Ghaziabad News: रालोद और भाजपा के गठबंधन से गाजियाबाद के जाट नेताओं में बेचैनी का माहौल

Ghaziabad News: भाजपा के साथ जयंत की तीन से चार सीटों पर चर्चा चल रही है। इनमें बागपत, गाजियाबाद, अमरोहा, कैराना और मथुरा शामिल है।

Report :  Neeraj Pal
Update:2024-02-08 14:54 IST

जयंत चौधरी source: social media

Ghaziabad News: रालोद और भाजपा के गठबंधन की सुगबुगाहट से इंडिया गठबंधन में तो हलचल मची ही हुई है। लेकिन भाजपा से जुड़े जाट नेताओं में बेचैनी का माहौल बना है। गाजियाबाद में भी यह बेचैनी साफ देखी जा सकती है। जो इस बात की तरफ इशारा करती है कि यदि रालोद से भाजपा का गठबंधन हो गया तो पश्चिम में रालोद के मुखिया जयंत चौधरी बड़े जाट नेता के रूप में उभरकर आएंगे और उसके बाद जाटलैंड की लीडरशिप शिफ्ट हो जाएगी। ऐसे में भाजपा से लंबे समय से जुड़े और पश्चिम में वर्चस्व रखने वाले जाट नेताओं को राजनीति में अपनी छवि फीकी पड़ने का डर सता रहा है।

सात सीटों का रखा था प्रस्ताव  

हालांकि अभी भाजपा और रालोद के बीच गठबंधन पर मुहर नहीं लगी है। सूत्र बता रहे हैं कि दोनों दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर चर्चा अंतिम चरण में चल रही है। लेकिन इससे पहले ही पश्चिम का माहौल गर्म होने लगा है। जयंत चौधरी की पूर्व में अपने पुराने राजनीतिक मित्र व साथी सपा मुखिया अखिलेश यादव के साथ गठबंधन की बात सामने आ रही थी। बताया गया था कि अखिलेश यादव ने रालोद के लिए पश्चिम में सात सीटों का प्रस्ताव रख दिया था। इनमें बागपत, कैराना, मेरठ, मथुरा, हाथरस और मुजफ्फरनगर की सीट प्रमुख थीं। जबकि गाजियाबाद, बिजनौर व अमरोहा को लेकर अभी भी पेंच फंसा हुआ है। जयंत चौधरी पश्चिम में 11 सीट मांग रहे थे। अभी चर्चाओं का दौर जारी था कि जयंत के भाजपा के संपर्क में आने की सुगबुगाहट तेज हो गई और इन चर्चाओं को बल भी मिलने लगा।

भाजपा के साथ आसानी से जीत सकते 

माना जा रहा है कि भाजपा के साथ जयंत की तीन से चार सीटों पर चर्चा चल रही है। इनमें बागपत, गाजियाबाद, अमरोहा, कैराना और मथुरा है। इनमें तीन से चार सीट पर मुहर लग सकती है। वहीं राजनीतिक विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि देश के साथ प्रदेश में जो माहौल बन रहा है, उसके हिसाब से यदि जयंत अखिलेश या इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ते इन सीटों पर चुनाव जीतना कठिन हो सकता था लेकिन भाजपा के साथ मिलकर तीन से चार सीट भी आसानी से जीती जा सकती हैं। इससे रालोद को तो संजीवनी मिलनी तय है ही साथ ही जयंत प्रदेश से उठकर राष्ट्रीय राजनीति में कदम रख सकते हैं। यदि जयंत भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़े तो पश्चिम में कई राजनीतिक मामलों में बदलाव आने की उम्मीद है। अपने लिए राजनीतिक जमीन तलाश रहे जयंत को एक बेहतर प्लेटफार्म तो मिलेगा ही साथ ही पश्चिम में जयंत जाट नेता के रूप में एक बड़ा चेहरा बन कर उभर सकते हैं। ऐसे में भाजपा के मूल जाट नेताओं के भविष्य पर कहीं न कहीं खतरा जरूर मंडरा सकता है।

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