इस मंदिर में 56 वर्षों से लगातार सुनाई दे रहा ‘हरे रामा, हरे कृष्णा’, ऐसे शुरू हुआ अखंड कीर्तन

Gorakhpur News: जिले में असुरन-पिपराइच मार्ग पर स्थित गीता वाटिका राधा-कृष्ण मंदिर में वैसे तो रोज हजारों लोग दर्शन को आते हैं। लोग राधा कृष्ण मंदिर का दर्शन तो करते हैं लेकिन उनके लिए आकर्षण का विशेष केंद्र है, हरि नाम संकीर्तन।

Update: 2024-07-25 12:24 GMT

इस मंदिर में 56 वर्षों से लगातार सुनाई दे रहा ‘हरे रामा, हरे कृष्णा’ (न्यूजट्रैक)

Gorakhpur News: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में असुरन-पिपराइच मार्ग पर स्थित गीता वाटिका राधा-कृष्ण मंदिर में वैसे तो रोज हजारों लोग दर्शन को आते हैं। लोग राधा कृष्ण मंदिर का दर्शन तो करते हैं लेकिन उनके लिए आकर्षण का विशेष केंद्र है, हरि नाम संकीर्तन। धूप, बारिश, ठंड या फिर कोरोना का खतरनाक कालखंड इनकी जुबान से हर पल सिर्फ हरे रामा, हरे कृष्णा का ही जाप होता है। हम बात कर रहे हैं यूपी के गोरखपुर में गीता वाटिका के राधा कृष्ण मंदिर में पिछले 56 वर्षों से चल रहे अखंड कीर्तन की। 56 वर्षों से अनवरत चल रहे कीर्तन के सफर में कईयों ने साथ छोड़ दिया। लेकिन नये लोग जुड़ते जा रहे हैं।

मंदिर प्रशासन ने अखंड हरिनाम कीर्तन के लिए 12 लोगों की टीम बना रखी है, लेकिन दर्शन को आने वाले श्रद्धालु यहां कुछ वक्त जरूर गुजारते हैं। गीता वाटिका के ट्रस्टी रसेंदु फोगला बताते हैं कि ‘1968 में भाईजी ने राधाष्टमी के दिन अखंड हरि नाम संकीर्तन की शुरुआत की। वह सिलसिला तभी से चल रहा है। अखंड कीर्तन लगातार चलता रहे इसके लिए मंदिर प्रबंधन ने 12 लोगों को जिम्मेदारी दे रखी है।’ आस्था और श्रद्धा के साथ इनकी जीविका भी चलती रहे इसके लिए प्रबंधन द्वारा इन्हें सम्मान राशि भी दी जाती है।

पिछले 25 साल से कीर्तन मंडली के प्रमुख सदस्य कहते हैं कि ‘कीर्तन करने के पीछे सिर्फ श्रद्धा है। युवा अवस्था से लेकर अब 60 की उम्र तक सुबह-शाम राधा-कृष्ण का नाम जपने का सौभाग्य मिला है।’ एक अन्य सदस्य का कहना है कि ‘वर्तमान में कीर्तन मंडली में 12 सदस्य हैं। प्रत्येक सदस्य को सुबह और शाम तीन-तीन घंटे तक कीर्तन में अनिवार्य रूप से शामिल होना होता है। किसी की तबीयत खराब हो या फिर अन्य जरूरी काम होने से अन्य सदस्यों को अतिरिक्त समय देना होता है।’ वह बताते हैं कि ‘सुबह और शाम श्रद्धालुओं की अच्छी संख्या होती है।’ 18 वर्षों से कीर्तन कर रहे एक सदस्य कहते हैं कि ‘अब तो मंदिर परिसर अपना घर लगता है। यहां रहने वाले परिवार के सदस्य। अंतिम सांस तक जुबान पर राधा-कृष्ण का नाम हो, यही अभिलाषा है।’


जुड़ते गए नये सदस्य

अंखड कीर्तन के 56 वर्ष के लंबे सफर में कीर्तन मंडली के कई सदस्यों का निधन भी हुआ। पिछले एक दशक में नारायण गोस्वामी, मृत्युंजय दास और मृत्युंजय मिश्रा का निधन हुआ। वहीं कोलकाता के कृष्णा दादा को 16 साल के सफर को बीमारी के चलते विराम देना पड़ा। मंडली के सबसे नये सदस्य बताते हैं कि ‘सौभाग्यशाली हूं कि कीर्तन मंडली का सदस्य बना। पहले भी यहां समय मिलने पर कीर्तन में शामिल होता था। अब कीर्तन आस्था के साथ जिम्मेदारी भी है।’

हनुमान प्रसाद पोद्दार ने की थी गीता वाटिका की स्थापना

गीता वाटिका की स्थापना संत भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार ने किया था। जिस जमीन पर मंदिर है, उसे कोलकाता के सेठ ताराचंद घनश्याम दास ने दी थी। तब इसे गोयंदका गार्डन के नाम से जाना जाता था। 30 मई, 1933 में जमीन गीता वाटिका प्रबंधन ने खरीद ली। वर्ष 1934-35 में यहां भाईजी के रहने के लिए आवास बना। अस्सी के दशक मंदिर का विस्तार हुआ। 21 जून,1985 को मंदिर में देव विग्रहों की स्थापना की गई। यहां श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और राधाष्टमी समेत आधा दर्जन से अधिक उत्सव वर्ष भर मनाए जाते हैं। गीता वाटिका में वर्षभर धार्मिक आयोजन होते रहते हैं। मंदिर में कुल छोटे-बड़े 16 गर्भगृह तथा 35 शिखर हैं। प्रधान शिखर की ऊंचाई 85 फीट है। मंदिर में श्रीराधा-कृष्ण, श्री पार्वती- शंकर, श्री रामचतुष्ट, श्री लक्ष्मी-नारायण, गणेशजी, दुर्गाजी, श्री महात्रिपुर सुंदरी, श्री सूर्य नारायण, सरस्वती जी, कार्तिकेय जी, हनुमानजी आदि का विग्रह है।

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