Kalyan Singh: राम मंदिर आंदोलन से लेकर 2014 लोकसभा चुनाव तक, BJP को संवारने के लिए जाने जाएंगे 'कल्याण सिंह'
कल्याण सिंह के कुशल नेतृत्व व राम मंदिर आंदोलन की वजह से पूरे उत्तर प्रदेश में भाजपा का उभार हुआ।
देश के सबसे बड़े हिंदुत्व चेहरों में से एक उत्तर प्रदेश में भाजपा की जड़ों को मजबूती देने वाले व राम मंदिर आंदोलन में जन-जन की भावनाओं को जोड़ने वाले, दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री व राजस्थान के राज्यपाल रहे 'कल्याण सिंह' (Kalyan Singh) का प्रदेश की सियासत में अहम स्थान था। 89 वर्षीय पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का शनिवार की रात को लखनऊ के एसजीपीजीआई में निधन हो गया था। लेकिन, यह सफर आसान नहीं था। इस राह में कई मुश्किलें थी। उन्होंने अपने जीवन में आने वाली बाधाओं को कैसे पार किया? क्या कुछ घटित हुआ उनकी ज़िंदगी में? कैसे वह एक सामान्य व्यक्ति से हिंदुत्व के सबसे बड़े पुरोधा बन गए? आइये बताते हैं।
35 वर्ष की उम्र में बने पहली बार विधायक
पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की डगर-ए-सियासत आसान नहीं थी। वह 35 साल की उम्र में पहली बार अतरौली विधानसभा सीट से चुनाव जीते। लेकिन, यहीं से उन्होंने अपने आप को एक बड़े नेता के रूप में स्थापित करना शुरू कर दिया था। वह अतरौली से पहली बार 1967 में चुनाव जीते थे, लेकिन वहां उन्होंने ऐसा कर दिखाया कि 1980 तक उन्हें उस सीट से कोई हरा न सका। मग़र, जब 1980 में जनता पार्टी में टूट हुई, तो कल्याण सिंह को हार का सामना करना पड़ा था।
1977 में बने थे स्वास्थ्य मंत्री
बता दें कि, कल्याण सिंह पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) में थे, उसके बाद वह जनसंघ में आए थे। साल 1977 में जब जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हुआ और प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बन गई, तो कल्याण सिंह को रामनरेश यादव की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया था।
...और ऐसे बने मुख्यमंत्री
6 अप्रैल, 1980 को भाजपा का गठन हुआ था। इससे पहले साल 1980 में ही कल्याण सिंह पहली बार चुनाव हार गए थे। लेकिन, भाजपा के गठन से उन्हें उस हार का ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ा। भाजपा के गठन के पश्चात उन्हें प्रदेश पार्टी की कमान सौंप दी गई। साथ ही, प्रदेश महामंत्री का पद भी मिला। यह वही समय था, जब राम मंदिर आंदोलन धीरे-धीरे अपने चरम पर पहुंच रहा था। कल्याण सिंह ने इस मौके को भुनाया और अपनी गिरफ्तारी देने के साथ ही कार्यकर्ताओ में नया जोश भरने का काम किया। आंदोलन के दौरान ही उनकी क्षवि रामभक्त की बन गई थी।
1991 में भाजपा की बनी सरकार
साल 1980 में गठन के वक़्त किसी ने यह नहीं सोचा था कि प्रदेश में इतनी जल्दी भाजपा की सरकार बन जाएगी। लेकिन, कल्याण सिंह के कुशल नेतृत्व व राम मंदिर आंदोलन की वजह से पूरे उत्तर प्रदेश में भाजपा का उभार हुआ। लोगों ने 'राम' नाम को भाजपा के साथ जोड़ना शुरू कर दिया था। इससे सबसे ज़्यादा फ़ायदा भाजपा को पहुंचा और तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह को सत्ता से हटाने में मदद मिली। जून 1991 में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई। इसमें कल्याण सिंह की अहम भूमिका थी, इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया।
'कल्याण सिंह' ने भाजपा की जड़ों को फैलाने का किया था काम
वर्ष 1991 में, कल्याण सिंह 59 साल की उम्र में प्रदेश में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री बने। उनकी ही सरकार में बाबरी ढांचा विध्वंस हो गया था और इसका सारा दोष अपने ऊपर लेते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। बाबरी ढांचा विध्वंस के बाद कल्याण सिंह को हिंदुत्व का बड़ा चेहरा माना जाने लगा। वह हिंदुत्ववादी नेता बन गए। मुख्यमंत्री रहते कारसेवकों पर गोली चलाने से इनकार करने वाले कल्याण सिंह को इस मामले में अदालत ने एक दिन की प्रतीकात्मक सजा भी दी थी।
विपक्ष में भी बैठे कल्याण सिंह
उत्तर प्रदेश में भाजपा ने कल्याण सिंह की अगुवाई में नए आयाम स्थापित किए। 1993 के भी विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। कल्याण सिंह अलीगढ़ के अतरौली और एटा की कासगंज सीट से विधायक निर्वाचित हुये। मग़र, सपा-बसपा ने मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में गठबन्धन सरकार बनाई और उत्तर प्रदेश विधानसभा में कल्याण सिंह विपक्ष के नेता बने।
मुलायम से भी मिलाया हाथ, फिर मुलायम ने किया 'नमस्ते'
साल 2007 का विधानसभा चुनाव भी बीजेपी ने कल्याण सिंह के नेतृत्व में लड़ा था, मग़र भाजपा जीत न सकी। इसके बाद वर्ष 2009 में कल्याण सिंह भाजपा से नाराज हो गए, तो उन्होंने भाजपा का दामन छोड़ कर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से नजदीकियां बढ़ा लीं। कल्याण सिंह को एटा से निर्दलीय सांसद बनवाने में मुलायम सिंह का अहम किरदार था। लेकिन, इससे उन्हें बड़ा नुकसान हुआ और उनका एक भी मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका। इससे पार्टी में अंतर्कलह जैसा माहौल उत्पन्न हो गया और मुलायम ने कल्याण से नाता तोड़ लिया।
2014 लोकसभा चुनाव में थी अहम भूमिका
सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के नाता तोड़ने के बाद कल्याण सिंह ने 'राष्ट्रीय जनक्रान्ति पार्टी' का गठन किया। मग़र, यह पार्टी 2012 के विधानसभा चुनाव में कुछ विशेष नहीं कर सकी। इसके बाद, फिर साल 2013 में कल्याण सिंह की भाजपा में वापसी हुई और 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने भाजपा का खूब प्रचार किया। इससे भाजपा को फायदा मिला और बीजेपी ने यूपी में 80 लोकसभा सीटों में से 71 लोकसभा सीटें जीतीं। कहा जाता है कि लोकसभा चुनावों की रणनीति उन्होंने ही तैयार की थी। इसके अलावा प्रदेश की जनता के पास किन मुद्दों को लेकर जाना है, इसे भी वही तय करते थे।
राजस्थान के बने राज्यपाल
2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की प्रचंड जीत हुई। गुजरात के मुख्यमंत्री रहे 'नरेंद्र मोदी' भारत के प्रधानमंत्री बने। जिसके बाद, कल्याण सिंह को सितंबर 2014 में राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया। कल्याण सिंह को जनवरी 2015 से अगस्त 2015 तक हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार भी सौंपा गया। बता दें कि, अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद उन्होंने फिर से भाजपा की सदस्यता ले ली थी।