काशी के इस कुंड पर पुरखों के तर्पण के लिए लगा तांता, आत्माओं को मिलती है मुक्ति

काशी में श्राद्ध करने वाले श्रद्धालु पिशाच मोचन कुंड जरूर जाते हैं। पुरोहितों के अनुसार काशी खंड में वर्णित है कि पिशाच मोचन मोक्ष तीर्थ स्थल की उत्पत्ति गंगा के धरती पर आने से भी पहले से है। मान्यता के अनुसार यहां स्थित पीपल के वृक्ष पर भटकती आत्माओं को बैठाया जाता है।

Update:2023-04-28 18:26 IST

वाराणसी: हिन्दू धर्म में पुरखों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण का विशेष महत्व है। शनिवार को श्राद्ध पक्ष की शुरुआत हुई तो श्रद्धालुओं का हुजूम मोक्ष की नगरी काशी की ओर चल पड़ा। गंगा घाटों पर सुबह से ही श्राद्ध कर्म शुरू हो गया। गंगा घाटों के अलावा श्रद्धालु एक ऐसे कुंड में जाना नहीं भूलते हैं जिसे आत्माओं की मुक्ति का मार्ग कहा जाता है।

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क्या है कुंड की मान्यता ?

काशी में श्राद्ध करने वाले श्रद्धालु पिशाच मोचन कुंड जरूर जाते हैं। पुरोहितों के अनुसार काशी खंड में वर्णित है कि पिशाच मोचन मोक्ष तीर्थ स्थल की उत्पत्ति गंगा के धरती पर आने से भी पहले से है। मान्यता के अनुसार यहां स्थित पीपल के वृक्ष पर भटकती आत्माओं को बैठाया जाता है। इस दौरान पेड़ पर सिक्का रखवाया जाता है ताकि पितरों का सभी उधार चुकता हो जाए और पितर सभी बाधाओं से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकें और यजमान भी पितृ ऋण से मुक्ति पा सकें।

प्रेत आत्मा को मिलती है मुक्ति

मान्यता के अनुसार तो काशी में मरने वालों को वैसे भी मोक्ष मिल जाता है, लेकिन इस कुंड पर अकाल मौत या अन्य किसी वजह से भटकती आत्माओं को मोक्ष मिलता है। यही वजह है कि यहां देश भर से लोग आते हैं और तर्पण करते हैं। कहते हैं कि पिशाच मोचन कुंड में भटके प्रेत आत्मा को वश में किया जाता है।

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बताया जाता है कि ये कुंड काफी पुराना है। ऐसी मान्यता है कि अगर इसके किनारे बैठ कर पिंडदान किया जाए तो भटकती आत्माओं को भी मुक्ति मिल जाती है। यही वजह है कि लोग पिशाच मोचन कुंड में अपने पितरों को प्रेत बाधा से मुक्ति दिलाने के लिए तर्पण-श्राद्ध करते हैं।

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