देशभर में अनूठी है 'सुलतानपुर' की दुर्गापूजा, सजा है पाकिस्तान के कटासराज शिव मंदिर का मॉडल

Update: 2018-10-20 06:47 GMT

सुलतानपुर: उत्तर-प्रदेश के सुलतानपुर जिले की ऐतिहासिक दुर्गापूजा अपनी अनूठी परम्पराओं के लिए प्रसिद्ध है। महोत्सव की व्यापकता के मामले में कलकत्ता के बाद देश में दूसरे स्थान का गौरव लिये सुलतानपुर कुछ मामले में विश्व में सबसे अलग है।

नवरात्र के प्रथम दिन देवी माताओं की प्रतिमाओं की होती है स्थापना

जिले में यह महापर्व के रूप में मनाया जाता है। लगभग एक पखवारे तक चलने वाली यहाँ की दुर्गापूजा अपने आप में अनूठी है, क्योंकि देश के अन्य स्थानों पर नवरात्र के प्रथम दिन ही देवी माताओं की प्रतिमाओं की स्थापना कर विजयादशमी को विसर्जित कर दिये जाते है ,जबकि सुलतानपुर जिले में विजयादशमी के पांच दिन बाद पूर्णिमा को सामूहिक रूप से सैकड़ों प्रतिमाओं की विशाल शोभायात्रा नगर के ठठेरी बाजार प्रथम दुर्गामाता पूजा समिति स्थल से निकाली जाती है।

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विसर्जन आदि गंगा गोमती के सीताकुण्ड घाट पर केन्द्रीय पूजा व्यवस्था समिति के द्वारा निर्धारित मार्ग से होकर करीब 36 घण्टे निरन्तर चलते रहने के बाद अगले दिन देर सायं से प्रारम्भ होती है। जो अनवरत अगले दिन तक जारी रहती है।

देश भर के प्रख्यात मन्दिरों के माॅडल को उतारा जाता है पण्डालों में

महोत्सव में पूजा समितियों की ओर से प्रतिवर्ष देश भर के प्रख्यात मन्दिरों के माॅडल को पण्डालों में उतारा जाता है। इस वर्ष 19 अक्टूबर से शुरू हुई दुर्गा पूजा महोत्सव में पाकिस्तान के कटासराज शिव मंदिर आदि माॅडलों के दर्शन श्रद्धालुओं को होंगे। इन पण्डालों में बंगाल के प्रसिद्ध मूर्तिकारों द्वारा मोती, शंख, सितारा, लौंग, शीप, मूंगफली कृत्रिम हीरे आदि से निर्मित आकर्षक माँ के विभिन्न स्वरूपों की प्रतिमाएं स्थापित की गई है।

दर्जनों जिले से लोग आते हैं अनूठी परम्पराओं वाली दुर्गापूजा महोत्सव को देखने

इस विशाल और अनूठी परम्पराओं वाली दुर्गापूजा महोत्सव को देखने के लिए पड़ोसी जनपदों फैजाबाद, प्रतापगढ़, जौनपुर, अम्बेडकरनगर, रायबरेली, बाराबंकी, भदोही, वाराणसी, इलाहाबाद, उन्नाव, लखनऊ आदि के विभिन्न क्षेत्रों से श्रृद्धालु आते हैैं। इन श्रृद्धालुओं को मेले में आने पर खाने से लेकर रहने व चिकित्सा तक की सारी सुविधाएं पूजा समितियां एवं स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा किया गया है।

नवयुवक दल सहित तमाम ऐसी स्वयंसेवी संस्थाएं हैं, जो मूर्ति स्थापना से लेकर विसर्जन तक भक्तों को प्रसाद के रूप में अलग-अलग व्यजंनों का भोजन वितरण करते हैं। ठहरने के लिए रैन वसेरा बनाये गए हैै। दर्जनभर स्थानों पर चिकित्सा शिविर व खोया-पाया शिविर आयोजित हैं।

कौमी एकता एवं सद्भावना भी है नमन योग्य

सुलतानपुर की दुर्गापूजा अपने अनूठी परम्पराओं से ही प्रसिद्धि नहीं पायी हैै, बल्कि यहाँ की कौमी एकता एवं सद्भावना भी नमन योग्य है। माँ दुर्गा की अद्भुद छठा को देखने के लिए मुस्लिम महिलाएं एवं बच्चे बूढ़े भी शामिल होते है। महोत्सव में आकर्षक कई पूजा समितियों में मुस्लिम समुदाय के युवक भी अपनी सक्रिय भागीदारी निभाते हैं तथा स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से रातभर जगकर सुरक्षा आदि व्यवस्थाओं में सहयोग करते हैं।

कई बार ऐसे मौके भी आए हैं जब मोहर्रम-बारावफात और दुर्गापूजा साथ-साथ पड़े हैं, पर दोनों वर्गों के प्रबुद्ध लोगों के आपसी सामांजस्य के कारण सुलतानपुर का साम्प्रदायिक माहौल कभी बिगड़ने नहीं पाया। यह महोत्सव लगभग एक पखवारे तक सभी वर्गाे के लोगों को रोजगार भी मुहैया कराता है।

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