एनकाउंटर स्पेशलिस्ट: IPS अफसर ने लिखी अपनी कहानी, पढ़कर हो जायेंगे इमोशनल

नवनीत सिकेरा का बचपन एटा जिले के एक छोटे से गांव में बीता। उनके आईपीएस अफसर बनने की राह बहुत मुश्किल रही। वो अपने कई इंटरव्यू में बता चुके हैं कि वो अपने पिता के साथ हुए एक वाकये के चलते ही आईपीएस अफसर बने।

Update:2020-08-22 20:26 IST
एनकाउंटर स्पेशलिस्ट: IPS अफसर ने लिखी अपनी कहानी, पढ़कर हो जायेंगे इमोशनल

लखनऊ: एक आम लेकिन होनहार विद्यार्थी से देश का सबसे बड़ा अधिकारी बनने और फिर एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के तौर अपनी पहचान बनाने वाले नवनीत सिकेरा की कहानी बहुत ही दिलचस्प है। इस IPS अफसर की यह कहानी जितनी दिलचस्प है उतनी ही प्रेरणादायक भी है। नवनीत सिकेरा लखनऊ शहर में IG के पद पर कार्यरत हैं।

पिता के साथ हुई घटना ने बना दिया आईपीएस अफसर

नवनीत सिकेरा का बचपन एटा जिले के एक छोटे से गांव में बीता। उनके आईपीएस अफसर बनने की राह बहुत मुश्किल रही। वो अपने कई इंटरव्यू में बता चुके हैं कि वो अपने पिता के साथ हुए एक वाकये के चलते ही आईपीएस अफसर बने। दो दिन पहले बच्चे के लिए पिता के त्याग की एक खबर के बाद उन्होंने सोशल मिडिया पर एक पोस्ट लिखी, जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया। इसके बाद उन्होंने एक और भावुक पोस्ट आज यानी 22 अगस्त को साझा की है।

आइये यहां जानते हैं खुद IPS नवनीत सिकेरा की कलम से उस घटना के बारे में

उन्होंने लिखा है कि "बचपन में कार में बैठना एक सपना हुआ करता था, कार भी सिर्फ 2 ही दिखती थीं सड़क पर एक एम्बेसडर और दूसरी फ़िएट। बस इन्हीं 2 मॉडल पर पूरा देश चलता था। मैंने भी एक सपना पाल लिया कि अगर खरीद नहीं पाए तो कम से कम 1-2 बार किराये की कार में बैठूंगा पर बैठूंगा जरूर। पैदल चलते चलते जिन्दगी भी आगे बढ़ने लगी।

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साइकिल मिली तो हम शहंशाह बन गए

10वीं क्लास में पहुंचा तो पापा ने साइकिल दिला दी फिर तो हम शहंशाह बन गए। नुक्कड़ पर बजते हुए गाने सुनने के लिए हल्का ब्रेक लगा देना या कभी कभी ब्रेक लगाकर खड़े हो जाना कि गाना पूरा सुन लो तब आगे चला जाएगा। साइकिल जो थी अपने पास, सॉलिड खुशियां थीं उस जमाने की अपने पास। देखते-देखते हाईस्कूल के बोर्ड की परीक्षा आ गई।

पढ़ने में मैं कसकर मेहनत कर रहा था- नवनीत

आगे लिखते हैं कि छोटा सा विद्यालय था, वहां पर एक बहुत बड़े घर का लड़का भी पढ़ने आया, शायद इसीलिए कि उसका घर विद्यालय के पास ही था। अब उसके घर को घर कहना ठीक नहीं है उसका घर पूरे स्कूल का ग्राउंड मिला लो तो उससे भी बड़ा बंगला था उसका। पढ़ने में मैं कसकर मेहनत कर रहा था। कार के सपने जो पाल लिए थे। मुझे अच्छे से याद नहीं है कि कैसे पर उस बड़े घर के लड़के से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई थी। और मैं बहुत ईमानदारी से बताना चाहूंगा मेरी हैसियत का उससे कोई मुकाबला नहीं था पर मेरा मित्र और उसके परिवार ने मुझे बहुत सम्मान दिया। आंटी एक साथ हम दोनों को खाना खिलातीं और हम दोनों एक साथ पढ़ते थे।

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समय फुर्र सा उड़ गया

समय फुर्र सा उड़ गया। हाईस्कूल बोर्ड का एग्जाम का सेंटर भी आ गया। ये सेंटर मेरे घर से करीब 10-12 किलोमीटर दूर था, अब मुसीबत ये थी कि एग्जाम देने मेरे पापा मुझे अकेले साइकिल चलाकर नहीं जाने देना चाहते थे क्योंकि कई किलोमीटर मुख्य जीटी रोड पर चलना पड़ता था। खैर पापा ने इंतजाम किया कि या तो वो खुद मुझे लेकर जाएंगे या किसी को मेरे साथ भेजेंगे। व्यवस्था बन गई थी पर एक दिन पापा मुझे सेंटर तक छोड़ आए पर बताकर गए कि उस दिन परीक्षा के बाद शायद न आ पाएं या किसी और को भेजे। मैंने कहा- ठीक है।

मेरे दोस्त ने मेरा हाथ पकड़ा और बोला मेरे साथ चल

परीक्षा हो गई और मैं सेंटर के बाहर आकर पापा को खोजने लगा। वह मुझे नहीं दिखे, तभी मेरी निगाह अपने उस एम्बेसडर कार वाले मित्र पर पड़ी। आज उसकी कार आने में भी देरी हो गई थी। हम दोनों ही अपनी-अपनी सवारी का इंतजार कर रहे थे। तभी उसकी कार आती दिखी। मैं सोच रहा था कि पता नहीं ये मुझसे पूछेगा भी या नहीं। लेकिन जैसे ही कार आकर रुकी मेरे दोस्त ने मेरा हाथ पकड़ा और बोला मेरे साथ चल। एक तरफ मेरे मन में कार में बैठने का कौतूहल था, दूसरी तरफ ये कि पापा भी इस धूप में आते होंगे। उधर दूर दूर तक पापा या कोई साइकिल सवार आता हुआ नहीं दिख रहा था। समझ नहीं आ रहा था क्या करूं तो सोचा कि मित्र के साथ उसकी कार से ही चला जाता हूं।

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मित्र ने चॉकलेट निकाली खुद भी खाई और मुझे भी दी

कार चल दी क्या मजा आया खुली हुई खिड़की से आती हुई तेज हवा का अलग ही आनंद था। मित्र ने चॉकलेट निकाली खुद भी खाई और मुझे भी दी। कार फर्राटे से हवा से बातें कर रही थी। तभी मेरी निगाह सि‍र पर अंगोछा (गमछा) लपेटे तेज पैडल मारते हुए पापा पर पड़ी जो बहुत तेजी से सामने से आ रहे थे, मैं कुछ सोच पाता उससे पहले कार उनके सामने से आगे निकल गई। मैंने पीछे मुड़कर देखा तो पापा मुझे लेने के लिए तेजी से चले जा रहे थे। उस समय विचार शून्य हो गया था। मैं न सोच पाया न बोल पाया । थोड़ी ही देर में घर पहुंच गया, पर बहुत असहज हो गया था कि मैंने पापा को आवाज देकर रोका क्यों नही, बताया क्यों नहीं कि आप इतनी दूर सेंटर तक मत जाओ, मैं कार में हूं। और सच मानिए ये बात मुझे आज तक सालती है, लव यू पापा

साइकिल पर IIT का एंट्रेंस एग्जाम दिलाने ले गए थे

उन्होंने अपनी पहले की पोस्ट पर एक प‍िता के संघर्ष की खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए ल‍िखा था क‍ि ये खबर देखी तो आंखें डबडबा गईं। अब से कुछ दशक पहले मेरे पिता भी मुझे मांगी हुई साइकिल (यह एग्जाम दूसरे शहर में था) पर बिठा कर IIT का एंट्रेंस एग्जाम दिलाने ले गए थे। वहां पर बहुत से स्टूडेंट्स कारों से भी आए थे। उनके साथ उनके अभिभावक पूरे मनोयोग से उनकी लास्ट मिनट की तैयारी भी करा रहे थे, मैं ललचाई आंखों से उनकी नई-नई किताबों (जो मैंने कभी देखी भी नहीं थीं) की ओर देख रहा था और मैं सोचने लगा कि इन लड़कों के सामने मैं कहां टिक पाऊंगा और एक निराशा सी मेरे मन में आने लगी। मेरे पिता ने इस बात को नोटिस कर लिया और मुझे वहां से थोड़ा दूर अलग ले गए और एक शानदार पेप टॉक (उत्साह बढ़ाने वाली बातें) दीं।

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इमारत की मजबूती उसकी नींव पर निर्भर करती है

पिता ने कहा कि इमारत की मजबूती उसकी नींव पर निर्भर करती है ना कि उस पर लटके झाड़-फानूस पर। इतना कहकर उन्होंने मुझे जोश से भर दिया फिर मैंने एग्जाम दिया। परिणाम भी आया। आगरा के उस सेंटर से मात्र 2 ही लड़के पास हुए थे जिनमें एक नाम मेरा भी था। आज मेरे पिता नहीं हैं। हमारे साथ उनकी कड़ी मेहनत का फल उनकी सिखलाई हर सीख हर पल मेरे साथ है। हर पल यही लगता है कि एक बार और मिल जाएं तो जी भर के गले लगा लूं।

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