सुशील कुमार
मेरठ। बैंकों की कारगुजारी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों पर भारी पड़ रही है। बैंकों द्वारा पात्रों को अपात्र और अपात्रों को पात्र घोषित करने के कारण प्रदेश सरकार की ऋण मोचन योजना मजाक बनकर रह गई है। मेरठ मंडल की बात करें तो यहां करीब पांच लाख किसानों पर 4100 से अधिक का ऋण था, लेकिन बैंकों ने करीब तीन लाख किसानों को कर्जदार बताते हुए योजना में शामिल किया था। अभी तक इनमें से आधे से भी कम किसानों को ही प्रदेश सरकार की योजना का लाभ मिल सका है। बैंकों की इस कारगुजारी के शिकार किसानों को बैंकों और प्रशासनिक अफसरों के यहां चक्कर लगाने पड़ रहे हैं मगर उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
बैंकों ने भेजा गलत रिकॉर्ड
मंडल मुख्यालय मेरठ में ऋण मोचन प्रमाण पत्र वितरण के लिए निर्धारित चार चरण पूरे होने के बाद भी मात्र 41 हजार किसान ही योजना का लाभ ले सके हैं। आलम यह है कि ऋण मोचन को लेकर आयुक्त से लेकर जिलाधिकारी और मुख्य विकास अधिकारी के कार्यालयों में किसानों की फरियाद के ढेर लग गए हैं। उल्लेखनीय है कि प्रदेश सरकार ने ऋण मोचन योजना के तहत 31 मार्च 2016 से पहले फसली ऋण लेने वाले किसानों का एक लाख रुपये तक का कर्ज माफ करने का ऐलान किया है।
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इसके लिए बैंकों से कर्जदार किसानों की स्थिति का रिकॉर्ड तलब किया गया था। बैंकों ने इस मामले में सरकार की सख्ती को देखते हुए अपनी गर्दन बचाने के लिए जल्दबाजी में किसानों का गलत रिकॉर्ड भेज दिया। बैंकों की रिपोर्ट में जिले में ऋण मोचन योजना के पात्र किसानों की संख्या 1 लाख 24 हजार दर्शाते हुए किसानों पर 623 करोड़ का कर्ज होने की बात कही गई थी। अचरज की बात यह है कि चार चरण पूरे होने के बाद भी अभी तक मात्र 41 हजार किसानों को ही योजना का लाभ मिल सका है।
पहले ही ऋण जमा करा चुके काफी किसान
दरअसल बैंकों की लापरवाही और जल्दबाजी के कारण सरकार को भेजी गई रिपोर्ट में 69 हजार ऐसे किसानों को भी शामिल कर लिया गया था जो अपना ऋण सरकार की योजना घोषित होने से पहले ही जमा करा चुके थे। मामला किसान नेताओं के जरिये मंडल के आला अफसरों तक पहुंचा। मामले की पड़ताल की गई तो पता चला कि बैंकों ने जल्दबाजी में बिना जांच के ही किसानों का रिकार्ड शासन को भेज दिया था। बाद में की गई जांच में खुलासा हुआ कि बड़ी संख्या में किसान योजना घोषित होने से पहले ही अपने लिये गये ऋण को जमा करा चुके थे। इसकी पुष्टि मेरठ की मुख्य विकास अधिकारी आर्यका अखौरी भी करती हैं। उनके मुताबिक ऋण मोचन योजना के लिए बैंकों ने जिन किसानों को लाभार्थियों की सूची में शामिल किया था उनमें बड़ी संख्या ऐसे किसानों की थी जो पहले ही अपना ऋण जमा करा चुके थे।
यही नहीं फसल ऋण मोचन योजना के तहत मंडल में करीब एक हजार किसानों को बैंकों से पैसा नहीं दिया जा सका है। बैंक अफसर इसके लिए तकनीकी खामी बता रहे हैं। किसानों द्वारा कई बार गुहार लगाने के बाद जागे संबंधित बैंक अफसरों और प्रशासन द्वारा अब कहीं-कहीं शासन से वापस पैसा मंगाकर किसानों को देने की कार्रवाई की जा रही है। मेरठ जनपद में ऐसे किसानों की संख्या 179 बताई जा रही है जिनका बैंक में तकनीकी कमियों के चलते ट्रांजेक्शन फेल हो गया। इन किसानों का पैसा विकास भवन से वापस शासन को भेज दिया गया। मुख्य विकास अधिकारी के अनुसार शासन को वापस भेजे गये पैसे को मंगाने की कार्रवाई की जा रही है।
बैंक के साथ ही प्रशासन भी दोषी
राष्ट्रीय लोकदल के पश्चिमी उत्तर प्रदेश वरिष्ठ महासचिव डॉ.राजकुमार सांगवान कहते हैं कि यह हाल मेरठ मंडल ही नहीं बल्कि पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश का है। सांगवान के अनुसार रालोद के पास पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जो रिकार्ड हैं उसके अनुसार पात्र 50 लाख किसानों में से मात्र पांच-छह लाख किसानों को ही सरकारी योजना का लाभ मिल सका है। रालोद नेता इसके लिए बैंक अफसरों के साथ ही प्रशासनिक अफसरों को भी दोषी ठहराते हैं। बकौल सांगवान भगवान माने वाले किसानों को योगी सरकार ने दयनीय बनाकर रख दिया है। उन्होंने कहा कि रालोद किसानों के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने वालों के खिलाफ सड़कों पर उतरेगा।