राजकुमार उपाध्याय
लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी ने अपने लोक कल्याण संकल्प पत्र में 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना करने के लिए एक विस्तृत रोडमैप तैयार करने का वादा किया था। योगी सरकार ने इसी मकसद से पिछले साल नवम्बर माह में कृषक समृद्धि आयोग का गठन किया तो उम्मीद जगी कि अब किसानों के दिन बहुरेंगे। अन्नदाताओं की आमदनी दोगुनी करने के उपायों पर मंथन होगा। इसका खूब प्रचार हुआ। सरकार ने भी खूब वाहवाही लूटी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संकल्प के मुताबिक यह सब पूरा हो पाता, उसके पहले ही आयोग सरकारी मशीनरी की परम्परागत आदतों का शिकार हो गई। सरकार का यह वादा अब तक परवान नहीं चढ़ सका है। किसानों की समृद्धि के इस कागजी आयोग की अब तक कोई बैठक नहीं हुई है। आयोग बस फाइलों में जिंदा है। यह हाल तब है जब खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आयोग के अध्यक्ष हैं।
आयोग के एक सदस्य मुताबिक कृषक समृद्धि आयोग की कोई बैठक न होने से किसानों की आय दोगुना करने के किसी फार्मूले पर अब तक कोई विचार नहीं हो सका और न ही किसानों की समृद्धि के लिए किसी रोडमैप पर आयोग के निर्देशन में कार्यवाही शुरू हो सकी है। इस आयोग को वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए उपायों की तलाश करनी थी। किसानों को खेती की नई तकनीक से जुड़ी योजनाओं के लिए प्रोत्साहित करने का रोडमैप तैयार करना था। उनकी समस्याओं को चिन्हित कर उसे दूर करने पर विचार करने के साथ समृद्धि से जुड़ी कार्ययोजना के खाके को आगे बढ़ाना था।
यह वादा विधानसभा चुनावों के दरम्यान किया गया था और अब लोकसभा चुनाव नजदीक हैं। ऐसे में इस आयोग को एक बार फिर सियासी चश्मे से देखा जा रहा है। चुनाव के दरम्यान यह आयोग फिर फाइलों के अंदर से ही हुंकार भरकर अपने जिंदा होने का सबूत पेश करे तो इस पर अचरज नहीं होना चाहिए। साफ है कि अधूरी सरकारी घोषणाओं की लम्बी फेहरिस्त में यह आयोग भी पेवस्त हो चुका है।
जुलाई में होगी कार्यशाला
कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही का कहना है कि इस सिलसिले में जुलाई माह में एक कार्यशाला प्रस्तावित है। इसमें कृषि व संबद्ध विभागों के प्रमुख सचिव एक साथ बैठेंगे। सभी संबद्ध विभाग अलग-अलग प्रेजेंटेशन देंगे। उसी को आधार बनाकर रोडमैप बनेगा और एक्शन प्लान तैयार होगा। शाही ने कहा कि अभी आयोग के लिए दफ्तर की कोई आवश्यक्ता नहीं है। सभी अफसर अपने-अपने दफ्तरों से ही काम करेंगे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद इसके अध्यक्ष हैं।
ऐसे हुआ आयोग का गठन
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता वाले इस आयोग में कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही और प्रो.रमेश चंद्र (सदस्य) नीति आयोग उपाध्यक्ष हैं। मुख्य सचिव और कृषि उत्पादन आयुक्त सदस्य, प्रमुख सचिव कृषि, सदस्य सचिव हैं। उप महानिदेशक भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली को सरकारी सदस्य बनाया गया है। गैर सरकारी सदस्यों में डॉ. यूएस सिंह (अंतर्राष्ट्रीय चावल शोध संस्थान, फिलीपीन्स), मंगला राय (पूर्व महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद), डा सुरेंद्र कुमार(गिरि संस्थान, लखनऊ), डॉ.सुशील कुमार (आईआईएम लखनऊ), डॉ. आरबी सिंह (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) शामिल हैं।
कृषक प्रतिनिधियों को भी इसमें शामिल किया गया है। इनमें रामसरन वर्मा और मुइनुद्दीन (बाराबंकी), प्रेम सिंह (बांदा), जयप्रकाश सिंह (वाराणसी), धर्मेन्द्र मलिक (भारतीय किसान यूनियन), यशपाल सिंह (लखीमपुर खीरी), वेद व्यास सिंह (देवरिया), जनार्दन निषाद(आजमगढ़) और अरविंद खरे (महोबा) शामिल हैं। कार्पोरेट प्रतिनिधि के रूप में महिंद्रा एंड महिंद्रा और आईटीसी हैं। इसमें विभिन्न विभागों के प्रमुख सचिवों को विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर शामिल किया गया। इनमें सहकारिता, पशुधन, मत्स्य, उद्यान, रेशम, ऊर्जा, चीनी उद्योग, सिंचाई, लघु सिंचाई, वन, खाद्य एवं रसद विभागों के प्रमुख सचिव शामिल हैं। निदेशक राज्य कृषि उत्पादन मंडी परिषद और निदेशक कृषि भी विशेष आमंत्रित सदस्य हैं।
आयोग का मकसद
- कृषि, उद्यान, पशुपालन, मत्स्य पालन, रेशम पालन से जुड़े किसानों की कमजोरियों का अध्ययन
- विविध कृषि जलवायु वाले क्षेत्रों का मूल्यांकन करते हुए राज्य में टिकाऊ और समान कृषि विकास को हासिल करने के लिए नीतियां बनाना।
- फसलों की उत्पादन लागत में कमी और उत्पादन बढ़ाने के लिए सुझाव देना।
- फसलों के भंडारण और विपणन व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए सुझाव।
- राज्य की प्रमुख फार्मिंग प्रणालियों की उत्पादकता, लाभ और स्थिरता बढ़ाने की योजना।
- कृषि प्रौद्योगिकी, पशुधन, मत्स्य, मुर्गीपालन, सेरीकल्चर, कृषि वानिकी और दुग्ध विकास के लिए सुझाव देना।
- बीज, उर्वरक, कीटनाशक के समुचित उपयोग की कार्यविधि के उपाय सुझाना।
- कृषि एवं कृषि से संबंधित क्षेत्रों में ऋण और उसके उपयोग के संबंध में सुझाव।
- मृदा सुधार से संबंधित सुझाव देना।
- भूगर्भ जल का कम से कम उपयोग करते हुए उपलब्ध सतही जल से फसलों का अधिक से अधिक उत्पादन के लिए सुझाव देना।
- जलवायु परिवर्तन से फसलों को होने वाले नुकसान को रोकने और पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए सुझाव।
- कोऑपरेटिव फार्मिंग,कांट्रैक्ट फार्मिंग, कलेक्टिव फार्मिंग या कॉरपोरेट फार्मिंग के संबंध में सुझाव।
- फसल उत्पादन के अल्पकालिक और दीर्घकालिक नीतियों के लिए सुझाव देना।