स्कूल ड्रेस का पैसा भेजने से बर्बाद हो रहा गारमेंट सेक्टर, गोरखपुर में 25 करोड़ कीमत का कपड़ा डंप

Gorakhpur News: प्राथमिक स्कूलों में बच्चों के स्कूल ड्रेस की रकम सीधे अभिभावकों के खाते में जाने का साइड इफेक्ट प्रोसेसिंग यूनिट के साथ पॉवरलूम यूनिटों में दिख रहा है।

Update: 2024-06-30 09:38 GMT

गोरखपुर में 25 करोड़ कीमत का कपड़ा डंप (न्यूजट्रैक)

Gorakhpur News: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शनिवार को डीबीटी के माध्यम से प्रदेश के 1.87 करोड़ बच्चों के माता-पिता अथवा अभिभावकों के आधार सीडेड खातों में प्रति बच्चा 1200 रुपये की राशि ट्रांसफर किया। इस रकम से माता-पिता-अभिभावक अपने स्कूली बच्चों के लिए स्कूल यूनिफार्म, जूते-मोजे, स्कूल बैग एवं स्टेशनरी खरीद सकेंगे। इस कदम से अभिभावक तो खुश हैं, लेकिन टेक्सटाइल से लेकर गारमेंट सेंटर बर्बाद हो रहा है। वहीं स्कूलों के प्रधानाचार्य ड्रेस को लेकर परेशान हो रहे हैं।

प्राथमिक स्कूलों में बच्चों के स्कूल ड्रेस की रकम सीधे अभिभावकों के खाते में जाने का साइड इफेक्ट प्रोसेसिंग यूनिट के साथ पॉवरलूम यूनिटों में दिख रहा है। गोरखपुर के बरगदवा क्षेत्र में बीएन डायर्स की यूनिट पिछले एक महीने में 8 दिन बंद रही। इसके साथ ही 2000 पॉवरलूम भी 25 फीसदी क्षमता से चल रहे हैं। गीडा से लेकर गोरखनाथ एरिया में करीब 25 करोड़ रुपये कीमत का कपड़ा डंप पड़ा हुआ है। बरगदवा क्षेत्र में बीएन डायर्स और गीडा में अंबे प्रोसेसिंग भी पूरी क्षमता से नहीं चल रही है।

बीएन डायर्स के प्रमुख विष्णु अजीतसरिया का कहना है कि ‘स्कूल ड्रेस का रकम खाते में भेजने से डिमांड नहीं आ रही है। पुरानी व्यवस्था बहाली की मांग की गई है। गोरखपुर में 2000 पॉवरलूम संचालित हो रहे हैं। ये लूम पूरी क्षमता से संचालित हों तो प्रतिदिन एक लाख मीटर कपड़ा तैयार होगा। उद्यमी एसके अग्रवाल का कहना है कि पहली जुलाई में स्कूल खुलेंगे लेकिन अभिभावकों के खाते में स्कूल ड्रेस की रकम भेजने की सरकार की नीति से डिमांड आने की उम्मीद नहीं के बराबर है। यूनिटों के पास करीब 30 करोड़ कीमत का तैयार कपड़ा डंप पड़ा हुआ है। स्कूल ड्रेस को लेकर पुरानी नीति से पॉवरलूम पूरी क्षमता से चल सकेंगे।

कई गारमेंट फैक्ट्रियों में उत्पादन ठप

पिपरौली से लेकर मगहर में रेडीमेड गारमेंट के 50 से अधिक यूनिटों में 1500 से अधिक कारीगरों को रोजगार मिला हुआ था। पिपरौली में गारमेंट की छोटी यूनिट चलाने वाले बताते हैं कि जब स्कूल के शिक्षक ड्रेस खरीदते थे तो मार्च से जून महीने में दिन-रात काम करना पड़ता था। स्कूल ड्रेस से आसपास के मल्हीपुर ,उसकां, खरैला, देईपार, कुरमौल, बांसपार आदि गांवों के सैकड़ों कारीगरों को काम मिला हुआ था। अब यूनिटें बंद हो रही हैं। चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज के पूर्व अध्यक्ष विष्णु अजीतसरिया का कहना है कि स्कूल ड्रेस को लेकर पुरानी व्यवस्था बहाल करने की मांग लगातार की जा रही है। गारमेंट हब बनाने की बात के उलट गारमेंट पार्क में एक भी यूनिट नहीं लग सकी।

Tags:    

Similar News