किसानों के साथ बिजली कर्मी भी उतरे, जमकर किया विरोध प्रदर्शन
आज लगभग 15 लाख बिजली कर्मचारियों, जूनियर इंजीनियरों और इंजीनियरों ने किसानों के समर्थन में विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान यूपी के कई जिलों में प्रदर्शन किया गया।
लखनऊ: आज यानी आठ दिसंबर को केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों द्वारा भारत बंद का आह्वाहन किया गया था। इस बंद का देशभर में व्यापक असर देखने को मिला। बंद को कई राजनैतिक दल और संगठनों का समर्थन भी मिला। वहीं आज कृषि कानूनों और इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 की वापसी की मांग को लेकर किसानों के समर्थन में लगभग 15 लाख बिजली कर्मचारियों, जूनियर इंजीनियरों और इंजीनियरों ने विरोध प्रदर्शन किया।
उत्तर प्रदेश में इन जिलों में किया गया प्रदर्शन
उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों ने राजधानी लखनऊ में शक्तिभवन सहित मेरठ, नोएडा, गाजियाबाद, सहारनपुर, मुरादाबाद, बुलन्दशहर, गोरखपुर, आजमगढ़, अनपरा, ओबरा, वाराणसी, प्रयागराज, मिर्जापुर, कानपुर, झांसी, बरेली, बांदा, आगरा, अलीगढ़, पनकी, पारीछा, हरदुआगंज, बस्ती, अयोध्या, देवीपाटन, पिपरी समेत सभी जनपदों और परियोजनाओं पर प्रदर्शन कर किसानों का समर्थन किया।
किसानों के साथ अपनी एकजुटता का किया प्रदर्शन
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के प्रमुख पदाधिकारियों शैलेंद्र दुबे, प्रभात सिंह, ए. एन सिंह, जय प्रकाश, गिरीश कुमार पाण्डेय, सदरुद्दीन राना, सुहेल आबिद, राजेन्द्र घिल्डियाल, विनय शुक्ला, महेंद्र राय, परशुराम, सुनील प्रकाश पाल, वी के सिंह कलहंस, ए के श्रीवास्तव, प्रेम नाथ राय, संदीप राठौर, विजय गुप्ता, करूणेन्द्र कुमार वर्मा, आलोक श्रीवास्तव, कौशल किशोर वर्मा, पी.के. सिंह, डी.के. प्रजापति, आर के सिंह, भगवान मिश्र, राम सहारे वर्मा, प्रदीप वर्मा, गुफरान वारसी, चन्द्रशेखर ने बताया कि आज प्रदेश भर में सभी बिजली कर्मचारियों ने भोजनावकाश के दौरान प्रदर्शन कर किसानों के साथ अपनी एकजुटता का प्रदर्शन किया। राजधानी लखनऊ में शक्ति भवन मुख्यालय पर विरोध सभा मे सैकड़ों बिजली कर्मचारी, जूनियर इंजीनियर और अभियन्ता सम्मिलित हुए।
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ड्राफ्ट जारी होते ही किया गया था पुरजोर विरोध
उन्होंने बताया कि इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 का ड्राफ्ट जारी होते ही बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों ने इसका पुरजोर विरोध किया था। इस बिल में इस बात का प्रावधान है कि किसानों को बिजली टैरिफ में मिल रही सब्सिडी समाप्त कर दी जाए और बिजली की लागत से कम मूल्य पर किसानों सहित किसी भी उपभोक्ता को बिजली न दी जाए।
यद्यपि कि बिल में इस बात का प्रावधान किया गया है कि सरकार चाहे तो डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिए किसानों को सब्सिडी दे सकती है किंतु इसके पहले किसानों को बिजली बिल का पूरा भुगतान करना पड़ेगा जो सभी किसानों के लिए संभव नहीं होगा।
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इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 की वापसी की मांग
उन्होंने बताया कि किसान संयुक्त मोर्चा के आवाहन पर चल रहे आंदोलन में कृषि कानूनों की वापसी के साथ किसानों की यह एक प्रमुख मांग है कि इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 वापस लिया जाए। किसानों का मानना है की इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 के जरिए बिजली का निजीकरण करने की योजना है जिससे बिजली निजी घरानों के पास चली जाएगी और निजी क्षेत्र मुनाफे के लिए काम करते हैं जिससे बिजली की दरें किसानों की पहुंच से दूर हो जाएंगी।
उन्होंने इस सवाल पर किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए कहा है कि किसानों की आशंका निराधार नहीं है इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 और बिजली वितरण के निजीकरण के लिए जारी स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्युमेंट बिजली के निजीकरण के उद्देश्य से लाए गए हैं ऐसे में सब्सिडी समाप्त हो जाने पर बिजली की दरें 10 से 12 रु प्रति यूनिट हो जाएगी और किसानों को 8 से 10 हजार रु प्रति माह का न्यूनतम भुगतान करना पड़ेगा।
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