अलविदा रज्जन लालः कैंसर जैसी बीमारी से संघर्ष कर रहे थे फोटो जर्नलिस्ट
रज्जन लाल की पीड़ा आज हर पत्रकार की पीड़ा है जहां कभी - कभी अपने पत्रकारिता धर्म को निर्वाह करने के चक्कर में उसे अपने परिवार तथा स्वयं तक के स्वास्थ्य की चिंता नहीं रहती है और बदले में उसे पुरस्कार स्वरूप या तो किसी अपराधी की गोली अथवा जानलेवा धमकी मिलती है या तो आर्थिक दोहन! ;
चंदौलीः साहसी, निर्भीक तथा प्रतिभावान फोटो पत्रकार रज्जन लाल आज कैंसर से संघर्ष हार कर इस दुनिया से विदा हो गए। वह देश की एक प्रतिष्ठित समाचार चैनल में बतौर कैमरामैन नियुक्त थे। वह यूपी के हरदोई जिले के रहने वाले थे। पिछले कुछ महीनों से कैंसर जैसी खतरनाक एवं कष्टदायक बीमारी ने उन्हें जकड़ लिया था। इस बीमारी ने उन्हें आर्थिक संकट के भीषणता में पहुंचा दिया था।
जीवन में कष्ट, लाचारी, परेशानी, रोग तथा आसक्ति इत्यादि का आवागमन तो लगा ही रहता है लेकिन कष्ट तब होता है जब एक निर्भीक पत्रकार द्वारा समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं कुरूतियों को बंद कमरे से बाहर लाया जाता है तथा एक दिन उसी पत्रकार को एक दिन आर्थिक संकट के घोर पीड़ा में पल - पल तड़पना पड़ता है। कुछ ऐसे ही आर्थिक मार को प्रत्येक क्षण युवा पत्रकार साथी रज्जन लाल सहन कर रहे थे।
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सहने की एक सीमा होती है उसके बाद सहनशक्ति धीरे - धीरे क्षीण होने लगती है जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति परिस्थितियों के समक्ष आत्मसमर्पण कर देता है। कुछ ऐसा ही हाल रज्जन लाल जी के साथ हुआ जहाँ कैंसर के जहर से वीरतापूर्वक संघर्ष करने के उपरान्त आज वे इस दुनिया से विदा हो गए।
"अतिशीघ्र मेरा मकान बिकाऊ है "
रज्जन लाल अपने फेसबुक वाल पर 13अगस्त को एक संदेश पोस्ट करते हैं कि, " अतिशीघ्र मेरा मकान बिकाऊ है। जिसका एरिया 600 वर्ग फीट में पूरा बना है "।
रज्जन लाल पुनः उसी दिन एक संदेश और पोस्ट करते हैं कि, " मुझे ओरल कैंसर हुआ है जिसके लिए भाई दो बोतल खून अतिशीघ्र आवश्यकता है। जिसका कोविड -19 की जांच एक हफ्ते के अंदर हुआ हो। Plz Help me "!
इन दो संदेशों को पढ़ने के बाद क्या अब भी उनके दर्द को उपेक्षित किया जा सकता है? एक साधारण व्यक्ति बड़े ही अरमानों से अपने घर का निर्माण करता है ताकि उसके बाद जीवन के शेष अतिआवश्यक अंग रोटी और कपड़ा के जुगाड़ के लिए ही जीना पड़े। मुंह के कैंसर के असहनीय दर्द ,ऊपर से दवाई के इंतजाम के लिए पैसों की क़िल्लत ने इस युवा पत्रकार साथी को अपने घर को बेचने के लिए विवश कर दिया था।
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रज्जन लाल की पीड़ा आज हर पत्रकार की पीड़ा है जहां कभी - कभी अपने पत्रकारिता धर्म को निर्वाह करने के चक्कर में उसे अपने परिवार तथा स्वयं तक के स्वास्थ्य की चिंता नहीं रहती है और बदले में उसे पुरस्कार स्वरूप या तो किसी अपराधी की गोली अथवा जानलेवा धमकी मिलती है या तो आर्थिक दोहन!