शहरों में सिमट कर रह गयी ड्रेनेज सिस्टम, अब हो रही जलभराव की समस्या
ड्रेनेज सिस्टम को सही करने के लिए जरूरी है भारी भरकम धनराशि। UP में केवल शहरों के ड्रेनेज सिस्टम को दुरूस्त करने के लिए 25 हजार करोड़ से ज्यादा की दरकार है।
मनीष श्रीवास्तव
लखनऊ: बरसात का मौसम आते ही जलभराव की समस्या से सभी जूझतें हैं। यूपी के छोटे शहर या कस्बे हो या प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के लोकसभा क्षेत्र हर जगह जल निकासी के बेहतर इंतजाम न होने के कारण और मौजूदा इंतजामों के जाम होने के कारण सड़कों और घरों मे घुसते पानी का मंजर अब आम बात हो गई है। लंबे समय से कई दलों की सरकारें आईं और गईं और जनता ने समस्या का हल निकालने के लिए उनसे गुहार भी लगाईं, लेकिन नतीजा ढ़ाक के तीन पात ही रहा। लिहाजा अब जनता भी अपने स्तर पर ही इससे निपटने को मजबूर है।
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दरअसल, एक ओर तो सरकारों को जलभराव की यह समस्यां मौसमी लगती है और वह जानती है कि कुछ ही दिनों में यह खत्म हो जायेगी और जनता फिर सब कुछ भूल जायेगी। तो दूसरी ओर समस्या है ड्रेनेज सिस्टम को सही करने के लिए जरूरी भारी भरकम धनराशि की। यूपी में केवल शहरों के ड्रेनेज सिस्टम को दुरूस्त करने के लिए 25 हजार करोड़ से ज्यादा की दरकार है। इसमे भी बड़े शहरों के लिए 9330 करोड़, छोटे शहरों के लिए 10,911 करोड़ रुपये तथा कस्बों के लिए 5149 करोड़ रुपये की जरूरत है।
खस्ता वित्तीय हालात का सामना कर रहे नगर निकायों के लिए यह एक मुश्किल काम है। हालांकि सतत विकास लक्ष्य-11 के तहत वर्ष 2030 तक सौ फीसदी ड्रेनेज सिस्टम विकसित करने का लक्ष्य तो है लेकिन सरकारी एजेंडे में अभी इसके लिए न तो कोई योजना है और न ही धन का आवंटन। लिहाजा यूपी के लोग आज भी अंग्रेजों के जमाने में बनाये गए डेनेज सिस्टम में ही रहने को मजबूर है।
शहरों की लगातार बढ़ रही आबादी भी समस्या
शहरों में जलभराव की समस्या का एक और पहलू शहरों की लगातार बढ़ रही आबादी भी है। रोजगार व जीवन-यापन की अन्य बेहतर सुविधाओं की तलाश में गांवों से शहरों की ओर पलायन लगातार बढ़ रहा है। वर्ष 2001 तक यूपी में 3.45 करोड़ लोग शहर में रहते थे तो वर्ष 2011 में बढ़कर 4.95 करोड़ हो गए और वर्ष 2025 तक इनके 7.32 करोड़ होने का अनुमान है।
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शहरों की आबादी के साथ ही शहरी क्षेत्र का दायरा भी एक दशक में करीब 29 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। लेकिन शहरों की बढ़ती आबादी के हिसाब से यूपी के 707 नगर निकायों की कार्य क्षमता में वृद्धि नहीं हो पायी है। यहीं नहीं इस बढ़ती आबादी को बसाने के लिए तमाम नालों, झीलों और जलाशयों को अवैध तरीके से पाटकर वहां रिहाइशी कालोनियां बनायी जा रही है। सुगम यातायात के लिए सड़कों के चैड़ीकरण में नालों को संकरा कर दिया जा रहा है। इन संकरे नालों में फंसी पालीथिन की थैलियों से जब नाले में जल निकासी रूकेगी तो जलभराव लाजिमी है।
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ड्रेनेज सिस्टम को कभी गंभीरता से नहीं लिया गया
राजधानी लखनऊ के मुख्य नगर नियोजक रह चुके जीएस गोयल कहते है कि ड्रेनेज सिस्टम को कभी गंभीरता से नहीं लिया गया। इसके अलावा अंग्रेजों के समय के जो सिस्टम थे उन्हे भी खत्म किया जा रहा है। लखनऊ की चिरैया झील पर फ्लैटों का निर्माण हो गया तो मोती झील अवैध कब्जों की शिकार है। पुराने लखनऊ का डेªनेज सिस्टम दुरूस्त रखने वाली हैदर कैनाल लगातार संकरी होती जा रही है। गोयल का मानना है कि यह काम केवल नगर निकायों के जिम्मे नहीं छोड़ना चाहिए बल्कि इसके लिए राज्य स्तर पर योजना बनानी चाहिए।
ड्रेनेज सिस्टम सुधारने के लिए सरकार करेगी सहयोग
यूपी के नगर विकास मंत्री आशुतोष टण्डन ड्रेनेज सिस्टम पर ज्यादा फोकस करने को जरूरी मानते है। लेकिन उनका कहना है कि जलभराव की समस्यां के कई कारण है, जिनके हल के लिए नगर निकायों को निर्देश दिए जा चुके है। उन्होंने कहा कि ड्रेनेज सिस्टम सुधारने के लिए सरकार नगर निकायों का पूरा सहयोग करेगी और इसके लिए पीपीपी माडल पर योजना लाने पर भी विचार करेगी।
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