प्राइमरी स्कूलों की शिक्षा पर हाईकोर्ट ने जताया असंतोष, सरकारी प्रयासों का विवरण देने का निर्देश
कोर्ट ने शिक्षा का अधिकार कानून के अनुपालन के संबंध में राज्य सरकार की ओर से दी गई जानकारी को पूरी तरह अस्पष्ट और असंतोषजनक बताया। न्यायालय ने अब इस मामले पर 30 मई को अग्रिम सुनवाई करने का आदेश दिया है।
लखनऊ: प्रदेश में बेसिक शिक्षा के स्तर पर हाई कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा कि हालत यह है कि कोई भी संपन्न व्यक्ति अपने बच्चों को प्राइमरी पाठशालाओं में नहीं पढ़ाना चाहता है। कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि आखिर ऐसा क्यों है, जबकि करोड़ों का बजट इसके लिए खर्च किया जा रहा है।
वैसी शिक्षा क्यों नहीं
कोर्ट ने शिक्षा का अधिकार कानून के अनुपालन के संबंध में राज्य सरकार की ओर से दी गई जानकारी को पूरी तरह अस्पष्ट और असंतोषजनक बताया। सरकार की ओर से दिए गये जवाब में शिक्षा के कानून के अनुपालन के संबंध में उठाए गए कदमों की जानकारी दी गई थी।
यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति वीरेंद्र कुमार (द्वितीय) की खंडपीठ ने नूतन ठाकुर की जनहित याचिका पर दिया। याचिका पर जवाब देते हुए मुख्य सचिव राहुल भटनागर व अपर मुख्य सचिव, बेसिक शिक्षा राज प्रताप सिंह की ओर से जवाबी हलफनामा दाखिल किया गया। न्यायालय ने हलफनामे में दी गई जानकारी पर असंतोष जताया।
न्यायालय ने कहा कि इसमें उन विद्यालयों का विवरण नहीं है, जहां कोई ऐसा सुधार हुआ हो, कि निचले पायदान से आने वाले बच्चों को वैसी बेहतर शिक्षा मिल सके जैसी अमीर व उच्च वर्ग के बच्चों को मिलती है। न्यायालय ने कहा कि हमें ऐसे स्कूलों व लाभार्थियों का विवरण जानने की जरूरत है जहां ऐसे सुधार हुए हों। न्यायालय ने अब इस मामले पर 30 मई को अग्रिम सुनवाई करने का आदेश दिया है।