कागजों पर हुआ अवैध निर्माण की शिकायतों का निस्तारण, अब जमीन को तरस रहा प्राधिकरण
नोएडा: प्राधिकरण की लाखों वर्गमीटर जमीन अवैध निर्माण की भेंट चढ़ चुकी है। इसमें प्राधिकरण अधिकारियों की लापरवाही भी साफ देखने को मिली है। यहां कुछ लोगों द्वारा समय-समय पर प्राधिकरण के आला अधिकारियों को अवैध निर्माण के लिए अवगत कराया गया। आईजीआरएस सेल पर शिकायत के साथ मुख्यमंत्री तक शिकायत की गई। लेकिन अवैध निर्माण को रोकने की बजाए अधिकारियों ने सिर्फ कागजों पर निर्माण को रोकने की बात कह इति श्री कर लिया। वर्तमान में प्राधिकरण के पास 5 व 10 प्रतिशत विकसित भूखंड देने के लिए जमीन का टोटा है। या यूं कहे कि कुछ कर्मचारियों की करनी ने शहर के किसानों को उनके हक से वंचित कर दिया।
81 गांवों की जमीन हुई अधिग्रहीत
शहर का विकास 19 लाख 600 हेक्टेयर जमीन पर किया गया। इसके लिए 81 गांवों की जमीन का अधिग्रहण किया गया। प्राधिकरण ने अपनी योजनाओं के लिए भी जमीनों का अधिग्रहण किया। किसानों को उनका मुआवजा भी दे दिया गया। लेकिन जमीन का रखरखाव व ध्यान देना प्राधिकरण भूल गई। इस लापरवाही का नतीजा अब सबके सामने निकलकर आ रहा है। यहा लाखों वर्गमीटर जमीन भूमाफिया के कब्जे में है। जिन पर रिहाएशी इमारतों का निर्माण किया जा चुका है। लोग इन इमारतों के निर्माण की शिकायत भी करते रहे हैं। दबाव बनने पर महज काजगी खानापूर्ती की गई। जिसके बाद न तो प्राधिकरण की ओर से कोई कार्यवाही की गई और न ही लखनऊ से किसी तरह के निर्देश दिए गए। जेब भारी होती रही और मामले कागजों में निपटते रहे। वर्तमान में सदरपुर, सलारपुर, गढ़ी चौखंडी, बरौला, हरौला, हाजीपुर के अलावा दर्जनों गांवों में लाखों वर्गमीटर जमीन पर अवैध कब्जा बना हुआ है।
प्राधिकरण क्यो नहीं कर रहा कार्यवाही
अवैध कब्जे को लेकर प्राधिकरण ने 1757 इमारतों को चिन्हित किया। जिसमें गांवों में 1326 इमारतों का सत्यापान किया जा रहा है। सत्यापन के बाद देखा जाएगा कि कितनी इमारतें अवैध हैं। लेकिन उन इमारतों का क्या जिनकी शिकायत प्राधिकरण की अलमारियों में धूल फांक रही है। ऐसा ही एक मामला सदरपुर गांव सेक्टर-45 का है। यहां कई हजार वर्गमीटर जमीन पर भूमाफिया का कब्जा है। यहा खसरा नंबर 196 से 215 तक रिहाएशी इमारत का निर्माण किया जा चुका है। बतौर इसकी शिकायत सेक्टर-45 आरडब्ल्यूए अध्यक्ष द्वारा प्राधिकरण में की गई। शिकायत पर 13 नवंबर 2014 को ध्वस्तीकरण का नोटिस आवंटियों को जारी किया गया। बताते चलें कि इस खसरे के लिए किसान को प्राधिकरण ने 44 लाख रुपए का मुआवजा तक दे दिया था। इसके बाद प्राधिकरण ने न तो जमीन की फेंसिंग की और न ही अधिसूचित का बोर्ड लगाया। परिणाम स्वरूप यहा भू-माफिया ने कब्जा जमा लिया। ध्वस्तीकरण का नोटिस वर्क सर्किल-3 द्वारा जारी किया गया। लेकिन कार्यवाही नहीं हुई। इसके साथ 15 अप्रैल 2015 को प्राधिकरण द्वारा उक्त खसरे की पैमाइश कराई गई। कार्यवाही न होने पर आरडब्ल्यूए अध्यक्ष द्वारा मामले की शिकायत तत्कालीन मुख्य कार्यपालक अधिकारी व दो बार मुख्यमंत्री से की गई। यही नहीं 7 जून 2017 को आईजीआरएस सेल में भी शिकायत की गई। जिस पर काजगी अमल करत हुए संबंधित अधिकारी ने बिना मौके पर जाए ही लिख दिया कि तत्काल प्रभाव से से निर्माण कार्य को रुकवा दिया गया है। असल में यहां निर्माण तेजी से होता रहा। वर्तमान में यहां पांच से छह मंजिला की एक रिहाएशी इमारत बन चुकी है। लेकिन अब तक न तो कार्यवाही हुई और न ही ध्वस्तीकरण किया गया।
एक गांव नहीं दर्जनों गांवों में अवैध कब्जा
वर्तमान में किसानों को पांच व 10 प्रतिशत जमीन देने के लिए प्राधिकरण को एक लाख 36 हजार वर्गमीटर जमीन की जरूरत है। इसको लेकर सीईओ को भी अवगत कराया जा चुका है। जबकि गांवों में लाखों वर्गमीटर जमीन पर अवैध कब्जा जमाया जा चुका है। इन जमीनों का मुआवजा भी किसान उठा चुके है। किसान तो वहां से चले गए लेकिन उनकी जमीनों पर भूमाफिया , कालोनाइजरों ने कब्जा जमा लिया। जिनका सिंडीकेट इतना बड़ा है कि उसको उखाड़ना प्राधिकरण कर्मचारियों के बस में नहीं है।
सुपरवाइजर का होता है खेल
गांवों में कब्जा कराने का खेल सुपरवाइजर का होता है। प्रत्येक सेक्टर व गांव में एक वॉच आफिस होता है। जिसका कार्य अवैध कब्जे पर नजर रखना और इसकी जानकारी तुरंत प्राधिकरण व प्रशासन के आला अधिकारियों को देना होता है। खेल यहीं पर है। सुपरवाइजर कागज और कलम लेकर अतिक्रमण कर्ता के पास पहुंच तो जाता है। लेकिन वहां क्या चल रहा है, इसकी जानकारी अधिकारियों तक नहीं पहुंचती। वह अपनी रिपोर्ट में जमीन को खाली ही बताता है। लेकिन वास्तव में वहां एक इमारत का निर्माण हो चुका होता है।