Gorakhpur Literary Fest: किसने कहा-डिजिटल क्रांति ने तमाम मीडिया मठाधीशों की मठाधीशी खत्म कर दी
Gorakhpur News: आशुतोष ने कहा कि पहले मीडिया सच से समझौता नहीं करती थी। अब सबकी पक्षधरता है। जब अफवाहें हेडलाइन बनने लगें और पत्रकार नेता के साथ सेल्फी में गौरव अनुभव करे तो समझिए पत्रकारिता नीचे जा रही है।
Gorakhpur News: गोरखपुर में दो दिवसीय लिटरेरी फेस्ट में मीडिया विमर्श के सत्र में वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष, विजय त्रिवेदी और हर्षवर्धन ने मीडिया में आ रहे बदलाव पर खूब खुलकर चर्चा की। क्या ख़बरों का ठिकाना बदल रहा है? विषय पर अपनी बात रखते हुए आशुतोष ने कहा कि आज की मीडिया खलनायक की भूमिका अदा कर रही है। वह आज के युग का सबसे बड़ा खलनायक है। मीडिया एक बौद्धिक संस्था है। यदि मीडिया समाज के लिए नायक नहीं खलनायक बन जाए और प्रश्न उठे विश्वसनीयता पर तो अपने आप में यह उत्तर है कि मीडिया कहां पहुंच चुकी है।
आशुतोष ने कहा कि पहले मीडिया सच से समझौता नहीं करती थी। अब सबकी पक्षधरता है। जब अफवाहें हेडलाइन बनने लगें और पत्रकार नेता के साथ सेल्फी में गौरव अनुभव करे तो समझिए पत्रकारिता नीचे जा रही है। प्रश्न इतना सा है की सच की आंख में आंख डाल कर, लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के तौर पर हम कड़वे सवाल पूछ सकते हैं या नहीं..। पत्रकारिता वह नहीं जो हर डिजिटल स्पेस में कहा जाता है। हर लड़का जो कैमरा का सामने खड़े हो वह रिपोर्टर नहीं होता है। न्यूजमेकिंग एक प्रोसेस है। हमारी कॉन्सेंट, हमारी सोच को नियंत्रित किया जा रहा है। हम अब विमर्श के प्रति इंटोलेरेंट हैं। मीडिया और पत्रकारिता ने गलतियां की हैं तो उसे ही रास्ता निकालना पड़ेगा। जनता के प्रति हमारी जवाबदेही है।
महाभारत के कृष्ण जैसी हो गई है मीडिया
विजय त्रिवेदी ने कहा कि ये बात सही है कि खबरें अखबार से टेलीविजन और अब डिजिटल मीडिया पर आ गई हैं। लेकिन इन सारे स्वरूपों का अस्तित्व समान रूप से है। लोग तीनों माध्यमों को खबरों के लिए इस्तेमाल करते हैं। खबर, टेलीविजन और डिजिटल मीडिया इन तीनों पर अच्छा काम करने वाले लोग हैं। लेकिन इन सभी संस्थाओं में इसके उलट भी है। यहां बेकार काम करने वाले भी हैं।
आज मीडिया महाभारत के कृष्ण जैसी हो गई है। वो हर तरफ दिखती है। सबके साथ, सबके लिए और सबके खिलाफ़ वही लड़ रही है। त्रिवेदी ने कहा कि मीडिया में गिरावट विश्वसनीयता में गिरावट की वजह से है। हर एक का अपना चश्मा होता है लेकिन व्यूअर बड़ी बारीक दृष्टि इस बात कर रखता है कि मीडिया ने कौन सा चश्मा लगाया है। अच्छी बात यह है कि जो कल स्वर्ग की सीढ़ी होने की बात करते थे वो आज किसानों के मारे जाने की बात कर रहे हैं।
मोबाइल के दौर में खबर जनता के हाथ में है, इसलिए मठाधीश परेशान
वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी ने कहा कि नायक सदैव जनता जनार्दन थी, है और रहेगी। जो लोग अखबार से टीवी में गए वो अखबार को बेकार बताने लगे। टीवी से पोर्टल पर गए लोग टीवी की बुराई करते हैं। मामला व्यक्तिगत ही है। हां! खबरों का ठिकाना बदल रहा है। डिजिटल क्रांति ने तमाम मीडिया मठाधीशों की मठाधीशी खत्म कर दी। समाज और मीडिया के लोकतंत्रीकरण का वक्त है। अब यदि आप बायस्ड हैं तो जवाब देना पड़ेगा।
जो कह रहे विश्वसनीयता खत्म है वो इसलिए कह रहे हैं कि सब कुछ वाया उनके नहीं जा रहा। देश का जनमानस बदल गया वो पत्रकारों, संपादकों के पल्ले नहीं पड़ा। टीवी के स्वर्णिम दौर में इसका सबसे ज्यादा दुरुपयोग हुआ। मोबाइल का माध्यम से खबर आपके हाथ में है इसीलिए मीडिया के मठाधीश परेशान हैं। जो लोग दूसरे के विचार को नहीं मानते वो फांसीवादी हैं।
फिल्म अभिनेता अन्नू कपूर बोले-पैसा ही मेरा धर्म और ईमान है
गोरखपुर लिटरेरी फेस्ट के दूसरे दिन आकर्षण का केन्द्र फिल्म अभिनेता अन्नू कपूर रहे। अपनी बेबाक शैली में उन्होंने अपनी बात रखी। अन्नू ने कहा कि पैसा ही मेरा धर्म है, पैसा ही मेरा ईमान है। लेकिन पैसे के लिए चोरी नहीं करूंगा, ईमान नहीं बेचूंगा, ठगूंगा नहीं और देश नहीं बेचूंगा। उन्होंने महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण की कथा सुनाते हुए कहा कि बुद्ध ने स्वर्ग के द्वार पर यह कहकर प्रवेश से ठुकरा दिया कि जबसे बोध हुआ इस बात की इच्छा है कि हर व्यक्ति को स्वर्ग के द्वार तक जबतक पहुंचा न दूं तबतक इस स्वर्ग की मुझे कामना नहीं।
गोरखपुर से अपने खास जुड़ाव की चर्चा करते हुए प्रसिद्ध अभिनेता अन्नू कपूर ने कहा कि इस शहर से मेरी बहुत सारी यादें जुड़ी हैं। उन्होंने कहा कि मेरी दिवंगत माताजी ने इसी गोरखपुर में फिराक गोरखपुरी के साथ मुशायरा पढ़ा था। मुझे आज से 51 साल पहले गोरखपुर आने का सौभाग्य मिला। अपने माता-पिता के जीवन चर्चा करते हुए अन्नू ने बताया कि दादा और नाना की दोस्ती ने मां पिताजी को करीब किया। मेरा पूरा बचपन गुरबत में बीता। पिताजी के थियेटर से जुड़े होने के कारण उस जमाने में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। मेरी माताजी के अंतिम संस्कार में उनके शुभचिंतक मुसलमानों ने श्मशान में उनके सम्मान में नमाज ए जनाजा पढ़ा था।
सिविल सेवा में जाना चाहता था, तंगी से एक्टिंग में आ गया
बातचीत के सेशन में उन्होंने बताया कि मैं सिविल सेवा में जाना चाहता था पर पैसों की तंगी की वजह से मैं इस पेशे में आ गया। मेरी माता जी को धर्म की बड़ी मीमांसा थी। उन्होंने बौद्ध, इस्लाम, ख्रीस्त और सनातन का अभ्यास किया। पिताजी नास्तिक थे। चूंकि मेरा धर्म से कोई लेना देना नहीं इसलिए मुझे किसी से आसक्ति नहीं है। यही वजह है कि मैं नास्तिक बन गया।
अब चाहत सिर्फ इतनी है कि चैन से मर सकूं
गोरखपुर लिटरेरी फेस्ट को संबोधित करते हुए अन्नू ने कहा कि इतनी उपलब्धियों के बाद अब चाहत सिर्फ इतनी है कि चैन से मर सकूं। जैसे मेरे मां बाप गए वैसे मैं भी जा सकूं। सत्य जितना संभव है, उतना ही बोलता हूँ। और पूरा सच बोलने का ठेका भी मैने नहीं ले रखा है। उन्होंने कहा कि बृहदारण्यक उपनिषद में सर्वे भवन्तु सुखिनः जैसा श्लोक प्रेम और अध्यात्म के विचार में बंधन की अलौकिक मुक्ति का सबसे बड़ा संदेश है। यह जितना विस्तृत है उतना ही व्यापक भी। प्रेम संबंधों पर बात करते हुए वरिष्ठ अभिनेता ने कहा कि मैंने प्यार किया, अफेयर करना नहीं जानता।