों पर विशेष तरह से निशान लगाये जाते हैं। इंसानों के मेले तो सभी ने खूब देखें होंगे, लेकिन ऐतिहासिक गधों का यह अलबेला मेला वास्तव में अपने आप में अलग पहचान बनाये हुए है। जिसे देखने के लिए इंसानों की भी भीड़ जुटती है। यहाँ पर सबसे अधिक "टीपू" नस्ल के गधों की खरीद फरोक्त होती है।
बड़ी खूबियां होती हैं इन गधों में
मेले में गधा खरीदने आए एक व्यापारी का कहना है कि लोग भले ही गधे को बेवकूफ जानवर समझते हों, लेकिन सच्चाई तो यह है कि ये काफी काम के होते हैं। इनके चारे की खास चिंता करने की जरूरत नहीं होती है। जो चारा भी दे दो, उसे खाकर पेट भर लेते हैं। ये बस एक बार में बताए गए रास्ते को याद कर लेते हैं। ये धोबियों और कुम्हारों के बड़े मददगार होते हैं।