Christmas 2022 in UP: उत्तर प्रदेश के मशहूर ये पांच चर्च, जानिए क्या है स्पेशल

Famous Churches in UP: हम आपको उत्तर प्रदेश के पांच सबसे खूबसूरत और बड़े चर्च के बारे में बताने जा रहे है।

Report :  Jugul Kishor
Update:2022-12-25 07:00 IST

ये हैं यूपी के पांच फेमस चर्च

Famous Churches in UP on Christmas: भारत सम्पूर्ण विश्व में एकमात्र ऐसा देश है जो अपने अंदर विभिन्न धर्मों, अलग-अलग भाषाओं और रीति-रिवाजों को समाहित किया हुआ है। भारतवर्ष में एक से बढ़कर एक विश्व विख्यात धार्मिक स्थल स्थित हैं। फिर चाहे वह हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध मंदिर हों, मुस्लिम धर्म की विश्व विख्यात जामा मस्जिद हों, सिख धर्म के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल स्वर्णमन्दिर हो या फिर चर्च हों। लेकिन, आज इस रिपोर्ट उत्तर प्रदेश के पांच मशहूर चर्च के बारे में जानेंगे।

लखनऊ का सेंट जोसेफ कैथेड्रल चर्च

सेंट जोसेफ कैथेड्रल चर्च लखनऊ का सबसे बड़ा चर्च है और हजरतगंज वीआईपी एरिया में है। इस चर्च की स्थापना सन 1860 में तब हुई, जब यहां अंग्रेज अफसरों की आवक शुरू हुई। कैथोलिक मसीही विश्वासियों का यह मदर चर्च है। इस चर्च में पहली प्रार्थना सभा में मात्र दो सौ लोग शामिल हुए। लेकिन अब इस चर्च में सभी धर्मों के लोग शामिल होते हैं। 25 दिसंबर के दिन अधिक भीड़ होने की वजह से 24 दिसंबर की शाम से ही इस चर्च की ओर जाने वाले पूरे रास्ते को यातायात पुलिस की ओर से बंद कर दिया जाता है। चर्च के पहले पादरी के रूप में आइरिस मूल के ग्लिसन की नियुक्ति की गई।


कानपुर का एलएलजेएम मेथाडिस्ट चर्च

कानपुर के एलएलजेएम मेथाडिस्ट चर्च के बारे में बताया जाता है कि यह चर्च आज से 104 वर्ष पुराना है। इसका निर्माण अमेरिकी मूल की निवासी लॉरा जॉनसन ने कराया था जो कि दिव्यांग थीं और इन्होंने रजाई, टेबल कवर बेचकर इतनी पूंजी एकत्रित की कि इस चर्च को बनवाने में सफल रहीं। एलएलजेएम मेथाडिस्ट चर्च के पादरी का कहना है कि इस चर्च का निर्माण बेहद संजीदगी के साथ कराया गया है। क्योंकि इस इमारत में एक ऐसी मास्टर की लगी है कि यदि उस की को खींचा गया तो पूरी इमारत गिर जाएगी।


सेंट मेरीज चर्च वाराणसी

वाराणसी के छावनी इलाके में स्थित सेंट मेरीज महागिरजाघर करीब दो सौ साल पुराना है। पूरे पूर्वांचल का यह पहला ऐसा चर्च है जिसकी दीवारों पर गीता के श्लोक लिखे हैं। इस चर्च की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसकी बाहरी दीवारों पर ईसा मसीह के संदेश लिखे हैं तो भीतरी दीवार पर गीता के श्लोक सर्वधर्म समभाव को दर्शाते हैं। क्रिसमस पर यहां तीन दिनों तक मेले का आयोजन होता है। भव्य मेले के बहाने सभी धर्म के लोगों की जुटान होती है, जो काशी की गंगा- जमुनी तहजीब को प्रदर्शित करता है।


आगरा का अकबरी चर्च

आगरा का सबसे ऐतिहासिक और पुराना चर्च अकबरी चर्च है। यह भी बताया जाता है कि तब से लेकर अब तक इस चर्च को तीन बार ध्वस्त किया जा चुका है। यह आगरा का ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर भारत का पहला चर्च माना जाता है। यह चर्च मुगल सम्राट द्वारा चलाए गये दीन-ए-एलाही धर्म के दौरान धर्म निरपेक्षता की गवाही देता है। 1580 में आमरमीनियाई प्रांत के कैथोलिक फादर एक्वाबीवा तथा मॉनसरेट नामक पुर्तगाली अकबर से मिलने फतेहपुरी सीकरी आए थे। इनके बाद एक अंग्रेज दल भी आगरा पहुंचा। जॉन मिलडिनहॉल पहला अंग्रेज था, जिसने अकबर से साक्षात्कार किया। जिसकी कब्र भगवान टॉकीज स्थित ईसाई कब्रिस्तान में आज भी है। अकबर ने नगर के बाहरी क्षेत्र के एक बड़े भूभाग को ईसाई के लिए दान कर दिया। इसी भू भाग के मध्य में जहां वर्तमान में सेंट पीटर्स कॉलेज है के निकट ही चर्च का निर्माण किया गया। जिसे अकबर चर्च कहा गया।


बरेली का सेंट स्टीफन चर्च

कैंट स्थित सेंट स्टीफन चर्च इंडो-गॉथिक शैली की मिसाल है। इस चर्च की खासियत इसकी दर-ओ-दीवार, बुर्ज और कंगूरे हैं। प्राचीन चर्च को इंग्लैंड के आर्किटेक्ट ने भारतीय स्थापत्य और गॉथिक शैली के संगम से बनाया था। यही वजह है कि आज भी लोग इस चर्च को देखने पहुंचते हैं। सात जनवरी, 1861 में इस चर्च की आधारशिला रखी गयी थी। इस चर्च की दीवारें पांच फीट मोटी है। एबोनी लकड़ी की कुर्सियां और खिड़कियां घनी नक्काशीदार है।


इंग्लैंड के आर्किटेक्ट ने भारतीय स्थापत्य और गॉथिक शैली के संगम से इसका निर्माण पूरा किया। यीशु के प्रमुख शिष्य स्टीफन के नाम पर चर्च का नाम रखा गया है। तत्कालीन ब्रिटिश सेना के कैप्टन रेव डब्ल्यूजी कोवी ने 25 दिसंबर 1862 को चर्च को चालू कर दिया था। उसी दिन यहां पर पहली शादी भी हुई थी।    

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